इलाहाबाद (ब्यूरो)। सातवें वेतन आयोग ने अपनी रिपोर्ट में भले ही विभिन्न
श्रेणियों में एचआरए भुगतान 10, 20 एवं 30 फीसदी से घटाकर आठ, 16 एवं 24
फीसदी किए जाने का प्रस्ताव रखा हो लेकिन नए फॉर्मूले से एचआरए भुगतान की
राशि बढ़कर तकरीबन दोगुनी हो जाएगी।
हालांकि कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि भत्तों में प्रस्तावित बढ़ोत्तरी दूध में उबाल के समान है। रिटायरमेंट दौरान या उसके बाद इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। अगर वेतन में बढ़ोतरी मांग के अनुरूप होती तो कर्मचारियों को रिटायरमेंट के दौरान ग्रेच्युटी और उसके बाद पेंशन में फायदा होता। प्रस्तावित वेतन वृद्धि में तो मौजूदा महंगाई का भी ध्यान नहीं रखा गया और न ही इस बात पर मंथन किया गया कि दस साल जब आठवां वेतन आयोग लागू होगा तो उस वक्त महंगाई की स्थिति क्या होगी।
यह बात सही है कि सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों में कर्मचारियों के भत्तों में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव रखा गया है। कर्मचारियों को पहले मूल वेतन पर एचआरए मिलता था लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब कुल वेतन पर एचआरए मिलेगा। उदाहरण के तौर पर किसी का मूल वेतन सात हजार रुपये है तो उसे वर्तमान दस फीसदी की दर से सात सौ रुपये एचआरए मिलता है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के मुताबिक सात हजार रुपये मूल वेतन पाने वाले का कुल वेतन 18000 रुपये किए जाने का प्रस्ताव है लेकिन एचआरए की दर 10 से घटाकर आठ फीसदी किए जाने का प्रस्ताव है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग लागू होने के बाद आठ फीसदी की दर से कर्मचारी को 1440 रुपये एचआरए का भुगतान होगा। इसी तरह अन्य भत्तों में भी बढ़ोत्तरी प्रस्तावित की गई लेकिन वेतन में मामूली बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा गया है।
सिविल एकाउंट्स ब्रदरहुड के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर तिवारी का कहना है कि सात हजार मूल वेतन पाने वाला कर्मचारी कुल साढ़े सोलह हजार के आसपास वेतन पा रहा है। ऐसे में दस वर्ष बाद उसके वेतन में महज डेढ़ हजार रुपये की बढ़ोतरी पूरी तरह से अनुचित है। भत्तों का भुगतान तो नौकरी के साथ खत्म हो जाएगा। पेंशन, ग्रेच्युटी, पेंशन कम्युटेशन सहित सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले सभी लाभ अंतिम वेतन पर ही आधारित होते हैं। ऐसे में रिटायरमेंट के दौरान और उसके बाद कर्मचारियों को काफी नुकसान होगा। कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति के संयोजक हनुमान प्रसाद श्रीवास्तव का कहना है कि पिछले दस साल के दौरान जिस अनुपात में महंगाई बढ़ी, वेतन बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव उससे काफी कम है। साथ ही प्रस्ताव बनाने वक्त यह ध्यान भी नहीं रखा गया कि दस साल बाद जब आठवां वेतन आयोग लागू होगा तो उस वक्त महंगाई की स्थिति क्या होगी।
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हालांकि कर्मचारी इससे संतुष्ट नहीं हैं। उनका कहना है कि भत्तों में प्रस्तावित बढ़ोत्तरी दूध में उबाल के समान है। रिटायरमेंट दौरान या उसके बाद इसका कोई लाभ नहीं मिलेगा। अगर वेतन में बढ़ोतरी मांग के अनुरूप होती तो कर्मचारियों को रिटायरमेंट के दौरान ग्रेच्युटी और उसके बाद पेंशन में फायदा होता। प्रस्तावित वेतन वृद्धि में तो मौजूदा महंगाई का भी ध्यान नहीं रखा गया और न ही इस बात पर मंथन किया गया कि दस साल जब आठवां वेतन आयोग लागू होगा तो उस वक्त महंगाई की स्थिति क्या होगी।
यह बात सही है कि सातवें वेतन आयोग की संस्तुतियों में कर्मचारियों के भत्तों में बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव रखा गया है। कर्मचारियों को पहले मूल वेतन पर एचआरए मिलता था लेकिन सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों के मुताबिक अब कुल वेतन पर एचआरए मिलेगा। उदाहरण के तौर पर किसी का मूल वेतन सात हजार रुपये है तो उसे वर्तमान दस फीसदी की दर से सात सौ रुपये एचआरए मिलता है। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश के मुताबिक सात हजार रुपये मूल वेतन पाने वाले का कुल वेतन 18000 रुपये किए जाने का प्रस्ताव है लेकिन एचआरए की दर 10 से घटाकर आठ फीसदी किए जाने का प्रस्ताव है। ऐसे में सातवें वेतन आयोग लागू होने के बाद आठ फीसदी की दर से कर्मचारी को 1440 रुपये एचआरए का भुगतान होगा। इसी तरह अन्य भत्तों में भी बढ़ोत्तरी प्रस्तावित की गई लेकिन वेतन में मामूली बढ़ोतरी का प्रस्ताव रखा गया है।
सिविल एकाउंट्स ब्रदरहुड के पूर्व अध्यक्ष हरिशंकर तिवारी का कहना है कि सात हजार मूल वेतन पाने वाला कर्मचारी कुल साढ़े सोलह हजार के आसपास वेतन पा रहा है। ऐसे में दस वर्ष बाद उसके वेतन में महज डेढ़ हजार रुपये की बढ़ोतरी पूरी तरह से अनुचित है। भत्तों का भुगतान तो नौकरी के साथ खत्म हो जाएगा। पेंशन, ग्रेच्युटी, पेंशन कम्युटेशन सहित सेवानिवृत्ति पर मिलने वाले सभी लाभ अंतिम वेतन पर ही आधारित होते हैं। ऐसे में रिटायरमेंट के दौरान और उसके बाद कर्मचारियों को काफी नुकसान होगा। कर्मचारी शिक्षक समन्वय समिति के संयोजक हनुमान प्रसाद श्रीवास्तव का कहना है कि पिछले दस साल के दौरान जिस अनुपात में महंगाई बढ़ी, वेतन बढ़ोत्तरी का प्रस्ताव उससे काफी कम है। साथ ही प्रस्ताव बनाने वक्त यह ध्यान भी नहीं रखा गया कि दस साल बाद जब आठवां वेतन आयोग लागू होगा तो उस वक्त महंगाई की स्थिति क्या होगी।
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