यूपी शिक्षक भर्ती में हाईकोर्ट के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट की रोक, 69000 की नई मेरिट लिस्ट बनाने का था आदेश

 UP News: उत्तर प्रदेश में चार साल से चल रहे 69,000 शिक्षक भर्ती विवाद में सुप्रीम कोर्ट ने दखल दिया है। कोर्ट ने मेरिट लिस्ट को रद्द कर तीन महीने के भीतर नई मेरिट लिस्ट तैयार करने के इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले पर अस्थायी रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार और अन्य संबंधित पक्षों को नोटिस जारी कर जवाब भी मांगा है।

विवाद तब शुरू हुआ जब अखिलेश सरकार ने 1,37,000 शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित किया। बाद में सुप्रीम कोर्ट ने इस समायोजन को रद्द कर दिया और उन्हें वापस शिक्षामित्र बना दिया। इसके बाद योगी सरकार को इन पदों पर भर्ती करने का आदेश दिया गया। लेकिन कहा गया कि वह एक साथ सभी पदों पर भर्ती नहीं कर सकती। नतीजतन 2018 में 68,500 पदों के लिए रिक्तियों की घोषणा की गई। इसके बाद 69,000 सहायक अध्यापकों के लिए एक और चरण की घोषणा की गई।

इन 69,000 पदों के लिए भर्ती परीक्षा 6 जनवरी 2019 को हुई थी। अनारक्षित श्रेणियों के लिए कटऑफ 67.11% निर्धारित किया गया था। जबकि ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कटऑफ 66.73% था। इस प्रक्रिया के माध्यम से लगभग 68,000 उम्मीदवारों ने नौकरी हासिल की। ​​हालांकि इस भर्ती के दौरान आरक्षण नियमों के कथित उल्लंघन को लेकर विवाद पैदा हो गया।

विरोध करने वाले अभ्यर्थियों ने तर्क दिया कि 1981 के बेसिक शिक्षा नियमों का ठीक से पालन नहीं किया गया। उन्होंने दावा किया कि अगर कोई ओबीसी उम्मीदवार अनारक्षित श्रेणी के कटऑफ से ऊपर अंक प्राप्त करता है तो उसे ओबीसी कोटे के बजाय अनारक्षित श्रेणी में गिना जाना चाहिए। इससे आरोप लगे कि आरक्षण नियमों की अनदेखी की गई।

विरोध करने वाले अभ्यर्थियों ने बताया कि ओबीसी के लिए अनिवार्य 27% के बजाय केवल 3.86% सीटें आरक्षित की गईं। जिसके परिणामस्वरूप 18,598 सीटों में से केवल 2,637 सीटें ओबीसी को आवंटित की गईं। इसके विपरीत सरकार ने दावा किया कि लगभग 31,000 ओबीसी उम्मीदवारों की नियुक्ति की गई। अभ्यर्थियों ने बेसिक शिक्षा नियम-1981 और आरक्षण नियम-1994 का हवाला देकर इसका विरोध किया।

उन्होंने तर्क दिया कि नियुक्त किए गए लगभग 29,000 लोगों को ओबीसी आरक्षण के हिस्से के बजाय अनारक्षित कोटे के तहत गिना जाना चाहिए था। एससी श्रेणी के आरक्षण के लिए भी इसी तरह की विसंगतियां देखी गईं। उन्हें आवश्यक 21% के बजाय केवल 16.6% ही मिला। उम्मीदवारों ने कुल 19,000 सीटों से जुड़े घोटाले का आरोप लगाया।

सुप्रीम कोर्ट ने सभी पक्षों से सात पन्नों में लिखित दलीलें पेश करने को कहा है और अगली सुनवाई 23 सितंबर के लिए तय की है। कोर्ट ने कहा कि आगे कोई फैसला देने से पहले उसे हाईकोर्ट के सिंगल जज और डिवीजन बेंच के फैसलों का अध्ययन करने के लिए समय चाहिए।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इससे पहले जून 2020 और जनवरी 2022 की चयन सूची रद्द कर दी थी और 2019 में आयोजित सहायक शिक्षक भर्ती परीक्षा के आधार पर तीन महीने के भीतर नई सूची बनाने का आदेश दिया था। इस फैसले से कई कार्यरत शिक्षकों की नौकरी जाने का खतरा पैदा हो गया है।