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एक जाति विशेष व कम अंक वाले प्रतियोगियों को प्राथमिकता ही नहीं बल्कि अन्य ‘खेल’ होने के आरोप हैं। उप्र लोकसेवा आयोग की यह तस्वीर सीबीआइ जांच में उजागर हुई तो अरबों रुपये का वारा-न्यारा होने की बात भी सामने आ सकती है।
उप्र लोकसेवा आयोग की सपा शासनकाल में एक अप्रैल 2012 से 31 मार्च 2017 तक हुई सभी भर्तियों की सीबीआइ जांच शुरू हो चुकी है। सीबीआइ टीम की प्रारंभिक जांच फिलहाल लखनऊ से शुरू हो चुकी है लेकिन, जल्द ही इसके उप्र लोकसेवा आयोग के इलाहाबाद मुख्यालय में भी आना तय है। आयोग में इसको लेकर हलचल तेज हो गई है। बताते हैं कि सीबीआइ टीम लीडर के निर्देश पर कई महत्वपूर्ण तथ्य मांगे गए हैं। वहीं इस बात की चर्चा भी जोरों पर है कि सीबीआइ जांच में आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल यादव के कार्यकाल में बड़ा ‘खेल’ होने की बात उजागर हो सकती है। उसमें पूर्व अध्यक्ष ही नहीं बल्कि पूर्व की सपा सरकार में रहे कई मंत्रियों के भी जांच के जद में आने के आसार हैं। 1आरोप यह भी है कि पूर्व अध्यक्ष की मनमानी के चलते नियुक्तियों में चहेतों का चयन ही नहीं हुआ। प्रतियोगी छात्रों के अनुसार दलालों के माध्यम से पीसीएस व अन्य परीक्षाओं की सीटें फिक्स कराने का लंबा खेल चला। मेहनत से तैयारी करने वाले छात्र खौफ के साये में रहे। सरकार में बैठे मंत्रियों और विधायकों से आयोग की बेजा गतिविधियों का संबंध होने की भनक मिलने पर अधिकांश प्रतियोगी छात्र आवाज नहीं उठा सके। अब सीबीआइ जांच शुरू हो जाने पर इसकी संभावना जताई जाने लगी है कि वरिष्ठ और अनुभवी अधिकारियों की टीम आयोग का कच्चा चिट्ठा खोलेगी। भर्तियों में रिश्वतखोरी और दलाली की सच्चाई उजागर होने पर प्रदेश में उच्च सेवाओं के लिए परीक्षा कराने वाले उप्र लोकसेवा आयोग की छवि भी दागदार हो सकती है।
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