सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को अपने एक फैसले में कहा कि निर्धारित योग्यता को किसी भी अन्य योग्यता के समकक्ष करार देना अदालत का काम नहीं है। अदालतों द्वारा न्यायिक समीक्षा की शक्ति का उपयोग करके यह तय नहीं किया जा सकता है। शीर्ष अदालत ने कहा, योग्यता में समानता तय करना राज्य (भर्ती प्राधिकरण) का काम है।
जस्टिस एस अब्दुल नजीर और जस्टिस कृष्ण मुरारी की पीठ ने पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के उस फैसले को रद्द कर दिया जिसमें कहा गया था कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय का कला एवं शिल्प डिप्लोमा या डिग्री, हरियाणा औद्योगिक प्रशिक्षण विभाग द्वारा कला और शिल्प परीक्षा में दो वर्ष का डिप्लोमा या निदेशक, औद्योगिक प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा (हरियाणा) द्वारा स्वीकृत कला और शिल्प में डिप्लोमा के समकक्ष है।
मामला वर्ष 2006 में हरियाणा राज्य कर्मचारी चयन आयोग द्वारा 816 कला व शिल्प शिक्षकों की भर्ती के लिए निकाले गए विज्ञापन से संबंधित है। इसके लिए एक पात्रता यह भी थी कि अभ्यर्थी के पास हरियाणा औद्योगिक प्रशिक्षण विभाग द्वारा कला और शिल्प परीक्षा में दो वर्ष का डिप्लोमा या निदेशक, औद्योगिक प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा(हरियाणा) द्वारा स्वीकृत कला और शिल्प में डिप्लोमा हो।
अथॉरिटी ने कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय से कला एवं शिल्प डिप्लोमा हासिल करने वालों के आवेदनों पर विचार करने से इनकार कर दिया था। अथॉरिटी का कहना था कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय द्वारा दी जाने वाली कला एवं शिल्प डिप्लोमा, हरियाणा शिक्षा विभाग द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है।
अथॉरिटी के इस पात्रता मानदंड को हाईकोर्ट में रिट याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई थी। हाईकोर्ट ने रिट याचिका को मंजूर कर लिया था। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के उस फैसले को दरकिनार कर दिया है। शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के निर्णय को गलत करार दिया है।