त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव में ड्यूटी निभाने वाले तमाम कर्मचारी चुनाव कार्य के दौरान संक्रमित हुए और उनकी जान भी गई। हालांकि मृतकों की संख्या को लेकर पक्ष, विपक्ष और कर्मचारी संगठनों के अपने दावे हैं, लेकिन
चुनाव आयोग की गाइडलाइन के अनुसार सरकार अपनी जगह सही थी। अब सरकार ने महसूस किया है कि वह गाइडलाइन कोरोनाकाल से पहले की है, जो कि वर्तमान हालात के लिए उपयुक्त नहीं है। इसलिए मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि किसी भी मृत काíमक के स्वजन नौकरी और मुआवजे से वंचित नहीं रहेंगे। सरकार का फैसला निसंदेह जनोपयोगी और पीड़ित परिवारों के लिए राहत भरा है और ऐसा ही किया भी जाना चाहिए। समझना होगा कि यह दौर आफत भरा है। जान हथेली पर लेकर लोग ड्यूटी निभा रहे हैं। इसे मजबूरी नहीं कहा जा सकता, वर्तमान परिस्थितियों में इसकी सख्त जरूरत है। ऐसे में सरकार को भी उनका ध्यान रखना पड़ेगा। केवल इसलिए नहीं कि यह उसकी जिम्मेदारी है, बल्कि इसलिए भी कि इससे कर्मचारियों में हौसले का संचार होगा। परिवार के भविष्य को लेकर बेफिक्री किसी भी कर्मचारी को हौसला देने के लिए पर्याप्त है।सरकार ने जो कदम उठाया है, उस पर जल्द से जल्द अमल करने के लिए संबंधित लोगों को सक्रिय हो जाना चाहिए। यह फैसला भी सराहनीय है कि कोरोना संक्रमण के कारण माता-पिता को खो चुके बच्चों की जिम्मेदारी सरकार लेगी। इसकी जरूरत इसलिए भी थी क्योंकि ऐसे बहुत से मामले सामने आए हैं जब माता-पिता दोनों के निधन के बाद बच्चे की देखभाल करने वाला कोई नहीं है। इन बच्चों को वास्तव में सहारे की जरूरत है, सरकार ने उनकी जिम्मेदारी लेकर तमाम चिंताएं और आशंकाएं दूर कर दी है। कोरोना काल में सरकार को अभी ऐसे और भी कई कल्याणकारी कदम उठाने की जरूरत पड़ सकती है। ऐसे विषयों का चुनाव कर उन पर सरकार को विचार करना शुरू कर देना चाहिए, क्योंकि ऐसे तमाम परिवार मिल जाएंगे, जिनका सहारा इस कोरोना ने छीन लिया है, कमाऊ सदस्य के चले जाने से रोजी-रोटी की समस्या खड़ी हो गई है। इस दिशा में भी सरकार को विचार करना चाहिए।