सरकारी कामकाज में पूरी पारदर्शिता लाने के प्रयासों में जुटी उप्र सरकार ने एक और बड़ा फैसला किया है। अब परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को ड्रेस की कीमत सीधे उनके खाते में भेजी जाएगी। खुद मुख्यमंत्री
योगी आदित्यनाथ ने ही गोरखपुर में मिलने पहुंचे चैंबर आफ इंडस्ट्रीज के पूर्व अध्यक्ष के समक्ष इस फैसले का जिक्र किया। मुख्यमंत्री के इस निर्णय से प्रदेश के एक लाख 58 हजार से अधिक परिषदीय स्कूलों में पढ़ने वाले करीब 1.58 करोड़ बच्चों को लाभ होगा। वे मनचाही जगह से कपड़ा लेकर उसे सिलवा सकेंगे। सरकार हर बच्चे को प्रतिवर्ष दो यूनिफार्म देती है। यूनीफार्म का मूल्य 300 रुपये तय है तो जूते के लिए 135 रुपये, मोजा 21 रुपये और स्वेटर के लिए 200 रुपये। पठन-पाठन सामग्री पर सरकार करीब साढ़े पांच सौ करोड़ रुपये सालाना खर्च करती है।सर्व शिक्षा अभियान की शुरुआत 2000-01 में प्राथमिक शिक्षा के ढांचे को दुरुस्त करने के लक्ष्य को लेकर हुई थी। इसके तहत हर बच्चे को निश्शुल्क शिक्षा देकर उनका जीवन संवारना था। गांवों में एक किलोमीटर के दायरे में प्राथमिक और तीन किलोमीटर के दायरे में उच्च प्राथमिक विद्यालय बनवाना था। इसी कड़ी में बच्चों को ड्रेस, बस्ता, जूते-मोजे और किताबें भी मुफ्त में दी जाती हैं। अब तो छह से 14 साल तक के बच्चों को मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का संवैधानिक अधिकार भी हासिल है। लेकिन, 21 वर्ष बाद भी यह मिशन लक्ष्य से दूर है तो इसके लिए कर्ता-धर्ता ही जिम्मेदार हैं। कई बार ऐसी शिकायतें आती हैं कि बच्चों को ड्रेस या किताबें नहीं बंटीं या घटिया किस्म की दी गईं अथवा फटे जूते बंटवा दिए। स्थानीय खरीद में गड़बड़ी देखकर योगी सरकार ने दो साल पहले प्रदेशव्यापी जांच कराई थी। खाते में रकम का खाका भी तभी ¨खच गया था। इस पर अमल अब होने जा रहा है। ड्रेस, जूते-मोजे का मूल्य बच्चों या उनके अभिभावकों के खाते में सीधे भेजने से न सिर्फ पारदर्शिता आएगी, बल्कि कपड़े की गुणवत्ता या नापजोख पर उठते सवाल भी ठंडे पड़ जाएंगे।