नैनीताल : अभी उत्तराखंड की मिसाल दे रहे उत्तर प्रदेश के शिक्षामित्र
भी वहाँ के आदेश को देख भयभीत हो गये है. उत्तराखंड हाईकोर्ट ने
शिक्षामित्रों को शिक्षक पात्रता परीक्षा से छूट देने संबंधी NCTE के
शासनादेश को निरस्त कर दिया है. साथ ही हिदायत दी है
कि अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य योग्यता के अंतगर्त आता है। इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की छूट देना संविधान के खिलाप है. हाईकोर्ट के आये इस ताजा फैसले से नियमित शिक्षक का ख्वाब देख रहे प्रदेश के लगभग 1298 शिक्षकों की उम्मीदों को करारा डंस लगा है. हाईकोर्ट ने सरकार को प्रत्येक तीन माह में शिक्षक पात्रता परीक्षा कराने के आदेश पारित किए हैं और कहा इनको कुछ समय दे दो फिर इनको नियमित का देना.
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कि अनिवार्य शिक्षा अधिनियम के अंतर्गत शिक्षकों के लिए टीईटी पास करना अनिवार्य योग्यता के अंतगर्त आता है। इसलिए इसमें किसी भी प्रकार की छूट देना संविधान के खिलाप है. हाईकोर्ट के आये इस ताजा फैसले से नियमित शिक्षक का ख्वाब देख रहे प्रदेश के लगभग 1298 शिक्षकों की उम्मीदों को करारा डंस लगा है. हाईकोर्ट ने सरकार को प्रत्येक तीन माह में शिक्षक पात्रता परीक्षा कराने के आदेश पारित किए हैं और कहा इनको कुछ समय दे दो फिर इनको नियमित का देना.
याची गीता पांडे व अन्य जोकि नैनीताल निवासी हैं. इन लोगों ने प्रदेश के
हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी और अपना पक्ष रखा. और कहा कि वह नियमित
बीटीसी धारक हैं। उन्होंने प्रतियोगात्मक परीक्षा पास व प्रशिक्षण प्राप्त
किया है. वहीँ दूसरी शिक्षामित्रों के लिए सरकार ने दरियादिली दिखाते हुए
शासनादेश जारी कर टीईटी से छूट प्रदान कर दी. यह कहाँ का न्याय है.
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकल पीठ की सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों की ओर से तर्क दिया गया कि वह पिछले कई सालों से अध्यापन कार्य कर रहे हैं। इसी कारण NCTE (नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन) की ओर से उन्हें टीईटी से छूट प्रदान करने संबंधी निर्देश सरकार को दिए गए थे। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने शिक्षामित्रों के इन तर्कों को नकारते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम(RTE) के अंतर्गत प्रत्येक शिक्षक भर्ती पर समान रूप से लागू होता है और शिक्षक को टीईटी पास करना जरुरी है,
जिससे देश के भविष्य यानि बच्चों को अच्छे शिक्षक मिल सकें और अच्छी शिक्षा भी. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने यह भी साफ किया कि एनसीटीई व सरकार द्वारा शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट देना संविधान के खिलाप ही नहीं बल्कि असंवैधानिक नीति है, अपने इस आदेश में एकल पीठ ने सरकार द्वारा शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट देने संबंधी शासनादेश को भी निरस्त कर दिया.
न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की एकल पीठ की सुनवाई के दौरान शिक्षामित्रों की ओर से तर्क दिया गया कि वह पिछले कई सालों से अध्यापन कार्य कर रहे हैं। इसी कारण NCTE (नेशनल काउंसिल आफ टीचर्स एजुकेशन) की ओर से उन्हें टीईटी से छूट प्रदान करने संबंधी निर्देश सरकार को दिए गए थे। न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने शिक्षामित्रों के इन तर्कों को नकारते हुए कहा कि शिक्षा का अधिकार अधिनियम(RTE) के अंतर्गत प्रत्येक शिक्षक भर्ती पर समान रूप से लागू होता है और शिक्षक को टीईटी पास करना जरुरी है,
जिससे देश के भविष्य यानि बच्चों को अच्छे शिक्षक मिल सकें और अच्छी शिक्षा भी. न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया ने यह भी साफ किया कि एनसीटीई व सरकार द्वारा शिक्षा मित्रों को टीईटी से छूट देना संविधान के खिलाप ही नहीं बल्कि असंवैधानिक नीति है, अपने इस आदेश में एकल पीठ ने सरकार द्वारा शिक्षामित्रों को टीईटी से छूट देने संबंधी शासनादेश को भी निरस्त कर दिया.
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