Rajju Bhaiya University news : 2 हजार रुपए देने पर प्रैक्टिकल में मिलते हैं अच्छे नंबर, सिर्फ 4 शिक्षकों को मिला 150 केंद्रों पर प्रैक्टिकल कराने का 'ठेका'

 Rajju Bhaiya University news : यूपी से लेकर बिहार तक उच्च शिक्षा के केंद्र भ्रष्टाचार के मामले में हर दिन नया कीर्तिमान बनाने में लगे हैं। कुलपतियों के खिलाफ भ्रष्टाचार की जांच जहां आम बात हो गई है वहीं शिक्षकों के भारी विरोध के बाद भी कुलपति की कुर्सी पर कब्जा जमाए महामहिमों की भी कमी नहीं है। मनमानी के इसी खेल में यूपी का एक विश्वविद्यालय भी डूबा हुआ है।

प्रैक्टिकल की परीक्षा कराने की जिम्मेदारी डेढ़ सौ से ज्यादा केंद्रों पर मात्र चार शिक्षकों को दे दी गई है। प्रैक्टिकल की परीक्षा में कथितौर पर छात्रों से मोटी रकम वसूली के होनेवाले खेल को अंजाम देने के लिए रेवड़ी की तरह यह जिम्मेदारी बांटने के आरोप लग रहे हैं। यह प्रकरण सामने आने के बाद से विश्वविद्यालय प्रशासन अब सच पर झूठ का पर्दा डालने की कोशिश में जुट गया है।

हम यहां बात कर रहे हैं प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय प्रयागराज की। इस पूरे प्रकरण के विस्तार में जानने के पहले यह जान लें कि भाजपा के मातृ संगठन आरएसएस के ही सरसंघचालक के नाम पर यह विश्वविद्यालय बना हुआ है। प्रो॰ राजेन्द्र सिंह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चौथे सरसंघचालक थे। जिन्हें सर्वसाधारण जन से लेकर संघ परिवार तक सभी जगह 'रज्जू भैया' के नाम से ही जाना जाता है। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में 1938 से 1943 तक विद्यार्थी रहे। 1943 से 1967 तक भौतिकी विभाग में प्रवक्ता नियुक्त हुए, और अन्त में विभागाध्यक्ष हो गये। रज्जू भैया भारत के महान गणितज्ञ हरीशचन्द्र के बी०एससी० और एम०एससी० (भौतिक शास्त्र) में सहपाठी थे।

इन्हीं रज्जू भैया के नाम पर खुले विश्वविद्यालय के और इन्हीं के विषय भौतिक विज्ञान के प्रेक्टिकल की आज क्या बंदरबाट हो रही है उसी के नमूने के तौर पर स्नातक भौतिक विज्ञान के प्रैक्टिकल के परीक्षा की चर्चा हो रही है। भौतिक विज्ञान के परीक्षकों की लिस्ट सोशल मीडिया में वायरल हो रही है, जिसके मुताबिक प्रैक्टिकल की परीक्षा को लेकर 304 परीक्षा केंद्रों पर बाह्य परीक्षक के रूप में तैनात शिक्षकों के नाम हैं। इसमें खास बात यह है कि सूची के मुताबिक मनोज तिवारी लाला लक्ष्मी नारायण डिग्री कॉलेज, सिरसा,प्रयागराज में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं।

वित्तपोषित कॉलेज में उनकी स्ववितपोषित शिक्षक के रूप में तैनाती है। यहां बीएससी स्ववितपोषित योजना में संचालित है। मनोज तिवारी को 59 केंद्रों पर भौतिकी के प्रायोगिक परीक्षा कराने के लिए एक्सटर्नल बनाया है। जबकि पदम् सिंह राजकीय महाविद्यालय दानोपुर के शिक्षक है उन्हें 35 केंद्रों पर परीक्षा कराने के लिए एक्सटर्नल बनाया गया है। अशित जायसवाल' को 33 महाविद्यालयों में भैतिकी विषय की प्रायोगिक परीक्षा कराने के लिए एक्सटर्नल बनाया गया है। इनकी तैनाती एचएनबी कॉलेज नैनी में तैनाती है।

खास बात यह है कि प्रोफेसर राजेन्द्र सिंह (रज्जू भैया) विश्वविद्यालय,प्रयागराज के 4 वित्तपोषित शिक्षक अशासकीय कॉलेज के हैं, जिनमें अर्चना सिन्हा को 3 केंद्रों पर भौतिकी विषय की प्रायोगिक परीक्षा कराने के लिए जिम्मेदारी दी गई है। जबकि अर्चना वरिष्ठता सूची में सबसे उपर हैं। इसके अलावा अशासकीय कॉलेज के ही विकास सिंह को 26 महाविद्यालयों में और पंकज कुमार को 13 महाविद्यालय में प्रायोगिक परीक्षा कराने के लिए एक्सटर्नल बनाया गया है।

