राज्य मुख्यालय । चारों तरफ दीवाली की रोशनी है... मिठाइयां
हैं... खुशियां हैं... लेकिन प्रदेश के लगभग पौने दो लाख शिक्षामित्रों के
घरों में अंधेरा है। वे इस बार मायूस हैं। शिक्षामित्रों ने दीवाली न मनाने
का ऐलान किया है। इनमें से 58 हजार शिक्षामित्र ऐसे हैं जिन्होंने पिछली दीवाली
सहायक अध्यापक के तौर पर मनाई थी लेकिन इस बार वे न तो शिक्षामित्र हैं और
न ही सहायक अध्यापक।
ये वे शिक्षमित्र हैं जिनका समायोजन हाईकोर्ट 12 सितम्बर को रद्द कर चुकी है। आगे की प्रक्रिया पर रोक लगा दी है।
यूपी के लगभग पौने दो लाख शिक्षामित्रों में से लगभग 58 हजार
शिक्षामित्र पिछले वर्ष ही सहायक अध्यापक बन चुके हैं और इनकी नौकरी का एक
वर्ष पूरा हो चुका है। वहीं, लगभग 72 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन इसी
वर्ष हुआ है। बचे हुए लगभग 40 हजार शिक्षामित्रों का समायोजन होना है लेकिन
समायोजन को रद्द करते हुए चालू प्रक्रिया पर हाईकोर्ट रोक लगा चुका है।
लगभग 1.30 लाख शिक्षामित्रों को न मानदेय मिला है और न ही
वेतन... ऊपर से नौकरी जाने का खतरा अलग बना हुआ है। लिहाजा, दीवाली उनके
लिए कोई खुशी नहीं लाई है। हालांकि बचे हुए लगभग 40 हजार शिक्षामित्रों को
मानदेय मिलने के आदेश जारी हो गए हैं।
शिक्षामित्रों ने सहायक अध्यापक बनने का सपना 2011 में देखा
जब शिक्षा का अधिकार एक्ट-2010 लागू हुआ और राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद
ने अप्रशिक्षित अध्यापकों के पढ़ाने पर रोक लगा दी। तत्कालीन बसपा सरकार ने
शिक्षामित्रों को प्रशिक्षित करने का ऐलान किया। तब से शिक्षामित्रों ने
नियमित सहायक अध्यापक बनने का सपना देखना शुरू कर दिया। इस सपने को बल दिया
सपा सरकार ने और इन्हें सहायक अध्यापक के पद पर समायोजित करने का फैसला
लिया। इसमें अध्यापक पात्रता परीक्षा की छूट दी गई और यही गलती भारी पड़ी।
इसी आधार पर हाईकोर्ट ने समायोजन रद्द किया है।
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