राज्य विश्वविद्यालयों तथा राजकीय व अशासकीय सहायता प्राप्त महाविद्यालयों के शिक्षकों को विशेष अवकाश की सुविधा देने की तैयारी है। इसके तहत शिक्षकों को अनुमन्य अवकाशों के अलावा उन्हें पूरे सेवाकाल के दौरान अधिकतम दस वर्ष की अवधि के लिए विशेष अवकाश मिल सकेगा।
विशेष अवकाश के दौरान शिक्षक को वेतन तो नहीं मिलेगा लेकिन उसे इस दौरान हुई वेतन वृद्धियों का लाभ मिलेगा। विशेष अवकाश के कारण शिक्षक की वरिष्ठता भी नहीं प्रभावित होगी। उप्र राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 में संशोधन के लिए राज्यपाल के निर्देश पर उनके विधि परामर्शी एसएस उपाध्याय की अध्यक्षता में गठित समिति ने यह सिफारिश की है। विशेष अवकाश की व्यवस्था को लागू करने के लिए राज्य विश्वविद्यालयों की प्रथम परिनियमावली में संशोधन की कवायद शासन स्तर पर जारी है। परिनियमावली में संशोधन के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूर कराने की तैयारी है।
अभी है पांच साल के असाधारण अवकाश की व्यवस्था : राज्य विश्वविद्यालयों की प्रथम परिनियमावली में शिक्षकों के लिए स्वीकृत अवकाशों की सूची में असाधारण अवकाश भी शामिल है। इसके तहत शिक्षक के पूरे सेवाकाल के दौरान अधिकतम पांच साल तक की छुट्टी का प्रावधान है। असाधारण अवकाश अवैतनिक होता है। 115 साल मिल सकेगी छुट्टी : शिक्षकों के लिए प्रस्तावित विशेष अवकाश उन्हें मिलने वाले असाधारण अवकाश के अलावा होगा। दोनों को मिलाकर शिक्षक को अधिकतम 15 साल की छुट्टी मिल सकेगी।
उपमुख्यमंत्री का तर्क : उप मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.दिनेश शर्मा तर्क देते हैं कि अभी असाधारण अवकाश के तहत शिक्षकों को अधिकतम पांच साल तक का असाधारण अवकाश अनुमन्य है। जो शिक्षक किसी विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किये जाने के बाद अपना कार्यकाल पूरा करते हैं और फिर उन्हें उसी या किसी अन्य विश्वविद्यालय में कुलपति बना दिया जाता है तो उन्हें मूल विश्वविद्यालय में सेवा देने से कम से कम छह साल के लिए विरत होना पड़ता है। कुलपति का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। ऐसे शिक्षक कुलपति का दूसरा कार्यकाल पूरा करने के बाद यदि अपने मूल विश्वविद्यालय में वापस आकर पढ़ाना चाहें तो कुलपति के रूप में उनके अर्जित अनुभव का लाभ मूल विश्वविद्यालय को मिलेगा लेकिन, ऐसे मामलों में पांच साल का असाधारण अवकाश बाधा बनता है। लिहाजा शिक्षकों के लिए अधिकतम दस वर्ष के विशेष अवकाश की व्यवस्था परिनियमावली में प्रस्तावित है।
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विशेष अवकाश के दौरान शिक्षक को वेतन तो नहीं मिलेगा लेकिन उसे इस दौरान हुई वेतन वृद्धियों का लाभ मिलेगा। विशेष अवकाश के कारण शिक्षक की वरिष्ठता भी नहीं प्रभावित होगी। उप्र राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम, 1973 में संशोधन के लिए राज्यपाल के निर्देश पर उनके विधि परामर्शी एसएस उपाध्याय की अध्यक्षता में गठित समिति ने यह सिफारिश की है। विशेष अवकाश की व्यवस्था को लागू करने के लिए राज्य विश्वविद्यालयों की प्रथम परिनियमावली में संशोधन की कवायद शासन स्तर पर जारी है। परिनियमावली में संशोधन के प्रस्ताव को कैबिनेट से मंजूर कराने की तैयारी है।
अभी है पांच साल के असाधारण अवकाश की व्यवस्था : राज्य विश्वविद्यालयों की प्रथम परिनियमावली में शिक्षकों के लिए स्वीकृत अवकाशों की सूची में असाधारण अवकाश भी शामिल है। इसके तहत शिक्षक के पूरे सेवाकाल के दौरान अधिकतम पांच साल तक की छुट्टी का प्रावधान है। असाधारण अवकाश अवैतनिक होता है। 115 साल मिल सकेगी छुट्टी : शिक्षकों के लिए प्रस्तावित विशेष अवकाश उन्हें मिलने वाले असाधारण अवकाश के अलावा होगा। दोनों को मिलाकर शिक्षक को अधिकतम 15 साल की छुट्टी मिल सकेगी।
उपमुख्यमंत्री का तर्क : उप मुख्यमंत्री और उच्च शिक्षा मंत्री डॉ.दिनेश शर्मा तर्क देते हैं कि अभी असाधारण अवकाश के तहत शिक्षकों को अधिकतम पांच साल तक का असाधारण अवकाश अनुमन्य है। जो शिक्षक किसी विश्वविद्यालय का कुलपति नियुक्त किये जाने के बाद अपना कार्यकाल पूरा करते हैं और फिर उन्हें उसी या किसी अन्य विश्वविद्यालय में कुलपति बना दिया जाता है तो उन्हें मूल विश्वविद्यालय में सेवा देने से कम से कम छह साल के लिए विरत होना पड़ता है। कुलपति का कार्यकाल तीन वर्ष का होता है। ऐसे शिक्षक कुलपति का दूसरा कार्यकाल पूरा करने के बाद यदि अपने मूल विश्वविद्यालय में वापस आकर पढ़ाना चाहें तो कुलपति के रूप में उनके अर्जित अनुभव का लाभ मूल विश्वविद्यालय को मिलेगा लेकिन, ऐसे मामलों में पांच साल का असाधारण अवकाश बाधा बनता है। लिहाजा शिक्षकों के लिए अधिकतम दस वर्ष के विशेष अवकाश की व्यवस्था परिनियमावली में प्रस्तावित है।
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