अभिलेख सत्यापन पर संदेह का साया, इलाहाबाद में टेबुलेशन रिकॉर्ड (टीआर) के साथ जिस तरह की हेराफेरी हुई है उसकी मिसाल मिलना मुश्किल

यूपी बोर्ड की हाईस्कूल परीक्षा के प्रमाणपत्र पर लिखी जन्म की तारीख जीवंत दस्तावेज माना जाता है। परीक्षा उत्तीर्ण करने के तीन वर्ष के अंतराल में उसमें संशोधन हो सकता है, इसके बाद बोर्ड के अफसर चाहकर भी
उसे बदल नहीं सकते।
यहां तक कि न्यायालय भी जन्म तारीख बदलने पर खासा सख्त रहा है। परीक्षार्थी की मंशा, अफसर के निर्देश व न्यायालय के आदेश पर विभागीय लिपिक भारी पड़े हैं। उन्होंने परीक्षा उत्तीर्ण करने के 17 और 15 बरस बाद सब कुछ बदल डाला है। यूपी बोर्ड के क्षेत्रीय कार्यालय इलाहाबाद में टेबुलेशन रिकॉर्ड (टीआर) के साथ जिस तरह की हेराफेरी हुई है उसकी मिसाल मिलना मुश्किल है। लिपिकों ने 1999 में हाईस्कूल व 2001 में इंटर उत्तीर्ण करने वाले सैकड़ों युवाओं का अनुक्रमांक के सिवा सब कुछ बदल दिया है। यह काम इतनी सफाई से हुआ कि नकली युवा ही असली बन गए, लेकिन समय रहते क्षेत्रीय अपर सचिव ने उसे पकड़ लिया। इससे क्षेत्रीय कार्यालय में हुए पुराने सत्यापन की विश्वसनीयता पर संदेह खड़ा हो गया है। असल में इधर के वर्षो में शिक्षा विभाग में बड़े पैमाने पर हुई शिक्षक व अन्य भर्तियों का सत्यापन कार्य यहां युद्धस्तर पर चला है। शासन ने भी सत्यापन कार्य तेजी से करने का कई बार आदेश जारी किया।

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