हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने प्रदेश के प्राथमिक स्कूलों में 68 हजार 500
सहायक शिक्षकों की भर्ती मामले में सैकड़ों अभ्यर्थियों की 57 याचिकाओं को
खारिज कर दिया। इनमें अर्हता अंकों को घटाने वाला शासनादेश वापस लेने के
आदेश को चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने याचियों और सरकारी वकील की दलीलें सुनने
के बाद मामले में दखल देने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने मंगलवार को यह फैसला आलोक कुमार समेत सैकड़ों अभयर्थियों की 57 याचिकाओं पर सुनाया। इसमें 20 फरवरी 2019 के उस आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया था, जिसके तहत पहले घटाये गये अर्हता अंकों का शासनादेश वापस ले लिया गया था।
वर्ष 2018 की इस शिक्षक भर्ती की अधिसूचना में सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के अभयर्थियों के लिए अर्हता अंक 45 फीसदी और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए 40 फीसदी तय किये गये थे। इसके बाद इन्हें घटाकर क्रमशः 33 व 30 फीसदी कर दिया गया था।
याचियों का कहना था कि अर्हता अंक घटाने वाला शासनादेश वापस लिया जाना कानून की मंशा के खिलाफ था। वहीं राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी ने अदालत को बताया कि सरकार अर्हता अंक तय कर सकती है और 20 फरवरी 2019 के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है। अदालत ने सुनवाई के बाद मामले में दखल से इनकार कर सभी 57 याचिकाओं को खारिज कर दिया।
न्यायमूर्ति अब्दुल मोईन ने मंगलवार को यह फैसला आलोक कुमार समेत सैकड़ों अभयर्थियों की 57 याचिकाओं पर सुनाया। इसमें 20 फरवरी 2019 के उस आदेश को निरस्त करने का आग्रह किया गया था, जिसके तहत पहले घटाये गये अर्हता अंकों का शासनादेश वापस ले लिया गया था।
वर्ष 2018 की इस शिक्षक भर्ती की अधिसूचना में सामान्य और अन्य पिछड़ा वर्ग के अभयर्थियों के लिए अर्हता अंक 45 फीसदी और अनुसूचित जाति-जनजाति के लिए 40 फीसदी तय किये गये थे। इसके बाद इन्हें घटाकर क्रमशः 33 व 30 फीसदी कर दिया गया था।
याचियों का कहना था कि अर्हता अंक घटाने वाला शासनादेश वापस लिया जाना कानून की मंशा के खिलाफ था। वहीं राज्य सरकार की तरफ से अपर महाधिवक्ता कुलदीप पति त्रिपाठी ने अदालत को बताया कि सरकार अर्हता अंक तय कर सकती है और 20 फरवरी 2019 के आदेश में कोई अवैधानिकता नहीं है। अदालत ने सुनवाई के बाद मामले में दखल से इनकार कर सभी 57 याचिकाओं को खारिज कर दिया।