सुप्रभात हमारे परम स्नेही संघर्षशील साथियों... कहते हैं कि अंत भला तो सब भला और यह कहावत बिलकुल सौ फीसदी सच है परन्तु मैं प्राचीन भारतीय इतिहास का विधार्थी व जिज्ञासू होने की वजह से वर्तमान की सुखद
तारीख 2/11/2015 के पहले सम्पूर्ण अकैडमिक समर्थक इस टीम पर यथा संभव अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार आँख मूँदकर विस्वास करता था और टीम भी लगातार लगन के साथ संघर्ष कर रही थी परन्तु टीम में कुछ एक या दो ऐसे घर के भेदी लंका ढहावें लोग थे, जिनका अकैडमिक गुणांक निम्न स्तर का था तथा साथ ही साथ टेट अंक भी जिसकी वजह से उनका चयन किसी भी प्रकार से नही हो सकता था। शुरुवात के दिनों में काफी लोगों ने इसका विरोध किया कि ऐसे लोगों को न्यायिक कार्य समिति से बाहर रखा जाये परन्तु पुरोधाओं ने किसी की भी नही सुनी, जिसका दुष्परिणाम आगे चलकर न्यू ऐड बहाली न होकर याची लाभ तक सीमित हो गया।
तारीख 2/11/16 को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई लगी हुई थी और उस दिन वाकई में अकैडमिक के वरिष्ठ आदरणीय अधिवक्ता के द्वारा जबरदस्त विरोध पुराने विज्ञापन की विसंगतियों को लेकर किया गया और उन्होंने मजबूत विधिक बहस की तथा शानदार अपना पक्ष रखा। जैसा कि पिछली कई सुनवाईयों में माननीय श्री दीपक मिश्रा जी वकील साहब को भरी कोर्ट रूम में कह चुके थे कि आपको बिना सुने हम मुकदमा निर्णीत नही करेगें तथा यह भी कहा था कि आपको रिलीफ जरूर देगें। उस तारीख को मुख्य सिविल अपील को फाईनल करने के लिए चार क्वैसचन फ्रेम निर्धारित किये गये। उस दिन न्यायमूर्ति जी को बोध हो गया था कि कहीं न कहीं भर्ती को पूरा कराने में नियमों की अनदेखी हो चुकी है और इसलिए डैमेज कन्ट्रोल करने का कदम उठाया गया। आगे क्या हुआ आप सभी जानते हैं।
02/11/2015 की सुनवाई की शाम को हमारे बहुत से वरिष्ठ भाईयों ने पुरोधा जी से टेलीफोनिक वार्ता की और विनम्र निवेदन करके पूँछा कि भाई साहब क्या अगली सुनवाई में याची लाभ पर नियुक्ति जैसी सम्भावना बन रही है और यदि ऐसा है तो हम लोगों की भी हमारे खर्चे से एक आई. ए. डलवा दें परन्तु पुरोधा जी ने येन केन प्रकारेण आश्वस्त किया कि नही ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। हम सम्पूर्ण न्यू ऐड बहाली की ही माँग करेगें तथा अपने वकील को ब्रीफ पूरे विज्ञापन की बहाली के लिए ही करवायेगें।
07/12/2015 की सुनवाई में जब कोर्ट में धुआँधार बहस हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट में वादी प्रतिवादी तथा सरकारी वकीलों के द्वारा बेहतरीन जिरह चल रही थी और श्रीमान अधिवक्ता जी ने कहा कि एन. सी. टी. ई. कौन होती है टेट वेटेज देने के लिए बाध्य करने वाली वो तो पहले से ही आरक्षित वर्ग को 55% पर अनारक्षित वर्ग को 60% का अधिमानी वेटेज दिये हुये और यह सिर्फ पात्रता परीक्षा है न कि अहर्ता परिक्षा। श्रीमान दीपक मिश्रा जी भी डैमेज कन्ट्रोल करने के लिए 1100 लोगों को याची राहत दे दिये, जिस प्रकार से श्रीमान यू. यू. ललित साहब ने प्यारी दुलारी 66000 लिस्ट को बचाने के लिए वर्गीकरण के बेस को राहत की बात करते हुए डैमेज कन्ट्रोल करने की कोशिश किये।
