एनसीईआरटी पाठ्यक्रम विवाद में देश के शिक्षाविद दो धड़ों में बंट गए हैं। जेएनयू के कुलपति, आईआईएम के निदेशक एवं यूजीसी चेयरमैन जगदीश कुमार सहित देश के 105 से ज्यादा शिक्षाविद, शिक्षण संस्थानों के प्रमुख, एनसीईआरटी द्वारा राष्ट्रीय शिक्षा नीति के अनुरूप किए जा रहे पाठ्यक्रमों में बदलाव के पक्ष में उतर आए हैं।
इन लोगों ने आरोप लगाया गया है। कि एनसीईआरटी को बदनाम करने के जानबूझकर प्रयास किए गए हैं। उधर, यूजीसी चेयरमैन ने शुक्रवार को बयान जारी कर पाठ्यसामग्री में संशोधन को उचित ठहराया है।
शिक्षाविदों ने जारी एक संयुक्त बयान में आरोप लगाया है कि एनसीईआरटी को बदनाम करने की पिछले तीन महीने से जानबूझकर कोशिश की जा रही है। यह शिक्षाविदों के बौद्धिक अहंकार को दर्शाता है, जो चाहते हैं कि छात्र 17 साल पुरानी पाठ्यपुस्तकों को ही पढ़ते रहें। आरोप लगाया गया है कि कुछ लोग पाठ्यक्रम में बहुत आवश्यक अद्यतन प्रक्रिया को बाधित कर रहे हैं। इन शिक्षाविदों की यह टिप्पणी एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तक विकास समितियों का हिस्सा रहे बुद्धिजीवियों के एक समूह द्वारा परिषद को पत्र लिख किताबों से उनके नाम हटाने की मांग करने के एक दिन बाद आई है।
राजनीति शास्त्र के विशेषज्ञों सुहास पालसीकर और योगेंद्र यादव ने पुस्तकों से मुख्य सलाहकार के रूप में उनका नाम हटाने के लिए एनसीईआरटी को पत्र लिखा था। इसके बाद 33 अन्य शिक्षाविद ने परिषद से पाठ्यपुस्तकों से अपना नाम हटाने की मांग करते हुए कहा था कि उनका सामूहिक रचनात्मक प्रयास खतरे में है।
असंतोष का कारण कुछ और यूजीसी प्रमुख
यूजीसी प्रमुख कुमार ने ट्वीट किया कि हाल में कुछ शिक्षाविदों ने पाठ्यपुस्तकों में संशोधन को लेकर एनसीईआरटी पर निशाना साधा, जो गलत है। एनसीईआरटी ने पहले भी समय-समय पर पाठ्यपुस्तकों में संशोधन किया है। यूजीसी के अध्यक्ष ने कहा, ऐसे में इन शिक्षाविदों की आपत्तियों का कोई आधार नहीं है। इस प्रकार का असंतोष प्रकट करने का कारण अकादमिक नहीं, बल्कि कुछ और है। वहीं, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) की कुलपति शांतिश्री डी पंडित ने शुक्रवार को इस विवाद को अनुचित बताया।