पिछले साल की तरह इस बार भी प्रदेश के परिषदीय विद्यालयों के बच्चों को पूरी तेजी दिखाने के बावजूद जुलाई से पहले पुस्तकें मिलना किसी भी स्थिति में संभव नहीं दिख रहा है। विभाग पुस्तक प्रकाशन की प्रक्रिया मार्च में पूरी करने की तैयारी कर रखी है, लेकिन ई-टेंडरिंग को लेकर भी विवाद होता दिखने लगा है।
उल्लेखनीय है कि पिछले साल भी बेसिक
शिक्षा विभाग ना तो पुस्तकों का प्रकाशन और वितरण सही समय पर करा पाया था
और ना ही स्वेटरों का वितरण। बेसिक शिक्षा विभाग की लापरवाही और लेटलतीफी
योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए एक बार फिर किरकिरी बनेगा। इसमें विभागीय
मंत्री अनुपमा जायसवाल की जिम्मेदारी को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
देश के भविष्य बनाने का कूबत रखने वाला
बेसिक शिक्षा विभाग योगी सरकार की सबसे कमजोर कड़ी साबित हो रहा है। पिछली
बार मार्च में योगी सरकार का गठन होने के कारण पुस्तक प्रकाशन में देरी
होने का एक बहाना था, लेकिन इस बार कोई बहाना नहीं है बावजूद इसके छात्रों
को पुस्तक नए सत्र की शुरुआत में नहीं मिल पाएगा। पुस्तक के अभाव में
बच्चों की पढ़ाई भी बाधित होगी। आरोप है कि कई सौ करोड़ की टेंडर
प्रक्रिया में लाभ कमाने के लिए बेसिक शिक्षा विभाग से जुड़े बड़े लोग
जानबूझकर देरी करते हैं। यह देरी इसलिए की जाती है ताकि हड़बड़ी का लाभ
उठाकर मनमाने फर्म और अपने चहेतों से काम कराया जा सके।
बेसिक शिक्षा विभाग के निदेशक सर्वेंद्र
विक्रम कहते हैं, ”टेंडर प्रक्रिया पूरी कर ली गई है। शासन को प्रकाशकों की
सूची भेज दी गई है। रेट के आधार पर शासन को तय करना है कि कौन सी कंपनियां
यह काम करेंगी।” वह आगे बताते हैं, ”शासन द्वारा कंपनियों का चयन किये
जाने के बाद 90 दिन कंपनियों को प्रकाशन के लिए समय दिया जाएगा।” इस लिहाज
से देखें तो अप्रैल में सत्र शुरू होने तक किसी भी सूरत में किताबें
बच्चों तक नहीं पहुंच पाएंगी।
दरअसल, योगी सरकार में सबसे बड़े भ्रष्ट
विभाग के रूप में बेसिक शिक्षा विभाग की पहचान बनती जा रही है। स्वतंत्र
प्रभार मंत्री अनुपमा जायसवाल शासन से महीनों पहले मंजूरी मिलने के बावजूद
समय से स्वेटर वितरण नहीं करवा पाई थीं, जिससे योगी सरकार की जमकर किरकिरी
हुई थी। बच्चों को ठंड में समय से स्वेटर नहीं मिल पाया था। इस बार
पुस्तकों का वितरण भी सपा सरकार की तर्ज पर देर होना अवश्यमभावी हो गया
है।उल्लेखनीय है कि पिछले सत्र में भी इस विभाग पर 300 करोड़ रुपए का
घोटाले का आरोप कक्षा एक से लेकर आठ तक की पुस्तकों की छपाई में लग चुका
है।
पिछले सत्र में यूपी
बेसिक एजुकेशनलप्रिंटर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष शैलेंद्र जैन और उपाध्यक्ष
विवेक बंसल ने आरोप लगाया था कि एक खास कंपनी को लाभ पहुंचाने के लिए
पुराने नियमों को बदल दिया गया। इन्होंने आरोप लगाया था कि शिक्षा
