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02 मई विशेष : सीनियर लॉयर की वकालत करने वाले ये बताएँ कि आपके वकील साहब जाकर कोर्ट में बोलेंगे क्या ???

साथियों ! 72825 मामले में जस्टिस आदर्श कुमार गोयल साहब का 'स्लाटर हाउस' पूरी तरह एक्शन में है जिसमें बड़ी तेजी और बेरहमी से टेट मेरिट विरोधी तत्वों का 'सफाया' किया जा रहा है,,,जस्टिस यू0यू0 ललित साहब भी पूरी तरह बैक सपोर्ट देते हुए बारी-बारी से कसाईखाने में 'बकरों' को भेज रहे हैं,,,
चूँकि 72825 मामले में कई IA और मामले बंच होकर 'झकड़ा जड़' बना दिए थे इसलिए सबसे पहले रास्ता साफ करने के लिए गैरजरूरी 'जड़ों' को छिनगाना जरूरी था और जस्टिस गोयल साहब ने वही किया भी,,धड़ाधड़ और ठोस फैसलों के लिये अब पर्याय बन चुके गोयल साहब की बेंच में शायद ही अगली डेट पर कोई जड़ विशेष बच पाये क्योंकि जिस तरह उन्होंने 72825 पर फैसला रिजर्व किया है उससे साफ जाहिर है कि उनका माइंड मेकअप हो चुका है और बहुत ज्यादा कोई ठोस दलील ना हुई तो वे अपना फैसला मन ही मन सुरक्षित कर चुके हैं,,,याची प्रकरण, शिक्षामित्र मामला और 15वें संशोधन के अस्तित्व की परीक्षा 02 मई को होनी है जिसपर अब तक हुई भर्तियों का अस्तित्व निर्भर करेगा,,,इधर बीच सोशल मीडिया पर देखने में आया है कि कुछ विद्वान पैरवीकारों द्वारा अभी भी चंदा उगाही का माहौल बनाया जा रहा है ताकि 'भागते भूत की लँगोटी' ही सही वाला हिसाब किताब किया जा सके, सबसे हैरत की बात यह है कि जब पिटीशनर (स्टेट) ने ही सरेंडर कर दिया तो आप लड़ेंगे किसके खिलाफ ??? कम से कम 72825 पर तो फैसला रिजर्व हो चुका है और उससे छेड़छाड़ के चांस ना के बराबर हैं तो 02 मई को सीनियर लॉयर की वकालत करने वाले ये बताएँ कि आपके वकील साहब जाकर कोर्ट में बोलेंगे क्या ??? साफ़ जाहिर है कि याची मामलों के चयनित पैरवीकार और कुछ चंदे की लत के शिकार भाई अपनी आदतों के अनुरूप माहौल बना रहे हैं जबकि 02 मई को मात्र सावधानी के तहत एक AOR ही काफी है जो स्थिति विपरीत जाते देख अवगत करा सके,,,वैसे भी उस दिन बाकी मैटर सुने जाएंगे अतः सीनियर एडवोकेट का सवाल ही नहीं उठता और ये सब भौकाल मात्र याचियों और चयनितों दोनों की तरफ से चंदा बटोरने का आखिरी प्रयास है क्योंकि 02 मई के पश्चात ईश्वर चाहेंगे तो चंदे की दुकानें वैसे ही बंद हो जाएंगी,,अतः सभी चयनित भाइयों से निवेदन है कि जीत की खुशियां मनाइये और खामखा भयादोहन में ना फँसे,,,एक बात और कहना चाहता हूँ कि विगत सुनवाइयों में कई अदृश्य वकील,गूंगे वकील और गैरहाजिर वकील अपना इतिहास बना चुके हैं जिसका आशय मात्र इतना होता था कि ''मैं उजला तू काला'',,, आज भी वह परम्परा कायम है और कुछ महामंडलेश्वर लोग अपने वकीलों के अलावा कोई दूसरा वकील स्टैंड होने ही नहीं देना चाहते बल्कि उसे विवादित बना देते हैं ताकि लोग विवश हो पुराने कमाऊ वकील की तरफ पलटी मारें,,,पुराने वकीलों से सेटिंग के चलते जेब भी मुनाफे में रहती है और नाम भी चोखा होता है इस बारे में इनकी फीस से सम्बंधित कुछ बातें भी जल्दी सामने आएँगी जिससे बड़े बड़े ईमानदारों के चेहरे पर से नकाब हटेगा,,,आप इतिहास उठाकर देखिये इन मठाधीशों के वकील इनकी सुविधा के अनुसार बदलते हैं ना की परिस्थिति के अनुसार,,साथ रहेंगे तो वही निकम्मा वकील बल्ले बल्ले होता है लेकिन अलग चलते ही वह वकील नाकारा और निकम्मा हो जाता है,,,चूँकि मामला अब खत्म ही है अतः इन सब आलोचनाओं से परे हटकर सभी साथियों को विजय की अग्रिम बधाई और शुभकामनाएं,,कृपया भय के व्यापार से बचें और खामखा अपने केस को बिगाड़ने के लिए सीनियर लॉयर टाँग अड़ाने ना भेंजे अन्यथा जज भी इंसान ही है,बिना मांगे सब कुछ दिया और अब ज्यादा टांग उलझाउँ काम करने पर "आता माझा सटकली" बोल भी सकता है,,समझदार को इशारा काफी है,,,
धन्यवाद
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