ये कैसी न्याय प्रणाली??“शिक्षामित्रों की नियुक्ति और समायोजन सही या गलत? अगर गलत तो उसके जिम्मेदार कौन? अगर सही तो न्याय मौन क्यों?”

ये कैसी न्याय प्रणाली??
माननीय उच्च न्यालाय इलाहाबाद व तत्पश्चात माननीय सर्वोच्च न्यायालय नई दिल्ली में एक तरफ जहाँ 172000 शिक्षामित्रों के खिलाफ याचिकाएँ योजित की गयी थीं वही दूसरी तरफ टेट मेरिट, एकेडमिक मेरिट पर हुई भर्तियों तथा टेट 2011 के विरुद्ध भी याचिकाएँ योजित की गयी थीं.
परंतु माननीय न्यायमूर्ति महोदयों ने एकेडमिक मेरिट पर हुई भर्तियों जो कि नियमानुसार सही था को बहाल कर दिया, और टेट मेरिट पर हुई 72825 की भर्तियों जिनके टेट 2011 में भारी धाँधली के आरोप में माध्यमिक शिक्षा परिषद के पूर्व चैयरमैन संजय मोहन जेल की सज़ा भुगत रहे हैं, को भी बहाल कर दिया. साथ ही साथ टेट 2011 पर योजित याचिका पर मौन साध लिया गया और कोर्ट आदेश में टेट 2011 का कोई जिक्र तक नहीं किया गया. अब सवाल ये उठता है कि -----
टेट मेरिट और एकेडमिक मेरिट दोनों एक साथ सही कैसे हो सकते हैं?

टेट मेरिट पर भर्ती का आदेश यदि मा0 न्यायमूर्ति महोदय के द्वारा दिया गया था तो किस कानून के आधार पर?

1100 याचियों को बिना आवेदन के ही नौकरी किस कानून के तहत दे दी गयी?

और कानून यदि टेट मेरिट को सही मानता है तो एकेडमिक मेरिट सही कैसे हो गया?

जैसा कि माननीय न्यायमूर्ति महोदय ने कहा था कि नियुक्ति पा चुके लोगों की नौकरी के साथ कोई छेडछाड नही किया जाएगा तो समायोजित हो चुके शिक्षकों (शिक्षामित्रों) ने उनको क्या नुकसान पहुँचाया था?

संजय मोहन आखिर किस अपराध की सजा भुगत रहे हैं?

अगर उन्होंने टेट 2011 में गडाबडी की थी तो टेट 2011 की सीबीआई जाँच का अभी तक आदेश क्यों नही हुआ?

यदि टेट 2011 में कोई गडबडी नहीं हुई तो संजय मोहन को अब तक रिहा क्यों नहीं किया गया?

एक आम आदमी के इन उचित सवालों का जवाब यदि उसे नहीं मिल पाता है तो वह किस न्याय प्रणाली पर विश्वास करे? अभी सवाल और भी हैं जिनकी चर्चा हम अपने अगले पोस्ट में करेंगे. और कल का हमारा विषय होगा -
“शिक्षामित्रों की नियुक्ति और समायोजन सही या गलत? अगर गलत तो उसके जिम्मेदार कौन? अगर सही तो न्याय मौन क्यों?”
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