सत्र 2017-18 में पिछले 15 वर्षों से चली आ रही व्यवस्था खत्म
करके बेसिक शिक्षा विभाग ने अपने चहेती कंपनी को कॉपी-किताबों की आपूर्ति
का ठेका दे दिया गया। खास बात यह है कि बेसिक शिक्षा निदेशक रहे सर्वेंद्र
विक्रम सिंह ने जिस प्रकाशक कंपनी की गड़बड़ी को देखते हुए शासन को पत्र
लिखकर ठेका ना देने की सिफारिश की थी, नई सरकार ने उसी को ठेका दे दिया था।
सरकार की इस लापरवाही के चलते दूरदराज के
जिलों में पिछले सत्र में दिसंबर तक किताबें बंटती रहीं, जबकि इसे सेशन
शुरू होने के साथ ही बांटने का वादा किया गया था। पिछले सत्र में अनुपमा
जायसवाल के नेतृत्व वाले बेसिक शिक्षा विभाग ने नोएडा के बुर्दा ड्रक
इंडिया प्राइवेट लिमिटेड को कॉपी-किताब आपूर्ति का ठेका दिलाने के लिए सारे
कायदों को बदल डाला था। इस कंपनी को फायदा मिले इसके लिए कई बदलाव किए गए।
विभाग ने छोटी कंपनियों को बाहर करने के
लिए पहले से चली आ रही 15 लाख रुपए सिक्युरिटी मनी जमा करने की सीमा
बढ़ाकर ढाई करोड़ कर दी, इसका परिणाम यह रहा कि पिछली बार ठेका लेने वाली
कई कंपनियां औकात से ज्यादा सिक्युरटी मनी होने के चलते खुद ही
प्रतिस्पर्धा से बाहर हो गईं। निविदा में कई नए नियम-शर्त जोड़कर तथा
कार्टेल बनाकर बुर्दा को लाभ पहुंचाने की साजिश रची गई। पिछले सत्र में
विभाग ने ई-टेंडर कराने से कन्नी काट लिया था।
दरअसल, पिछले 15 सालों में आई सरकारें 35
से 40 मुद्रकों से किताबों का मुद्रण कराती थी, जिससे किताबों के प्रकाशन
का काम तेजी से हो जाता था, लेकिन पिछले सत्र में अनुपमा जायसवाल के विभाग
ने केवल 13 मुद्रकों का सिंडिकेट बना दिया था। ऐसा इसलिए किया गया ताकि
भ्रष्टाचार की व्यवस्था केंद्रीकृत किया जा सके। इसमें किताबों के
मुद्रण एवं प्रकाशन का लगभग 80 फीसदी काम बुर्दा को दिया गया था।
बड़ा सवाल यह था कि जिस अखिलेश सरकार के
कार्यकाल में 23 मुद्रक मिलकर भी किताबों की जुलाई में होने वाली आपूर्ति
जनवरी तक नहीं कर पाए थे, 13 प्रकाशक कैसे कर पाएंगे? इनमें बुर्दा कंपनी
भी शामिल थी। यह सवाल सही भी साबित हुआ जब 13 मुद्रकों के बाद पिछले सत्र
में भी दिसंबर जनवरी तक तमाम स्कूलों में किताबें नहीं बांटी जा सकी थीं।
इसका परिणाम यह रहा कि तमाम बच्चे आधे-अधूरे किताबों से ही पढ़ाई कर सके।
समाजवादी पार्टी की सरकार में बेसिक शिक्षा सचिव रहे अजय सिंह यादव ने जमकर
गड़बड़ी की थी।
अनुपमा जायसवाल का विभाग भी पिछले सत्र
में उसी लीक पर चल निकला। लगभग तीन सौ करोड़ रुपए का काम बुर्दा कम्पनी को
दिया गया था। सरकार चाहती तो ज्यादा मुद्रकों को जिम्मेदारी देकर लगभग
100 करोड़ रुपए की बचत कर सकती थी, लेकिन इसमें कमीशन कम होने या मारे जाने
का खतरा था। बुर्दा कंपनी पिछले साल समय पर किबातों की आपूर्ति नहीं कर
पाई थी। दिसंबर के पहले सप्ताह तक किताब बंटते रहे। साथ ही कागज का
