Monday 24 October 2016

लक्ष्मण मेला मैदान से लाइव : आखिर क्यों ???

आज लखनऊ में हो रहे धरने का तीसरा दिन है। भीड़ अब भी ठीक ठाक है। पहले दिन तो 700 या 800 के करीब रहे होंगे, जिससे प्रशासन की नीव हिल गयी थी। (ऐसा ही लिखा था आयोजनकर्ताओं ने पहले दिन) अगले दिन भी याची डटे रहे। और आज भी लगभग 300 - 400 तो धरने में मौजूद तो हैं ही।
ये संख्या कम नही है, फाइव स्टार होटल में होने वाली मीटिंग से तो ज्यादा ही है। खैर... पहले दिन तो प्रशासन की नीव हिल गयी थी संख्या देखकर। और आज सपा परिवार में मचे घमासान को ही अपनी कामयाबी बता कर बेरोजगारों को संतुष्ट कर दिया आयोजनकर्ताओं और भाषणबाजों ने।
कल भी किसी छुटभैया नेता को मंच पर बुला कर ज्ञापन वापन सौंपकर पूरा दिन शानदार बीता हुआ बता दिया था। अब जहाँ तक मैं समझ रहा हूँ आयोजन करता कल लाठी बजने से पूर्व ही स्थिति भांपकर किसी पूर्व मंत्री संत्री को बुलाकर और उसे ज्ञापन देकर धरने को सफल बताते हुए समाप्ति की घोषणा कर देंगे। मंच पर विराजमान एक नेता का तो यहाँ तक कहना है कि ये सब ड्रामा सरकार को चिढ़ाने के लिए है ताकि प्रशासन लाठी चार्ज करे और इनका षड्यंत्र पूरा हो सके। क्योंकि नेताओं की मौलिक नियुक्ति का समय है और जीओ भी एक या दो दिन में जारी होने की उम्मीद है। ये बेरोजगारों का ध्यान भटकाकर अपने मिशन में सफल होना चाहते हैं। पहले तो ये लोग कहते थे कि जो कुछ मिलना है कोर्ट से मिलेगा फिर धरने का आयोजन क्यों किया। और धरने में चयनितों का पहुँचना संदिग्ध प्रतीत होता है। बुलाने का अंदाज भी ऐसा जैसे ये लोग बेरोजगारो को चूतिया और बेवकूफ समझ रहे हों। एक नेता ने लिखा कि जो लोग धरने में आएगा उसको ही नौकरी मिलेगी। आज दुसरे म्हाचूतिया की पोस्ट आई कि सरकार ने हमे चुपके से सूचना भिजवाई है कि हम 24 हजार को नौकरी देने जा रहे हैं हमे एक लिस्ट बना कर दे दो। होता है कहीं ऐसा ? क्या साबित करना चाहते हैं ये लोग ? कहीं ऐसा तो नही कि हजारों लोगो से प्राप्त किया गया करोड़ो रुपया हजम करने की फिराक में तो नही इस धरने की आड़ में। कुछ भी हो सकता है।
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