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शिक्षामित्रों के पास एक तर्क बहुत अच्छा है जिसको वह भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं...............

शिक्षामित्रों के पास एक तर्क बहुत अच्छा है जिसको वह भावनात्मक रूप से प्रस्तुत करते हैं वह यह कि हम इतने समय से प्राथमिक विद्यालयों में शिक्षण कार्य कर रहे हैं और ग्रामीण क्षेत्र में हमने शिक्षा व्यवस्था को बनाए रखा है
अर्थात हमारा समायोजन नैतिक रुप से होना स्वभाविक है जिसमें वह तर्क देते हैं कि हम 10 साल से कार्यरत हैं हम 15 साल से कार्यरत हैं पर मित्रो एक बात सोचने वाली है कि कोई अभ्यर्थी जब पढ़ता लिखता है तब उसमें किसी पद को पाने के लिए अपनी शैक्षणिक योग्यता करने का कार्य प्रारंभ करता है जैसे ग्रेजुएशन के बाद एक रास्ता शिक्षक बनने का है b.ed के उपरांत TET वही दूसरा रास्ता है BTC के उपरांत TET अर्थात दोनों ही रास्ते ट्रेंड शिक्षक का निर्माण करते हैं और संविधानिक व्यवस्था के अनुरुप शैक्षणिक योग्यता को पूरा करते हैं अर्थात शिक्षक बनने के लिए ग्रेजुएशन से लेकर B.Ed BTC TT एतिहाद में एक अभ्यार्थी समय एवं धन दोनों खर्च करता है क्या वह शिक्षक बनने के योग्य नहीं है जब की वास्तविक योग्यता उसी के पास है जब उसका बनने का नंबर आता है तब अयोग्य लोगों को शिक्षक पद पर समायोजित कर दिया जाता है क्या यह संवैधानिक है मित्रों वास्तविकता और भावनात्मकता दोनों में बड़ा अंतर होता है शिक्षामित्रों ने जिस दिन से कार्य किया है उस दिन से उनकी मनोदशा मानदेय प्राप्त करके कार्य करने की थी ना कि सहायक शिक्षक के रूप में नियुक्त होने की वही बीटीसी और बीएड करने वाले की प्रारंभिक मनोदशा शिक्षक बनने की होती है क्योंकि वह लगातार उस योग्यता को प्राप्त करने का प्रयास करता है एक और जहां शिक्षामित्र धन प्राप्त करते हुए लालसा बस जबरजस्ती सहायक शिक्षक बनने का प्रयास करते हैं वहीं दूसरी ओर लंबे समय अध्ययनरत अभ्यार्थी समय एवं धन दोनों खर्च करता है आप खुद ही सोचिए कि इसमें कौन शिक्षक होना चाहिए योग्य व्यक्ति जब शिक्षक बनने की कगार पर पहुंच रहा था तब अयोग्य लोगों ने उनका रास्ता रोक दिया हो सकता है मेरी इस पोस्ट पर बहुत सारे लोगों विशेषकर शिक्षामित्र गरे आएं भी परंतु मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता अगर देश में न्याय है तो न्याय सही होगा जय हिंद जय भारत
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