इलाहाबाद : हाईस्कूल व इंटर परीक्षा 2018 का रिजल्ट रविवार को आ रहा है।
परीक्षार्थी व उनके अभिभावकों में फेल-पास की जगह रिजल्ट के सफलता प्रतिशत
को लेकर सबसे अधिक चर्चा है। हर कोई इस बात को लेकर मानों आश्वस्त है कि
पिछले वर्षो जैसा परिणाम नहीं होगा, सफल होने वालों की संख्या में बड़ी
गिरावट आएगी।
सफलता प्रतिशत को लेकर जितने मुंह उतने दावे हो रहे हैं, इसका
पटाक्षेप रिजल्ट के साथ ही होगा। 1 की परीक्षा और परिणाम की चर्चा होते ही
हर कोई 1990 के दशक का जिक्र करता है। नकल विरोधी अध्यादेश लागू होने के
बाद 1992 में हाईस्कूल का 14.70 व इंटर का 30.38 फीसदी परिणाम आया था। 1993
में सफलता का प्रतिशत कुछ सुधरा हाईस्कूल में 25.34 और इंटर में 38.62
फीसदी अभ्यर्थी उत्तीर्ण हो सके। यही नहीं नब्बे के दशक भर सफल होने वाले
परीक्षार्थियों की तादाद बहुत कम रही है। हाईस्कूल का परिणाम 1994 में
38.10, 1995 में 54.50, 1996 में 44, 1997 में 47, 1998 में 28, 1999 में
36, 2000 में 30, 2001 में 34, 2002 में 40 फीसदी रहा है। ऐसे ही इंटर में
1994 में 54 व 1995 में 72 फीसदी रिजल्ट आया था। 2004 के बाद दोनों के
सफलता प्रतिशत में उछाल आया और 2011 में में मॉडरेशन अंक प्रणाली लागू होने
के बाद रिजल्ट 80 फीसदी के ऊपर चला गया। पिछले वर्षो में हाईस्कूल व इंटर
में सफलता प्रतिशत मामूली अंकों से आगे-पीछे होने का क्रम जारी रहा है। 125
वर्ष बाद अब फिर सभी की निगाहें रिजल्ट प्रतिशत पर टिकीं हैं। इसकी वजह यह
है कि इस बार परीक्षा में नकल रोकने के कड़े इंतजाम हुए। परीक्षार्थियों
को नकल के आरोप में पकड़ने पर भले ही जेल नहीं भेजा गया लेकिन, नकल कराने
का गिरोह चलाने वालों को एसटीएफ ने हवालात जरूर पहुंचा दिया। बड़ी संख्या
में परीक्षार्थियों के इम्तिहान छोड़ने और सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में
उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन से रिजल्ट गिरने के कयास लगाए जा रहे हैं।
कॉपियां जांचने वाले परीक्षक बताते हैं कि तमाम ऐसी उत्तर पुस्तिकाएं मिली
हैं, जो सादी रही या फिर गिने-चुने प्रश्न ही हल किए गए हैं। ऐसे हालात में
परिणाम गिरने से कौन रोक सकेगा?
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