मुलायम ने अखिलेश को यह कह कर शर्मसार किया कि ....'शिवपाल चाचा हैं गले मिलो | अमर सिंह मेरे भाई हैं, तुम्हारी हैसियत क्या है जो उन्हें गाली देते हो' !!
मंच पर सत्ता जाने के डर से सभी का दर्द छलका ... सुलह की कौशिशें बेकार...तलवारें मियान से बाहर आ चुकी है .. कोई भी झुकने को तैयार नहीं...इस पार-या उस पार तक युद्ध जारी है... हार-जीत के परिणाम के बिना ये रार नहीं थमेगी... अखिलेश कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं !!!
रार के खलनायक बने अमर सिंह, दीपक सिंघल,व रामगोपाल जैसे नारद !!!!
अखिलेश की क्या कमज़ोरी है कि वह बार-२ अपमान, छिना छपटी तक सह कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों चिपके हुए हैं। शायद अखिलेश इस्तीफ़ा न देकर चाहते है कि उन्हें बर्खास्त किया जाए और मुलायम/शिवपाल चाहते हैं कि अखिलेश इस्तीफ़ा दे। यह पहले आप-पहले आप का खेल खेला जा रहा है।
मुलायम से साफ़ कर दिया कि शिवपाल व अमर सिंह को वे नहीं छोड़ सकते। अखिलेश अमर सिंह को क़तई बर्दाश्त नहीं कर सकते। रामगोपाल की वापसी की कोई बसंत बही हुई और अखिलेश ने भी इस पर कुछ भी नहीं कहा। अब अखिलेश के पास क्या चॉस है... शायद वह इस प्रतीक्षा में है कि उन्हें बर्खास्त किया जाए और बात ख़त्म हो जाए।
अखिलेश ने यह बात यह स्पष्ट कर दिया कि टिकट वही बाटेंगे अर्थात बग़ावत अभी भी स्पष्ट है। शिवपाल से अलग पार्टी बनाने की बात कही थी यह अखिलेश के मन में आयी चाहे धमकी ही रही हो।
आज की बैठक का क्या उद्देश्य था और हुआ क्या? मुलायम की बातों में अखिलेश के बहुत तल्ख़ी सामने आयी है... यह कहना कि क्या अकेले चुनाव लड़लोगे,यह मीटिंग अखिलेश ने नहीं बुलाई,अमर सिंह मेरे भाई है और शिवपाल के साथ नहीं छोड़ सकते, गायत्री प्रजापति अच्छा है ... अखिलेश के सभी विरोधों को दरकिनार कर दिया है।
अखिलेश को या तो दोयम दर्जे का बनकर मुलायम के आदेशों का पालन करना होगा या फिर कुर्सी छोड़नी होगी। शिवपाल को मंत्रिमंडल में वापिस लेना होगा, अमर सिंह की सुननी होगी, दीपक सिंघल को वापिस करना होगा... यदि अखिलेश यह सब स्वीकारते हैं तो एक कमज़ोर,बेबस, ग़ुलाम, कुर्सी का लालची, सार्वजनिक मंच पर रोने वाला मुख्यमंत्री के स्वरूप में रहना होगा अर्थात अखिलेश का बड़ा नेता बनाने का मौक़ा ख़त्म।
अब अखिलेश को तय करना होगा अपना रोल व भावी क़द। यह अखिलेश के राजनीतिक जीवन का बड़ा निर्णय होगा। आज चुनाव के लिहाज़ से लोगों की सहानुभूति, युवा वर्ग का समर्थन व छवि वाला चेहरा अखिलेश के पास है .... क्या मुलायम/शिवपाल इस बात को स्वीकार है अथवा नहीं।
सार्वजनिक रूप से आज हुई पारिवारिक द्वन्द, virtual गाली गलोंच , मारपीट के बाद सब कुछ शांत हो जाएगा यह कोई विश्वास नहीं कर सकता है।
ये सब चलते सपा चुनाव जीत जाएगी ... यह असम्भव है यहाँ तक की सपा का कोर वोटर ...मुसलमान और यहाँ तक यादव भी पुनर्विचार के लिए बाध्य होंगे। इस सैफ़ई परिवार की लड़ाई ने यादव जाति को भी शर्मसार किया है।
अब अखिलेश को निर्णय लेना होगा... मुलायम व शिवपाल ने बॉल अखिलेश के कोर्ट में डाल दी है।
इस परिवार की लड़ाईं का ख़ामियाज़ा उ. प्र. की जनता क्यों भुगते इसकी जबाबदेही अखिलेश या शिवपाल की भी है और मुलायम सिंह तो अवश्य है.... प्रशासन ठप है ... जनता त्रस्त है और इस सबसे जल्दी से जल्दी निजात पाना चाहती है।
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मंच पर सत्ता जाने के डर से सभी का दर्द छलका ... सुलह की कौशिशें बेकार...तलवारें मियान से बाहर आ चुकी है .. कोई भी झुकने को तैयार नहीं...इस पार-या उस पार तक युद्ध जारी है... हार-जीत के परिणाम के बिना ये रार नहीं थमेगी... अखिलेश कुर्सी छोड़ने को तैयार नहीं !!!
