Thursday 15 December 2016

2005 के बाद पेंशन ख़त्म होने पर हमने 11 वर्षों में क्या खोया क्या पाया?? प्रदेशीय उपाध्यक्ष प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन(PSPSA)उ०प्र०

हमने देखा इन 11 वर्षों में पेंशन ख़त्म होते हुए ,हमने देखा सुदूर क्षेत्रों में सेवा कर रहीं महिलाओं के साथ
बलात्कार होते हुए ,हमने देखा घने कोहरे में विभागीय अधिकारीयों के डर से दुर्घटनाओ में जान गवांने वालो
को ,हमने देखा mdm के राशन ढो कर जान देने वालो को, छोटी छोटी बात पर निलंबन होते हुए ,हमने देखा नैसर्गिक न्याय के विरुद्ध शिक्षकों के वेतन अवरुद्ध होते ,और अब हमने देखा अन्याय के विरुद्ध लड़ाई में पुलिस के हाथो की गई दरिंदगी को जिसमे अपने शिक्षक साथी को शहीद होना पड़ा

लेकिन हम चुप रहे क्योंकि हम धृतराष्ट्र हैं हमारी आँखे बंद हैं या कह लें हम अपनी आँखो पर पट्टी बांधे हुए हैं और हम देखना नहीं चाहते क्योंकि अगर हम देखेंगे तो जबाब देना पड़ेगा ,लेकिन हम बड़ी मुश्किल से मिले साम्राज्य को खोना नहीं चाहते ,हम वह राजा हैं जो अपनी प्रजा से लगान तो हर साल वसूलते हैं लेकिन उनकी सुरक्षा ,उनके अधिकारों की रक्षा करना हमारा दायित्व नहीं है ..क्योंकि हम ऊपरी सत्ता से पंगा नहीं लेकर लंबे समय तक राज करना चाहते हैं इसलिए हम विरोध नहीं कर सकते     लंबे समय से हमारी आँखों पर पट्टी होने के कारण हमारी आत्मा भी मर चुकी या मरने के कगार पर है
इसलिये "हम न करेंगे और न करने देंगे" यह हमारा सूत्र वाक्य है     पहले हमें यह कहने की जरुरत नहीं पड़ती थी कि हम मान्यता प्राप्त हैं लेकिन जब से हमने आँखों पर पट्टी बाँधी और हमने ,हमें अनदेखा कर कई लोगो को गुट बनाकर ऊपरी सत्ता से लड़ते देखा तब से हम कहने लगे हैं कि हम एक मात्र रजिस्टर्ड मान्यताप्राप्त हैं
                हमें पता है इतिहास में उन्ही लड़ाइयों का जिक्र  है जो लड़ाइयां लंबे समय तक लड़ी गईं... हम इतिहास से बाहर हो जाएं यह हम  नहीं चाहते... हमारी पेंशन की लड़ाई आगे 11 वर्ष और भी चली तो भी हम लड़ेंगे पीछे नहीं हटेंगे   ...हाँ कुछ खरपतवार जल्द ही लड़ाई जीतना चाहते हैं वह केवल गुमराह कर रहे हैं

हम सत्ता धारी हैं हमें ऊपरी सत्ता से कैसे लड़ना है इसकी रणनीति हमारे पास है और हम लड़ रहे हैं और हमारे अंधभक्त समर्थक हमारे साथ हैं क्योंकि अगर हम न हों तो उन्हें काम के बदले वेतन की प्राप्ति भी न हो क्योंकि हम वेतन अवरुद्ध कराने की अद्भुत क्षमता भी रखते हैं

आप लोग निराश परेशान न हों हमारी लड़ाई चल रही है हमने ऊपरी सत्ता को, शिक्षक की मौत के बाद  अपना पुराना मांग पत्र फिर प्रेषित कर याद दिला दिया है कि पहले हमारी सहमति बनी थी और इस बार मांग पूरी न हुई तो हम शिक्षण कार्य का बहिष्कार करेंगे जैसे पहले करते रहे हैं
और अगर चुनाव बाद सरकार बदल भी गई तब भी हम ऐसे ही अपना मांग पत्र प्रेषित करते रहेंगे |

साथियों
ऊपर की कहानी से हो सकता है आप सहमत हों या न भी लेकिन कहानी से जरा भी इफ्तिफाक रखते हों तो आप का कमेंट आना चाहिये
आखिर हम कब तक इन्तजार करेंगे कुछ खादी धारियों को 6 माह की सेवा के बदले भी पेंशन प्राप्त हो जा रही है और रात दिन सरकार के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम करने वाले शिक्षक कर्मचारियों को रिटायरमेंट के बाद ऐसे ही छोड़ दिया जा रहा है और रिटायरमेंट से पहले ही रिटायर हो गए तो पूरा परिवार अधर में ....यह कैसा इन्साफ और सरकार ने 11 वर्षो में उस जिम्मेदारी को भी पूरा न किया जो इन्हें अनिवार्य रूप से करना था लेकिन इतने वर्ष बाद तो अब केवल पुरानी पेंशन की ही लड़ाई लड़नी ज्यादा श्रेयस्कर है आप जान रहे हैं

अब हम कितने आंदोलन करेंगे या कितने साथियों को पुलिस की लाठी से मरते हुए देखेंगे , या ऐसे कितने मृतकों को अपनी जेब से सहायता देकर क्षतिपूर्ति करेंगे जबकि यह जिम्मेदारी हमारी नहीं है

साथियों ,
 जिनका ऊपर जिक्र किया है सक्षम होते हुए भी किस बात का इन्तजार कर रहे हैं क्या उनकी संवेदनाए या लड़ने की शक्ति समाप्त हो चुकी है.....अगर नहीं तो उन्होंने क्यों इस बात की पहल नहीं की जबकि ऐसा अवसर भविष्य में शायद ही मिले क्योंकि लाठी चार्ज के बाद हुई मौत के बाद सरकार बैक फुट पर थी हम लाखों शिक्षक कर्मचारी साथियों के साथ मिलकर चुनाव ,बोर्ड परीक्षा तथा अपने सामान्य कार्यों का बहिष्कार कर सकते थे पूर्ण ताला बंदी के बाद विपक्षी पार्टियों को समर्थन में लेकर सरकार से आखिरी लड़ाई लड़ सकते थे और निश्चित ही इसमें हम सफल भी होते लेकिन
जिन्हें अपनी सत्ता ज्यादा प्यारी थी उन्होंने पहल तक नहीं की हाँ  लोकल लेवल पर छोड़कर। ... जिन्होंने की उनके लिये साधुवाद और जिन्होंने नहीं की वह कैसे करेंगे इसका उपाय भी केवल आपके ही पास है

धन्यवाद ,पोस्ट पढ़ने के लिये
जय शिक्षक
अजहर अहमद, प्रदेशीय उपाध्यक्ष
प्राथमिक शिक्षक प्रशिक्षित स्नातक एसोसिएशन(PSPSA)उ०प्र०
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