नई नियुक्ति न होने से 48 स्कूल हो चुके हैं बंद
2024 तक बंद हो जाएंगे समाज कल्याण विभाग के वित्त पोषित स्कूल
जासं, इलाहाबाद : यदि शासन ने नजर-ए-इनायत नहीं की तो वह दिन दूर नहीं जब डॉ. भीमराव अंबेडकर के सपनों का स्कूल इतिहास बन जाएगा। अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षित करने के लिए समाज कल्याण विभाग की ओर से वित्त पोषित प्रदेश के 48 स्कूल बंद हो गए हैं।
शेष 530 स्कूल 2024 तक बंद होने के कगार पर हैं। मैनेजमेंट के इन स्कूलों में भर्ती नहीं होने से यह स्थिति बनी है।
संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जाति के पुनरुद्धार के लिए 1932 में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू से वार्ता की थी कि दलित बच्चों की शिक्षा के लिए ऐसी नीति तैयार हो, जहां पर वह बिना बाधा के शिक्षा ग्रहण कर सकें। उनकी प्रेरणा से पूना पैक्ट बनाम महात्मा गांधी के तहत इन स्कूलों की नींव रखी गई थी। ताकि दलित परिवारों के बच्चे एक छत के नीचे बिना रोक-टोक अध्ययन कर सकें। दलित बच्चों के उत्थान व विकास की मुख्य धारा से जोड़ने को यह स्कूल खोले गए थे। अनुसूचित जाति शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष हरिवंश दुबे बताते हैं कि अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से प्रदेश के विभिन्न जनपदों में 578 प्रबंध समिति ने स्कूल खोले थे। नई नियुक्ति नहीं होने से 48 स्कूल बंद हो गए हैं। उन्होंने बताया कि 1972 के पहले यह सब शिक्षा परिषद से अनुदानित थे। 1972 के बाद जब बेसिक शिक्षा परिषद का गठन हुआ तब से इन स्कूलों को समाज कल्याण विभाग के हवाले कर दिया गया। उपेक्षा के चलते इन स्कूलों की स्थिति खराब होती जा रही है। ऐसा ही रहा तो डा. अंबेडकर सोच कागजों में दफन हो जाएगी।
नियुक्ति प्रक्रिया हुई टेढ़ी खीर
बेसिक नियमावली 1975 लागू होने के बाद समाज कल्याण विभाग के वित्त पोषित स्कूलों में नियुक्ति प्रक्रिया टेढ़ी खीर हो गई है। पहले स्कूल प्रबंधन आसानी से मनचाही नियुक्ति कर लिया करते थे। नए नियम के बाद नियुक्ति की सूचना समाज कल्याण विभाग, बेसिक शिक्षा विभाग, समाज कल्याण निदेशालय व शासन के पास अनुमोदन के लिए जाती है। तदुपरांत नियुक्ति हो पाती है। लंबी प्रक्रिया के चलते नियुक्ति को लेकर मैनेजमेंट ने हाथ खड़े कर दिए हैं।
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2024 तक बंद हो जाएंगे समाज कल्याण विभाग के वित्त पोषित स्कूल
जासं, इलाहाबाद : यदि शासन ने नजर-ए-इनायत नहीं की तो वह दिन दूर नहीं जब डॉ. भीमराव अंबेडकर के सपनों का स्कूल इतिहास बन जाएगा। अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षित करने के लिए समाज कल्याण विभाग की ओर से वित्त पोषित प्रदेश के 48 स्कूल बंद हो गए हैं।
शेष 530 स्कूल 2024 तक बंद होने के कगार पर हैं। मैनेजमेंट के इन स्कूलों में भर्ती नहीं होने से यह स्थिति बनी है।
संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जाति के पुनरुद्धार के लिए 1932 में महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू से वार्ता की थी कि दलित बच्चों की शिक्षा के लिए ऐसी नीति तैयार हो, जहां पर वह बिना बाधा के शिक्षा ग्रहण कर सकें। उनकी प्रेरणा से पूना पैक्ट बनाम महात्मा गांधी के तहत इन स्कूलों की नींव रखी गई थी। ताकि दलित परिवारों के बच्चे एक छत के नीचे बिना रोक-टोक अध्ययन कर सकें। दलित बच्चों के उत्थान व विकास की मुख्य धारा से जोड़ने को यह स्कूल खोले गए थे। अनुसूचित जाति शिक्षक एसोसिएशन के प्रांतीय अध्यक्ष हरिवंश दुबे बताते हैं कि अनुसूचित जाति के बच्चों को शिक्षित करने के उद्देश्य से प्रदेश के विभिन्न जनपदों में 578 प्रबंध समिति ने स्कूल खोले थे। नई नियुक्ति नहीं होने से 48 स्कूल बंद हो गए हैं। उन्होंने बताया कि 1972 के पहले यह सब शिक्षा परिषद से अनुदानित थे। 1972 के बाद जब बेसिक शिक्षा परिषद का गठन हुआ तब से इन स्कूलों को समाज कल्याण विभाग के हवाले कर दिया गया। उपेक्षा के चलते इन स्कूलों की स्थिति खराब होती जा रही है। ऐसा ही रहा तो डा. अंबेडकर सोच कागजों में दफन हो जाएगी।
नियुक्ति प्रक्रिया हुई टेढ़ी खीर
बेसिक नियमावली 1975 लागू होने के बाद समाज कल्याण विभाग के वित्त पोषित स्कूलों में नियुक्ति प्रक्रिया टेढ़ी खीर हो गई है। पहले स्कूल प्रबंधन आसानी से मनचाही नियुक्ति कर लिया करते थे। नए नियम के बाद नियुक्ति की सूचना समाज कल्याण विभाग, बेसिक शिक्षा विभाग, समाज कल्याण निदेशालय व शासन के पास अनुमोदन के लिए जाती है। तदुपरांत नियुक्ति हो पाती है। लंबी प्रक्रिया के चलते नियुक्ति को लेकर मैनेजमेंट ने हाथ खड़े कर दिए हैं।
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