रार के खलनायक बने अमर सिंह, दीपक सिंघल,व रामगोपाल जैसे नारद !!!!
अखिलेश की क्या कमज़ोरी है कि वह बार-२ अपमान, छिना छपटी तक सह कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर क्यों चिपके हुए हैं। शायद अखिलेश इस्तीफ़ा न देकर चाहते है कि उन्हें बर्खास्त किया जाए और मुलायम/शिवपाल चाहते हैं कि अखिलेश इस्तीफ़ा दे। यह पहले आप-पहले आप का खेल खेला जा रहा है।
मुलायम से साफ़ कर दिया कि शिवपाल व अमर सिंह को वे नहीं छोड़ सकते। अखिलेश अमर सिंह को क़तई बर्दाश्त नहीं कर सकते। रामगोपाल की वापसी की कोई बसंत बही हुई और अखिलेश ने भी इस पर कुछ भी नहीं कहा। अब अखिलेश के पास क्या चॉस है... शायद वह इस प्रतीक्षा में है कि उन्हें बर्खास्त किया जाए और बात ख़त्म हो जाए।
अखिलेश ने यह बात यह स्पष्ट कर दिया कि टिकट वही बाटेंगे अर्थात बग़ावत अभी भी स्पष्ट है। शिवपाल से अलग पार्टी बनाने की बात कही थी यह अखिलेश के मन में आयी चाहे धमकी ही रही हो।
आज की बैठक का क्या उद्देश्य था और हुआ क्या? मुलायम की बातों में अखिलेश के बहुत तल्ख़ी सामने आयी है... यह कहना कि क्या अकेले चुनाव लड़लोगे,यह मीटिंग अखिलेश ने नहीं बुलाई,अमर सिंह मेरे भाई है और शिवपाल के साथ नहीं छोड़ सकते, गायत्री प्रजापति अच्छा है ... अखिलेश के सभी विरोधों को दरकिनार कर दिया है।
अखिलेश को या तो दोयम दर्जे का बनकर मुलायम के आदेशों का पालन करना होगा या फिर कुर्सी छोड़नी होगी। शिवपाल को मंत्रिमंडल में वापिस लेना होगा, अमर सिंह की सुननी होगी, दीपक सिंघल को वापिस करना होगा... यदि अखिलेश यह सब स्वीकारते हैं तो एक कमज़ोर,बेबस, ग़ुलाम, कुर्सी का लालची, सार्वजनिक मंच पर रोने वाला मुख्यमंत्री के स्वरूप में रहना होगा अर्थात अखिलेश का बड़ा नेता बनाने का मौक़ा ख़त्म।
अब अखिलेश को तय करना होगा अपना रोल व भावी क़द। यह अखिलेश के राजनीतिक जीवन का बड़ा निर्णय होगा। आज चुनाव के लिहाज़ से लोगों की सहानुभूति, युवा वर्ग का समर्थन व छवि वाला चेहरा अखिलेश के पास है .... क्या मुलायम/शिवपाल इस बात को स्वीकार है अथवा नहीं।
सार्वजनिक रूप से आज हुई पारिवारिक द्वन्द, virtual गाली गलोंच , मारपीट के बाद सब कुछ शांत हो जाएगा यह कोई विश्वास नहीं कर सकता है।
ये सब चलते सपा चुनाव जीत जाएगी ... यह असम्भव है यहाँ तक की सपा का कोर वोटर ...मुसलमान और यहाँ तक यादव भी पुनर्विचार के लिए बाध्य होंगे। इस सैफ़ई परिवार की लड़ाई ने यादव जाति को भी शर्मसार किया है।
अब अखिलेश को निर्णय लेना होगा... मुलायम व शिवपाल ने बॉल अखिलेश के कोर्ट में डाल दी है।
इस परिवार की लड़ाईं का ख़ामियाज़ा उ. प्र. की जनता क्यों भुगते इसकी जबाबदेही अखिलेश या शिवपाल की भी है और मुलायम सिंह तो अवश्य है.... प्रशासन ठप है ... जनता त्रस्त है और इस सबसे जल्दी से जल्दी निजात पाना चाहती है।
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