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बिना बीएड वाले शिक्षामित्र और अतिथि शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी

बिना बीएड वाले शिक्षामित्र और अतिथि शिक्षकों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी : सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे सभी कर्मचारियों के पक्ष में एक टिप्पणी की है जो सरकारी स्कूलों में वर्षों से पढ़ा रहे हैं लेकिन उनके पास बीएड या इसके समकक्ष डिग्रियां नहीं हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि 'यदि वे शिक्षक नहीं तो क्या हैं आप उनका वर्क प्रोफाइल बताएं, उनका वर्क प्रोफाइल यही है कि वे पढ़ा रहे हैं, यह अनुभव टीईटी और बीएड से कहीं ज्यादा है, जो सिर्फ दो वर्ष के कोर्स हैं। बता दें कि ऐसा ही मामला मध्यप्रदेश में अतिथि शिक्षकों के संदर्भ में लंबित है। कमोवेश देश के हर राज्य में ऐसा मामला लंबित है। पदनाम अलग अलग हैं लेकिन सरकारों ने नियमित शिक्षकों के अभाव में कुछ अस्थाई शिक्षकों को भर्ती किया और उनसे अध्यापक कार्य कराया। उनके पास डिग्री नहीं है लेकिन अनुभव है। अब आरटीई आ जाने के बाद ऐसे सभी अनुभवी शिक्षकों का भविष्य संकट में आ गया है।

यूपी में शिक्षामित्रों को नियमित करने के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में सोमवार को सुनवाई हुई। इस दौरान कोर्ट ने कहा कि 1.75 लाख शिक्षामित्र 17 वर्षो से पढ़ा रहे हैं, उन्हें उसका कुछ वेटेज मिलना चाहिए। जस्टिस आदर्श गोयल और जस्टिस यूयू ललित की पीठ ने कहा कि उम्र सीमा में छूट के अलावा उन्हें शिक्षण अनुभव का वेटेज शिक्षक भर्ती आवेदन में मिलना चाहिए।

कोर्ट ने यह सकारात्मक टिप्पणी तब की जब बीएड और टीईटी पास अभ्यर्थी के वकीलों ने कहा कि शिक्षामित्र यूपी बेसिक के शिक्षा कानून के तहत शिक्षक नहीं हैं। उन्हें सरकार ने पीछे के रास्ते से प्रवेश दिया है। उन्हें उम्र सीमा में ही छूट दी जा सकती है लेकिन कोर्ट ने कहा कि यदि वे शिक्षक नहीं तो क्या हैं आप उनका वर्क प्रोफाइल बताएं। उनका वर्क प्रोफाइल यही है कि वे पढ़ा रहे हैं। उनका यह अनुभव टीईटी और बीएड से कहीं ज्यादा है, जो सिर्फ दो वर्ष के कोर्स हैं।

दूरस्थ बीटीसी शिक्षक संघ के वकील ने कहा कि 50 हजार से ज्यादा शिक्षामित्र पूरी योग्यता रखते हैं और वे टीईटी भी पास हैं। बीएड उम्मीदवारों के वकीलों ने दलील दी कि शिक्षक बनने के योग्य दो लाख से ज्यादा अभ्यर्थी हैं। उन्होंने कहा, शिक्षा के अधिकार कानून, 2010 लागू होने के बाद सरकार ने अब तक कोई ऐसा शपथपत्र पेश नहीं किया है, जिसमें यह आंकड़ा हो कि योग्य उम्मीदवार न होने से शिक्षामित्रों को रखना पड़ा था।

कोर्ट ने पहले क्या कहा था

पिछली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने टिप्पणी की थी शिक्षामित्रों की नियुक्ति संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार नहीं है। उमादेवी फैसले (2006) के तहत ये नियुक्तियां अवैध हैं। कोर्ट ने कहा था कि उन्हें भर्ती में बैठने के लिए उम्रसीमा में छूट दी जा सकती है। इलाहाबाद हाईकोर्ट दो वर्ष पूर्व इन नियुक्तियों को अवैध ठहरा चुका है, लेकिन अब मामला शिक्षामित्रों के फेवर में जाता दिखाई दे रहा है। मामले की सुनवाई जारी है।
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