हाईकोर्ट ने इस मामले में सरकार का पक्ष भी जानना चाहा तो सरकार ने याचिका पर जवाब देने के लिए समय मांगा है। हाईकोर्ट ने सरकार को 3 सप्ताह का समय जवाब देने के लिए दिया है।
गौरतलब है कि मतदाता सूची के पुनरीक्षण आदि कार्य को देखने के लिए टीचरों को बीएलओ के पद का प्रभार दे दिया जाता है। इससे टीचरों पर अतिरिक्त भार पड़ता है और वह शिक्षण कार्य नहीं कर पाते हैं। इसे लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में याचिका दाखिल की गई थी और सरकार द्वारा टीचरों को बीएलओ बनाए जाने के प्रावधान को चैलेंज किया गया था। जिस पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने टीचरों के पक्ष में फैसला सुनाया है और टीचरों को बीएलओ बनाने पर रोक लगा दी है।
इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ में शिक्षिका रचना पांडे व अन्य टीचरों की ओर से सरकार द्वारा टीचरों को बूथ लेवल अधिकारी बनाए जाने के आदेश को चैलेंज किया गया था। न्यायमूर्ति इरशाद अली ने याचिका पर सुनवाई की। इस दौरान दलील दी गई कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम की धारा- 27 व वर्ष 2011 के नियम 21(3) में यह स्पष्ट प्रावधान है कि दस वर्षीय जनगणना, आपदा राहत कर्तव्य व स्थानीय निकाय, राज्य विधानसभा और लोकसभा चुनावों के अतिरिक्त किसी अन्य गैर-शिक्षण कार्य की जिम्मेदारी शिक्षकों को नहीं दी जाएगी।
ऐसे में टीचरों को बीएलओ के पद पर का प्रभार देकर उनसे मतदाता सूची के पुनरीक्षण आदि का कार्य कराया जाना सही नहीं है। इससे शिक्षण कार्य प्रभावित हो रहा है साथ ही टीचरों पर मानसिक दबाव बढ़ता जा रहा है। हाईकोर्ट ने भी सरकार के मौजूदा कार्यप्रणाली को सही नहीं माना और टीचरों को बीएलओ बनाए जाने पर रोक लगा दी है। हालांकि अब हाईकोर्ट में सरकार अपना पक्ष रखेगी जिसके बाद फिर से शिक्षकों का प्रत्युत्तर भी हाईकोर्ट में दाखिल होगा।