सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के प्राधिकारियों से सोमवार को राज्य के सभी मंदिरों में अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण पर ‘रोक’ लगाने के किसी भी मौखिक निर्देश के आधार पर नहीं बल्कि कानून के अनुसार काम करने को कहा।
न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता की पीठ ने अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह के तमिलनाडु के मंदिरों में सीधे प्रसारण पर रोक लगाने के 20 जनवरी के एक ‘मौखिक आदेश’ को रद्द करने का अनुरोध करने वाली याचिका पर सुनवाई की और कहा कि कोई भी मौखिक आदेश का पालन करने को बाध्य नहीं है। पीठ ने तमिलनाडु की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी का यह बयान दर्ज किया कि मंदिरों में ‘पूजा-अर्चना’ या अयोध्या में प्राण प्रतिष्ठा समारोह पर कोई पाबंदी नहीं है। उन्होंने कहा कि यह याचिका ‘राजनीति से प्रेरित’ है।पीठ ने प्राधिकारियों से उन वजहों को रिकॉर्ड में रखने और उन आवेदनों का डेटा बनाए रखने को कहा कि जिन्हें मंदिरों में ‘पूजा अर्चना’ और प्राण प्रतिष्ठा समारोह के सीधे प्रसारण के लिए स्वीकृति दी गई है। साथ ही जिन्हें अनुमति नहीं दी गई है, उन्हें भी रिकॉर्ड में रखने को कहा है। पीठ ने याचिका पर तमिलनाडु सरकार से भी 29 जनवरी तक जवाब देने को कहा है। यह याचिका विनोज नामक व्यक्ति ने दायर की है।
बयान वापस ले लिया तो केस क्यों जारी रखा जाए
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को बिहार के उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की याचिका पर सुनवाई 29 जनवरी तक के लिए स्थगित कर दी। पीठ ने कहा कि याचिकाकर्ता ने बयान वापस ले लिया है। शिकायतकर्ता सोच कर बताएं कि मुकदमा क्यों जारी रखना चाहते हैं? न्यायमूर्ति ए.एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने इस मामले में सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।