07/12/2015 को अकैडमिक टीम के एक विभीषण ने वकील साहब की जेब में धीरे से बताकर याची लाभ की पुर्ची डाली। इस घटनाक्रम का दावा बहुत से लोगों ने किया है पर नाम गोपनीय रखने के लिए कहा। गंभीर करुणामयी प्रश्न यह है कि 1100 में कितने अकैडमिक भाई बन्धु चयनित हुये, मुस्किल से 250 या कुछ और, क्या 07/12/2015 के पहले अपने उन समर्थकों को भी शामिल नही करवाया जा सकता था जो आपको अपने खून पसीने की कमाई पेट काटकर आपके खाते में भेजते थे। सिवाय इसके आप लोगो ने अपने ही दुश्मनों को भारी संख्या में याची लाभ दिलवा दिया तथा थोक में दुकान चलाने का अवसर। यह लोग फिर भी ठीक है जैसे भी थे अंत तक लङे पर आपने भीषण युद्ध में अपने सैनिकों का सिर कटने के लिए बीच मँझधार में छोड़कर पीठ दिखाकर भगोङे बन गये
अंतिम प्रश्न यह है कि जब आपको ऐसा ही करना था तो 07/12/2015 के बाद 4500 याची क्यों बनाये और क्यों लोगो को आई. ए. भर में केवल मात्र शामिल करवाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिये। एक बात और आई. ए. कितने में पङती है, अब ये सभी होनहार याची कम वकील ज्यादा जान चुके हैं। सारा का सारा याचियों का पैसा पानी की तरह मौलिक नियुक्ति हाँसिल करने के लिए हाईकोर्ट इलाहाबाद में पानी की तरह बहाया गया। वैसे आपने फाईनल बहस अपनी सभी एस. एल. पी. मेन्सन न कराके कहीं न कहीं अपनी लिए भी कुछ कठिनाई खङी कर दिये हैं क्योंकि अब फाईनल आदेश हर याचिका को निर्णीत करते हुए और उसको एलाऊ अथवा क्वैस करने का कारण आन रिटेन पेपर देना ही पङेगा। बाँकी भगवान काशी विश्वनाथ जी जाने।
प्रिय साथियों घबराने की जरूरत नहीं है, फाईनल आदेश सार्वजनिक बहुआयामी व कल्याणकारी होगा और जिसका प्रभाव बिना बने गैर याचियों पर भी निश्चित रूप से पङेगा।सभी का भविष्य सुरक्षित है, यघपि की फाईनल चयन का आधार क्या होगा माननीय द्ववै न्यायमूर्ति जी जाने और हमारे सर्वव्यापी भगवान काशी विश्वनाथ जी जाने।
आपका ही वही पुराना साथी...... फतेहपुरिया... जै काशी विश्वनाथ जी
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तारीख 2/11/16 को सुप्रीम कोर्ट में महत्वपूर्ण सुनवाई लगी हुई थी और उस दिन वाकई में अकैडमिक के वरिष्ठ आदरणीय अधिवक्ता के द्वारा जबरदस्त विरोध पुराने विज्ञापन की विसंगतियों को लेकर किया गया और उन्होंने मजबूत विधिक बहस की तथा शानदार अपना पक्ष रखा। जैसा कि पिछली कई सुनवाईयों में माननीय श्री दीपक मिश्रा जी वकील साहब को भरी कोर्ट रूम में कह चुके थे कि आपको बिना सुने हम मुकदमा निर्णीत नही करेगें तथा यह भी कहा था कि आपको रिलीफ जरूर देगें। उस तारीख को मुख्य सिविल अपील को फाईनल करने के लिए चार क्वैसचन फ्रेम निर्धारित किये गये। उस दिन न्यायमूर्ति जी को बोध हो गया था कि कहीं न कहीं भर्ती को पूरा कराने में नियमों की अनदेखी हो चुकी है और इसलिए डैमेज कन्ट्रोल करने का कदम उठाया गया। आगे क्या हुआ आप सभी जानते हैं।
