Wednesday 11 January 2017

मुफ्त की ‘खिचड़ी’ छोड़ पढ़ने भागे 61 हजार बच्चे, सरकारी प्राइमरी और जूनियर स्कूलों से हो रहा मोहभंग

इलाहाबाद परिषदीय स्कूलों में ड्रेस, पुस्तकें, बस्ता से लेकर दोपहर का भोजन तक मुफ्त मिल रहा है, फिर भी 61 हजार 500 बच्चे इस वित्तीय वर्ष में स्कूल छोड़ गए। सवाल खड़ा हुआ ऐसा क्यों? जवाब की तलाश स्कूलों से लेकर बच्चों के घर तक की गई।
जवाब बच्चों के घर से सवाल के लहजे में आया कि मुफ्त की खिचड़ी में कोई भविष्य दिखता है क्या?
स्कूल, शिक्षक, खर्च व पढ़ाई को लेकर पड़ताल की गई। तथ्य सामने आया कि वर्ष 2016-17 के लिए सरकारी प्राइमरी, जूनियर स्कूलों और कस्तूरबा गांधी आवासीय विद्यालयों के लिए कुल 485 करोड़ रुपये का बजट आवंटित है। प्राइमरी व जूनियर स्कूलों में बच्चों की कुल संख्या 454098 पर यह बजट 10 हजार रुपये प्रति बच्चे से भी ज्यादा निकलता है। सवाल उठता है कि इतना बजट और सैकड़ों अरब रुपये की परिसंपत्ति व बच्चों को तमाम सहूलियतें मुफ्त दिए जाने के बावजूद इन स्कूलों से बच्चों की संख्या घट क्यों रही है। हकीकत यह भी है कि यहां आकर्षण का केंद्र केवल मुफ्त भोजन, बस्ता और ड्रेस ही रह गया है। स्पर्धा के इस दौर में मुकाबले के लिए अपने बच्चों को शिक्षित करने की चाह रखने वाले अभिभावक परिषदीय स्कूलों में उन्हें पढ़ाना नहीं चाहते। यह स्थिति तब है जब सरकार और जिले में तैनात अधिकारी शिक्षा का स्तर बढ़ाने व बच्चों को सुविधाएं देने का भरोसा देकर स्कूलों में बच्चों की संख्या बढ़ाने का टारगेट तय करते हैं। इसके लिए रैलियां, जनजागरूकता आदि करते हैं। मगर अभिभावक हैं कि उनकी नजर में गिरते शिक्षा के स्तर से इन स्कूलों का आकर्षण घट गया है। इसकी गवाही ये आंकड़े भी देते हैं, जिसमें सत्र 2015-16 में विद्यार्थियों की संख्या जहां 5,15,635 थी, वहीं यह सत्र 2016-17 में 4,54,098 रह गई है। इस तरह इस सत्र में 61,537 विद्यार्थी कम हो गए।
पोस्टिंग तबादलों पर फोकस : शिक्षा विभाग की कार्यशैली देखें तो यहां गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्राथमिकता में नजर नहीं आती। तबादले, पोस्टिंग, संबद्धीकरण और मिड डे मील ही प्राथमिकता में नजर आते हैं। इसी प्राथमिकता की वजह से बच्चों और शिक्षकों के मानक बार-बार टूटते हैं। शहरी क्षेत्रों और सड़कों के करीब विद्यालयों में शिक्षकों की पोस्टिंग भरपूर रहती है। मगर सुदूर ग्रामीण इलाकों में शिक्षकों के लाले पड़े रहते हैं। दारागंज में कन्या जूनियर हाईस्कूल ऐसा ही स्कूल है, जहां बच्चे 14 हैं और शिक्षक दो। इसी तरह एलनगंज में कन्या प्राइमरी में सौ बच्चों पर पांच शिक्षिकाएं हैं।
सरकारी स्कूलों के आंकड़े : जिले में प्राथमिक 2581 और जूनियर स्कूल 1247 हैं। इसमें 12537 शिक्षक और 476 शिक्षामित्र तैनात हैं।शैक्षिक गुणवत्ता पर ध्यान दिया जा रहा है। प्राइवेट स्कूल जगह-जगह खुलने से बच्चों की संख्या में गिरावट आई है। बच्चों की संख्या बढ़ाने पर फोकस है।
-अजरुन सिंह, प्रभारी बेसिक शिक्षा अधिकारी
अभिभावकों के बोल
मेरा बेटा समीर नेवादा प्राथमिक स्कूल में कक्षा सात में पढ़ता था। यहां पर पढाई ठीक तरीके से नहीं होती थी। शिक्षक समय से स्कूल नहीं आते थे। इस कारण उसका नाम कटाकर रानी रेवती देवी इंटर कालेज प्राइवेट स्कूल में करा दिया है।
-पुष्पा देवी, नेवादा
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मेरी बेटी सीता प्राथमिक स्कूल नेवादा में कक्षा तीन की छात्र थी। पढ़ाई ठीक तरीके से नहीं होती थी। वह ठीक तरीके से नाम भी नहीं लिख पाती थी। उसका भविष्य खराब हो रहा था। एसएमसी में उसका दाखिला करा दिया है।
-आनंद कुमार पटेल, नेवादा

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