हम अब बात करते हैं डा.के के सिंह की। इनकी तैनाती पीबीपीजी कॉलेज प्रतापगढ़ में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर है। इनका नाम सूची के मुताबिक कनिष्ठता में है। इसके बाद भी विश्वविद्यालय ने 42 परीक्षा केंद्रों के लिए भौतिकी विषय में प्रेक्टिकल कराने के लिए एक्सटर्नल बनाया है। चर्चा के मुताबिक एस जे सिंह को 14 केंद्रों की जिम्मेदारी मिली है। ये अवकाश प्राप्त शिक्षक हैं। लगभग 2 दशक से तैनात हैं। ये रिश्ते में के के सिंह के श्वशुर भी हैं। मजेदार बात यह है कि यदि के के सिंह और एसजे सिंह को जोड़ दे तो कुल 56 केंद्रों पर उनके परिवार के नाम पर प्रेक्टिकल कराने की जिम्मेदारी है। ऐसे में कुल 304 बीएससी प्रैक्टिकल में से 150 से ज्यादा स्थानों पर केवल 4 शिक्षक को ही परीक्षा कराने की है। वायरल हो रही सूची के मुताबिक भौतिकी विषय को बानगी के तौर पर हम यहां चर्चा कर रहे हैं। ऐसा ही मामला अन्य विषयों का भी है।

यह मामला प्रकाश में आने के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन इसमें सुधार करने के बजाए पूरे मामले पर पर्दा डालने में ही दिलचस्पी दिखा रहा है। प्रशासन इसकी तहकीकात में जुटा है कि आखिर कैसे सूची वायरल हो गई। विश्वविद्यालय प्रशासन के खोजबीन से भले ही वायरल करनेवालों के नाम सामने आ जाए, फिर भी सवाल यह है कि आखिर इस पूरे खेल के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन अपनी जिम्मेदारी से कैसे बच निकल सकता है।

इस खेल के पीछे के सच को उजागर करते हुए गुआक्टा के पूर्व अध्यक्ष व एआईएफयूसीटीओ उत्तर प्रदेश उत्तराखंड के जोनल सेक्रेटरी रहे प्रोफेसर राजेश चन्द्र मिश्र कहते हैं कि इसके पीछे आसानी से प्रोयोगिक परीक्षा कराने के बजाए विश्वविद्यालय प्रशासन की एकमुश्त वसूली का मकसद है। अशासकीय महाविद्यालयों व वरिष्ठता सूची में उप रनाम होने के बावजूद ऐसे कई शिक्षकों को चंद महाविद्यालयों में परीक्षा के लिए एक्सटर्नल बनाया गया है। जबकि वित्तविहीन महाविद्यालयों के शिक्षकों को चालीस से पचास केंद्रों की जिम्मेदारी दी गई है। इसके पीछे की मंशा साफ है। ऐसे शिक्षकों पर महाविद्यालय प्रबंधन से लेकर विश्वविद्यालय प्रशासन तक का शिकंजा रहता है। यूं कह सकते हैं कि इन्हें मानदेय देने में भारी अनियमितता रहती है। इस क्रम में ये प्रबंधन के काफी दबाव में रहते हैं। इन्हें अधिकांश केंद्रों की जिम्मेदारी देकर परीक्षार्थियों से वसूली गई धनराशि को एकमुश्त प्राप्त कर लेने की मंशा है।

एक परीक्षार्थी से दो हजार रूपये से लेकर और अधिक धनराशि तक बेहतर अंक दिलाने के नाम पर वसूल किए जाते हैं। यह रकम लाखों रूपये में होता है। इसी भ्रष्टाचार के खेल को बढ़ावा देने के लिए वरिष्ठता को दरकिनार कर जिम्मेदारी दी गई है। डा. मिश्र सवाल खड़ा करते हुए कहते हैं कि प्रयागराज में अन्य कई विश्वविद्यालयों के अलावा कानपुर व लखनउ के विश्वविद्यालयों के भी शिक्षकों को एक्सटर्नल बनाया जा सकता था। लेकिन इस तरह का कोई पहल न करना प्रशासन की मंशा को उजागर करता है।

इस पूरे प्रकरण मेें विश्वविद्यालय प्रशासन का पक्ष जानने के लिए कुलपति डा. अखिलेश सिंह व परीक्षा नियंत्रक कुलदीप सिंह के मोबाइल नंबर पर कॉल किया गया। लेकिन संपर्क नहीं हो सका। ऐसे में वायरल हो रही सूची के आधार पर ही प्रकरण की सत्यता सामने लाने की कोशिश की गई है।