क्वालिटी भी घटिया था।
इसी आधार पर बेसिक शिक्षा निदेशक
सर्वेंद्र विक्रम ने 9 मई 2017 को बेसिक शिक्षा निदेशक सर्वेंद्र विक्रम
सिंह ने बुर्दा कंपनी को टेंडर नहीं देने की सिफारिश शासन से की, लेकिन
उनकी सिफारिश रद्दी की टोकरी में डाल दी गई। ज्यादा रेट होने के बावजूद
वर्ष 2017-18 का टेंडर बुर्दा कंपनी को ही दे दिया गया। अनुमान है कि इससे
सरकार को पिछले सत्र में 55 करोड़ की चपत लगी। बेसिक शिक्षा निदेशक कहा था
कि इस साल मात्र 13 कंपनियां हैं, वे समय से किताबें नहीं दे पाएंगी, फिर
से टेंडर कराया जाए, लेकिन शासन ने दबाव देकर उनका प्रस्ताव बदलवा दिया।
इसी बुर्दा ड्रक इंडिया प्राइवेट लिमिटेड
कंपनी पर सपा सरकार में बेसिक शिक्षा विभाग ने करीब 15 करोड़ का जुर्माना
लगाया था। इतना ही नहीं बुर्दा को खराब कागज, अशुद्धि और प्रकाशन में
गड़बड़ी पर आगे किसी दिक्कत का सामना ना करना पड़े, इसकी भी योजना अनुपमा
जायसवाल के विभाग ने तैयार कर ली थी। उल्लेखनीय है कि कैग रिपोर्ट में यह
बात सामने आई थी कि अखिलेश सरकार के कार्यकाल में 97 लाख बच्चे किताबों से
वंचित रह गए थे। उस समय भी 90 फीसदी काम इसी बुर्दा कंपनी के पास था।
इसके बावजूद बुर्दा ड्रंक को प्रकाशन का
पूरा पैसा दे दिया गया। आरोप तो यहां तक है कि नई सरकार ने बिना तकनीति
क्षमता की जांच किए कंपनी को 158 करोड़ रुपए का ठेका किताबों की आपूर्ति के
लिए बुर्दा को दे दिया, जबकि कई और कंपनियां कम दामों पर आपूर्ति करने के
लिए लाइन में थीं। नियमों में बदलाव करके बुर्दा से सिक्युरटी मनी जमा
कराए बिना ठेका दे दिया गया। 2018-19 के सत्र में भी यह विभाग खेल करने के
प्रयास में है।
जुलाई से पहले नहीं मिलेंगी किताबें
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदेश
के परिषदीय विद्यालय के बच्चों को 2018-19 में अप्रैल में नए सत्र के
प्रारंभ में ही किताबें उपलब्ध कराने के निर्देश दिए थे, लेकिन विभाग ने
इसके लिए कोई तैयारी नहीं की। स्वेटर बंटने में लापरवाही होने के बाद भी
बेसिक शिक्षा विभाग ई-टेडर को लेकर समय से तैयारियां शुरू नहीं की। मार्च
का पहला सप्ताह बीतने के बावजूद टेंडर प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाई थी।
अनुमान लगाया जा रहा है कि प्रकाशकों का चयन और उन्हें आर्डर देने में
मार्च का अंत आ जाएगा।
इस स्थिति में अगर अप्रैल से प्रकाशन
कंपनियां किताबों की छपाई शुरू भी करती हैं नियमानुसार कम से कम 90 यानी
तीन महीने का समय उन्हें दिया जाएगा। इस लिहाज से पुस्तकों का प्रकाशन
किसी भी स्थिति में जुलाई महीने से पहले नहीं हो पाएगा। पिछले अनुभवों के
आधार पर कहा जा सकता है कि अगर प्रकाशक कंपनियों ने तय समय में पुस्तकों
का प्रकाशन कर भी दिया तो पूरे प्रदेश में पुस्तक बंटने में
सितंबर-अक्टूबर का महीना आ जाएगा।
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