कु छ ही दिन पहले प्रदेश की बेसिक शिक्षा मंत्री अनुपमा जायसवाल की अपील ने ध्यान खींचा। उन्होंने अफसरों से अपील की थी कि वे सरकारी स्कूलों को गोद लें। अपने यहां लावारिस बच्चों और चिड़ियाघर के पशु-पक्षियों से लेकर उजड़े गांवों को गोद लेने का चलन है।
पता नहीं, मंत्री महोदया को यह विचार 'हिंदी मीडियम' फिल्म देखकर आया या उनका मौलिक चिंतन उस तरफ गया, जब उन्होंने कुछ सरकारी स्कूलों का दौरा किया, लेकिन सरकारी स्कूलों का हाल सचमुच इस लायक है कि उन्हें कोई गोद ले। सरकार उन्हें कहां तक पाले-चलाए! 'हिंदी मीडियम' फिल्म ने कम से कम इस विषय पर कुछ तो सोचने को मजबूर किया। फिल्म का नायक अंत में एक सरकारी स्कूल को गोद लेकर उसे इस लायक बना देता है कि उसके बच्चे नामी अंग्रेजी स्कूल के बच्चों से टक्कर लेने लगते हैं।
सरकारी स्कूलों का हाल यह है कि उनके बच्चे पीएम संग योग कार्यक्रम में बुलाने के काबिल भी नहीं। उसके लिए भी बड़े निजी स्कूलों के बच्चे चाहिए। योग कार्यक्रम में जैसी चटाई मुफ्त मिली, वैसी कोई चीज सरकारी स्कूल के बच्चों ने कभी देखी न होगी। खैर, मंत्री जी की अपील पर अभी तक कोई आगे आया नहीं। कोई आएगा भी, इस पर हमें शक है।
हमारे पास बहुत पहले से सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने का एक आइडिया है। इस पर मंत्री जी अमल करवा दें तो स्कूलों की हालत रातों-रात सुधर जाएगी। गोद लेने वाले की जरूरत नहीं पड़ेगी। पूरा सरकारी तंत्र सिर के बल खड़ा होकर उन्हें ठीक कर देगा। इमारत चमक जाएगी, फर्नीचर बढ़िया आ जाएंगे, लड़के-लड़कियों के लिए शानदार टॉयलेट बन जाएंगे। काबिल टीचर तैनात हो जाएंगे और वे नियमित पढ़ाने लग जाएंगे। बजट की कोई कमी न होगी।
दावा है कि हमारे आइडिया पर अमल होने के बाद सरकारी स्कूल इतने बेहतर हो जाएंगे कि आज के नामी निजी स्कूलों की पूछ बंद हो जाएगी। उनका परीक्षा परिणाम सबसे शानदार हो जाएगा। सारे अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती करवाने के लिए दौड़ने लगेंगे। निजी स्कूलों की दुकानदारी भी इससे बंद हो जाएगी। और, यह काम प्रदेश में बदलाव का नारा लगाने वाली भाजपा सरकार क्यों नहीं करना चाहेगी। सत्तर से चली आ रही शिक्षा-अराजकता का अंत वह अवश्य करना चाहेगी। इसके लिए यह अचूक नुस्खा है।
चलिए, हम बता देते हैं अपना आइडिया। प्रदेशहित में बिल्कुल मुफ्त में। फौरन यह नियम बना दिया जाए कि प्रदेश सरकार के सभी मंत्रियों के परिवार में जितने भी बच्चे, नाती-पोते हैं, उनकी पढ़ाई सिर्फ सरकारी स्कूलों में होगी। सांसदों, विधायकों और सत्तारूढ़ दल के पदाधिकारियों के समस्त परिवारीजनों के सभी बच्चों के लिए सिर्फ सरकारी स्कूलों के दरवाजे खुले होंगे। यही अनिवार्यता समस्त प्रशासनिक अफसरों के परिवारीजनों के लिए भी हो। इनमें किसी को भी अपने बच्चों, बच्चों के बच्चों आदि को प्रदेश या प्रदेश के बाहर किसी भी निजी स्कूल में पढ़ाने का अधिकार न होगा।
तो मंत्री जी, बेहाल स्कूलों को गोद लेने की अपील मत कीजिए। हमारे आइडिया पर अमल करके देखिए। शर्त यह भी है कि फिर गरीबों के बच्चे वहां से खदेड़े नहीं जाएंगे।
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सरकारी स्कूलों का हाल यह है कि उनके बच्चे पीएम संग योग कार्यक्रम में बुलाने के काबिल भी नहीं। उसके लिए भी बड़े निजी स्कूलों के बच्चे चाहिए। योग कार्यक्रम में जैसी चटाई मुफ्त मिली, वैसी कोई चीज सरकारी स्कूल के बच्चों ने कभी देखी न होगी। खैर, मंत्री जी की अपील पर अभी तक कोई आगे आया नहीं। कोई आएगा भी, इस पर हमें शक है।
हमारे पास बहुत पहले से सरकारी स्कूलों को दुरुस्त करने का एक आइडिया है। इस पर मंत्री जी अमल करवा दें तो स्कूलों की हालत रातों-रात सुधर जाएगी। गोद लेने वाले की जरूरत नहीं पड़ेगी। पूरा सरकारी तंत्र सिर के बल खड़ा होकर उन्हें ठीक कर देगा। इमारत चमक जाएगी, फर्नीचर बढ़िया आ जाएंगे, लड़के-लड़कियों के लिए शानदार टॉयलेट बन जाएंगे। काबिल टीचर तैनात हो जाएंगे और वे नियमित पढ़ाने लग जाएंगे। बजट की कोई कमी न होगी।
दावा है कि हमारे आइडिया पर अमल होने के बाद सरकारी स्कूल इतने बेहतर हो जाएंगे कि आज के नामी निजी स्कूलों की पूछ बंद हो जाएगी। उनका परीक्षा परिणाम सबसे शानदार हो जाएगा। सारे अभिभावक अपने बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती करवाने के लिए दौड़ने लगेंगे। निजी स्कूलों की दुकानदारी भी इससे बंद हो जाएगी। और, यह काम प्रदेश में बदलाव का नारा लगाने वाली भाजपा सरकार क्यों नहीं करना चाहेगी। सत्तर से चली आ रही शिक्षा-अराजकता का अंत वह अवश्य करना चाहेगी। इसके लिए यह अचूक नुस्खा है।
चलिए, हम बता देते हैं अपना आइडिया। प्रदेशहित में बिल्कुल मुफ्त में। फौरन यह नियम बना दिया जाए कि प्रदेश सरकार के सभी मंत्रियों के परिवार में जितने भी बच्चे, नाती-पोते हैं, उनकी पढ़ाई सिर्फ सरकारी स्कूलों में होगी। सांसदों, विधायकों और सत्तारूढ़ दल के पदाधिकारियों के समस्त परिवारीजनों के सभी बच्चों के लिए सिर्फ सरकारी स्कूलों के दरवाजे खुले होंगे। यही अनिवार्यता समस्त प्रशासनिक अफसरों के परिवारीजनों के लिए भी हो। इनमें किसी को भी अपने बच्चों, बच्चों के बच्चों आदि को प्रदेश या प्रदेश के बाहर किसी भी निजी स्कूल में पढ़ाने का अधिकार न होगा।
तो मंत्री जी, बेहाल स्कूलों को गोद लेने की अपील मत कीजिए। हमारे आइडिया पर अमल करके देखिए। शर्त यह भी है कि फिर गरीबों के बच्चे वहां से खदेड़े नहीं जाएंगे।
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