यूपी में 72825 सहायक शिक्षकों की भर्ती टीईटी मेरिट के आधार पर ही होगी।
सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में मंगलवार को यूपी सरकार को इलाहाबाद हाईकोर्ट
के निर्देश के मुताबिक नियुक्ति देने का आदेश जारी किया।
हालांकि सर्वोच्च अदालत ने नियुक्ति प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा करने के हाईकोर्ट के आदेश मेें बदलाव कर इसके लिए 12 हफ्ते का समय दिया है।
जस्टिस एचएल दत्तू व जस्टिस एसए बोबड़े की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्तियों का भविष्य इस मुद्दे पर सर्वोच्च अदालत की ओर से जारी किया गया अंतिम आदेश तय करेगा।
अदालत इस मसले से संबंधित राज्य सरकार समेत अन्य याचिकाओं और टीईटी की अनिवार्यता पर 29 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगी। अदालत में यूपी सरकार की ओर से अधिवक्ता शमशाद आलम ने पक्ष रखा।गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 मई 2013 के अनिरस्त कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ओदश मेें जारी रखा है। बता दें कि सपा सरकार ने 31 अगस्त 2012 में जारी किए गए शासनादेश में टीईटी को मात्र अर्हता माना था और चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक कर दिया गया था।
इसी शासनादेश को निरस्त करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत वर्ष 31 मई को सहायक शिक्षकों का चयन टीईटी की मेरिट के आधार पर किए जाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने बसपा सरकार में 30 नवंबर, 2011 को जारी हुए भर्ती विज्ञापन को सही ठहराया।
•टीईटी मेरिट पर ही भ्ार्ती के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट का यूपी सरकार को आदेश
कहा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक करनी होंगी नियुक्तियां
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को घेरा
सुप्रीम कोर्ट : एनसीटीई की ओर से शिक्षकों की भर्ती के लिए लागू की गई टीईटी मेें राज्य सरकार की ओर से संशोधन कर अपने मुताबिक किया जाना उचित नहीं है।
यूपी सरकार : राज्य सरकार ने टीटीई को अपनाते हुए शैक्षणिक गुणांक को भी महत्व दिया है।
कोर्ट : इस मामले में शासनादेश तमाम अभ्यर्थियों के टीईटी पास करने के बाद जारी किया गया।
ऐसी स्थिति मेें राज्य सरकार सिर्फ एनसीटीई के नियमों के मुताबिक जा सकती है।
यूपी सरकार : सिर्फ एनसीटीई के मुताबिक प्रदेश मेें किसी परीक्षा का कराया जाना तो थोपने जैसा है। वैसे भी एनसीटीई दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज नहीं किया गया है।
कोर्ट : शासनादेश के सही और गलत ठहराए जाने के हाईकोर्ट के आदेश के मुद्दे पर अदालत सभी पक्षों की दलीलों पर लंबी सुनवाई कर गौर करेगी। लेकिन राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करे।
यूपी सरकार के अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द करने और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में जारी किए गए नवंबर, 2011 के भर्ती विज्ञापन को सही ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले मेें कोई कमी नहीं है। ऐसे मेें हाईकोर्ट के आदेश पर रोक न लगाए जाने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से उसके अनुपालन के लिए कदम न उठाया जाना अनुचित है।
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हालांकि सर्वोच्च अदालत ने नियुक्ति प्रक्रिया को 31 मार्च तक पूरा करने के हाईकोर्ट के आदेश मेें बदलाव कर इसके लिए 12 हफ्ते का समय दिया है।
जस्टिस एचएल दत्तू व जस्टिस एसए बोबड़े की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि नियुक्तियों का भविष्य इस मुद्दे पर सर्वोच्च अदालत की ओर से जारी किया गया अंतिम आदेश तय करेगा।
अदालत इस मसले से संबंधित राज्य सरकार समेत अन्य याचिकाओं और टीईटी की अनिवार्यता पर 29 अप्रैल को अगली सुनवाई करेगी। अदालत में यूपी सरकार की ओर से अधिवक्ता शमशाद आलम ने पक्ष रखा।गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 31 मई 2013 के अनिरस्त कर दिया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम ओदश मेें जारी रखा है। बता दें कि सपा सरकार ने 31 अगस्त 2012 में जारी किए गए शासनादेश में टीईटी को मात्र अर्हता माना था और चयन का आधार शैक्षणिक गुणांक कर दिया गया था।
इसी शासनादेश को निरस्त करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गत वर्ष 31 मई को सहायक शिक्षकों का चयन टीईटी की मेरिट के आधार पर किए जाने का आदेश दिया था। हाईकोर्ट ने बसपा सरकार में 30 नवंबर, 2011 को जारी हुए भर्ती विज्ञापन को सही ठहराया।
•टीईटी मेरिट पर ही भ्ार्ती के निर्देश
सुप्रीम कोर्ट का यूपी सरकार को आदेश
कहा, इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले के मुताबिक करनी होंगी नियुक्तियां
सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को घेरा
सुप्रीम कोर्ट : एनसीटीई की ओर से शिक्षकों की भर्ती के लिए लागू की गई टीईटी मेें राज्य सरकार की ओर से संशोधन कर अपने मुताबिक किया जाना उचित नहीं है।
यूपी सरकार : राज्य सरकार ने टीटीई को अपनाते हुए शैक्षणिक गुणांक को भी महत्व दिया है।
कोर्ट : इस मामले में शासनादेश तमाम अभ्यर्थियों के टीईटी पास करने के बाद जारी किया गया।
ऐसी स्थिति मेें राज्य सरकार सिर्फ एनसीटीई के नियमों के मुताबिक जा सकती है।
यूपी सरकार : सिर्फ एनसीटीई के मुताबिक प्रदेश मेें किसी परीक्षा का कराया जाना तो थोपने जैसा है। वैसे भी एनसीटीई दिशा-निर्देशों को नजरअंदाज नहीं किया गया है।
कोर्ट : शासनादेश के सही और गलत ठहराए जाने के हाईकोर्ट के आदेश के मुद्दे पर अदालत सभी पक्षों की दलीलों पर लंबी सुनवाई कर गौर करेगी। लेकिन राज्य सरकार हाईकोर्ट के आदेश का अनुपालन करे।
यूपी सरकार के अगस्त, 2012 के शासनादेश को रद्द करने और पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के शासनकाल में जारी किए गए नवंबर, 2011 के भर्ती विज्ञापन को सही ठहराने के हाईकोर्ट के फैसले मेें कोई कमी नहीं है। ऐसे मेें हाईकोर्ट के आदेश पर रोक न लगाए जाने के बावजूद राज्य सरकार की ओर से उसके अनुपालन के लिए कदम न उठाया जाना अनुचित है।
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