अब शिक्षा का अधिकार कानून के तहत गरीब और वंचित समूहों के बच्चों को
मनमाफिक स्कूल में दाखिला मिल सकेगा। बशर्तें वह स्कूल उनके घर से एक किमी
के दायरे में हो। पहले इन बच्चों को बीएसए की मर्जी के मुताबिक स्कूलों में
ही दाखिला लेना पड़ता था।
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में कक्षा एक में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को दाखिला देने का प्रावधान है। नियमानुसार 25 फीसदी सीटों पर ऐसे बच्चों को कक्षा एक में दाखिला दिया जाएगा
और वह कक्षा आठ तक उसी स्कूल में नि:शुल्क पढ़ सकते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने 2013-14 से शहर में गरीब और वंचित समूह के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए अभियान शुरू किया था। अभी तक ऐसे चिन्हित बच्चों को जिनके घर के पास एक से अधिक मान्यता प्राप्त स्कूल हैं, में से किसी सबसे पास वाले स्कूल में बीएसए दाखिला दिलाते आए हैं, लेकिन शासन ने प्रवेश प्रक्रिया के नियम में अब फेरबदल किया है। शासनादेश के मुताबिक अब बच्चा जिस स्कूल में आवेदन करेगा, वहीं उसे दाखिला दिलाया जाएगा।
चंद बच्चों को ही मिल पा रहा है प्रवेश
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों का हक तो है, लेकिन जिले के गरीब बच्चों को यह हक नाममात्र को मिल पा रहा है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2013-14 में पांच बच्चों, 2014-15 और 2015-16 में मात्र सात-सात गरीब बच्चों को ही प्राइवेट स्कूलों में दाखिला मिल सका।
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शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में कक्षा एक में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों को दाखिला देने का प्रावधान है। नियमानुसार 25 फीसदी सीटों पर ऐसे बच्चों को कक्षा एक में दाखिला दिया जाएगा
और वह कक्षा आठ तक उसी स्कूल में नि:शुल्क पढ़ सकते हैं। बेसिक शिक्षा विभाग ने 2013-14 से शहर में गरीब और वंचित समूह के बच्चों को स्कूल तक पहुंचाने के लिए अभियान शुरू किया था। अभी तक ऐसे चिन्हित बच्चों को जिनके घर के पास एक से अधिक मान्यता प्राप्त स्कूल हैं, में से किसी सबसे पास वाले स्कूल में बीएसए दाखिला दिलाते आए हैं, लेकिन शासन ने प्रवेश प्रक्रिया के नियम में अब फेरबदल किया है। शासनादेश के मुताबिक अब बच्चा जिस स्कूल में आवेदन करेगा, वहीं उसे दाखिला दिलाया जाएगा।
चंद बच्चों को ही मिल पा रहा है प्रवेश
शिक्षा का अधिकार कानून के तहत निजी स्कूलों में 25 फीसदी सीटों पर गरीब बच्चों का हक तो है, लेकिन जिले के गरीब बच्चों को यह हक नाममात्र को मिल पा रहा है। अगर आंकड़ों पर गौर करें तो 2013-14 में पांच बच्चों, 2014-15 और 2015-16 में मात्र सात-सात गरीब बच्चों को ही प्राइवेट स्कूलों में दाखिला मिल सका।
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