02/11/2015 की सुनवाई की शाम को हमारे बहुत से वरिष्ठ भाईयों ने पुरोधा जी से टेलीफोनिक वार्ता की और विनम्र निवेदन करके पूँछा कि भाई साहब क्या अगली सुनवाई में याची लाभ पर नियुक्ति जैसी सम्भावना बन रही है और यदि ऐसा है तो हम लोगों की भी हमारे खर्चे से एक आई. ए. डलवा दें परन्तु पुरोधा जी ने येन केन प्रकारेण आश्वस्त किया कि नही ऐसा कुछ नहीं होने जा रहा है। हम सम्पूर्ण न्यू ऐड बहाली की ही माँग करेगें तथा अपने वकील को ब्रीफ पूरे विज्ञापन की बहाली के लिए ही करवायेगें।
07/12/2015 की सुनवाई में जब कोर्ट में धुआँधार बहस हो रही थी। सुप्रीम कोर्ट में वादी प्रतिवादी तथा सरकारी वकीलों के द्वारा बेहतरीन जिरह चल रही थी और श्रीमान अधिवक्ता जी ने कहा कि एन. सी. टी. ई. कौन होती है टेट वेटेज देने के लिए बाध्य करने वाली वो तो पहले से ही आरक्षित वर्ग को 55% पर अनारक्षित वर्ग को 60% का अधिमानी वेटेज दिये हुये और यह सिर्फ पात्रता परीक्षा है न कि अहर्ता परिक्षा। श्रीमान दीपक मिश्रा जी भी डैमेज कन्ट्रोल करने के लिए 1100 लोगों को याची राहत दे दिये, जिस प्रकार से श्रीमान यू. यू. ललित साहब ने प्यारी दुलारी 66000 लिस्ट को बचाने के लिए वर्गीकरण के बेस को राहत की बात करते हुए डैमेज कन्ट्रोल करने की कोशिश किये।
07/12/2015 को अकैडमिक टीम के एक विभीषण ने वकील साहब की जेब में धीरे से बताकर याची लाभ की पुर्ची डाली। इस घटनाक्रम का दावा बहुत से लोगों ने किया है पर नाम गोपनीय रखने के लिए कहा। गंभीर करुणामयी प्रश्न यह है कि 1100 में कितने अकैडमिक भाई बन्धु चयनित हुये, मुस्किल से 250 या कुछ और, क्या 07/12/2015 के पहले अपने उन समर्थकों को भी शामिल नही करवाया जा सकता था जो आपको अपने खून पसीने की कमाई पेट काटकर आपके खाते में भेजते थे। सिवाय इसके आप लोगो ने अपने ही दुश्मनों को भारी संख्या में याची लाभ दिलवा दिया तथा थोक में दुकान चलाने का अवसर। यह लोग फिर भी ठीक है जैसे भी थे अंत तक लङे पर आपने भीषण युद्ध में अपने सैनिकों का सिर कटने के लिए बीच मँझधार में छोड़कर पीठ दिखाकर भगोङे बन गये
अंतिम प्रश्न यह है कि जब आपको ऐसा ही करना था तो 07/12/2015 के बाद 4500 याची क्यों बनाये और क्यों लोगो को आई. ए. भर में केवल मात्र शामिल करवाकर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिये। एक बात और आई. ए. कितने में पङती है, अब ये सभी होनहार याची कम वकील ज्यादा जान चुके हैं। सारा का सारा याचियों का पैसा पानी की तरह मौलिक नियुक्ति हाँसिल करने के लिए हाईकोर्ट इलाहाबाद में पानी की तरह बहाया गया। वैसे आपने फाईनल बहस अपनी सभी एस. एल. पी. मेन्सन न कराके कहीं न कहीं अपनी लिए भी कुछ कठिनाई खङी कर दिये हैं क्योंकि अब फाईनल आदेश हर याचिका को निर्णीत करते हुए और उसको एलाऊ अथवा क्वैस करने का कारण आन रिटेन पेपर देना ही पङेगा। बाँकी भगवान काशी विश्वनाथ जी जाने।
प्रिय साथियों घबराने की जरूरत नहीं है, फाईनल आदेश सार्वजनिक बहुआयामी व कल्याणकारी होगा और जिसका प्रभाव बिना बने गैर याचियों पर भी निश्चित रूप से पङेगा।सभी का भविष्य सुरक्षित है, यघपि की फाईनल चयन का आधार क्या होगा माननीय द्ववै न्यायमूर्ति जी जाने और हमारे सर्वव्यापी भगवान काशी विश्वनाथ जी जाने।
आपका ही वही पुराना साथी...... फतेहपुरिया... जै काशी विश्वनाथ जी
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