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सहायक अध्यापक भर्ती की पहली और बड़ी परीक्षा में अफसरों ने कराया सरकार को फेल

इलाहाबाद [धर्मेश अवस्थी] । प्रदेश में पहली बार प्राथमिक शिक्षक भर्ती में मेरिट की जगह मेधा को वरीयता मिली। सरकार का मकसद यही रहा कि अच्छे शिक्षक मिलने से वर्षों से बिगड़ी स्कूलों की दशा और दिशा सुधरेगी। इसके लिए शिक्षक चयन की परिपाटी तोड़कर लिखित परीक्षा का नियम बना।
पहली परीक्षा 68500 भारी भरकम पदों के लिए हुई लेकिन, योगी सरकार के इस प्रयोग को अफसरों ने सफल नहीं होने दिया। परीक्षा परिणाम ही नहीं, हर कदम पर किरकिरी कराने का कोई अवसर नौकरशाही ने नहीं गंवाया।
उत्तीर्ण प्रतिशत बदलने से हुई शुरुआत
नौ जनवरी को जारी भर्ती के शासनादेश में जो उत्तीर्ण प्रतिशत सामान्य ओबीसी का 45 व एससी-एसटी का 40 फीसदी तय हुआ, उसे परीक्षा के छह दिन पहले बदला गया। बदले उत्तीर्ण प्रतिशत को हाईकोर्ट ने नहीं माना, तब परीक्षा परिणाम के पांच दिन पहले फिर शासनादेश में तय प्रतिशत का अनुपालन किया गया।
मूल्यांकन पर सवाल, आरक्षण के चलते फजीहत
परीक्षा की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन पर गंभीर सवाल उठे। बड़ी संख्या में अभ्यर्थियों ने कॉपियों की दोबारा जांच के लिए पत्र सौंपे। सोनिका देवी की उत्तर पुस्तिका बदलने का मामला कोर्ट में प्रमाणित हुआ। अब तक उसकी मूल कॉपी नहीं मिली। कुल 23 अनुत्तीर्ण परीक्षार्थियों को सफल बताकर जिला आवंटन हुआ। शिक्षक भर्ती में आरक्षण के नियमों की मनमानी व्याख्या ने भी सरकार की फजीहत करायी। धरना-प्रदर्शन के बाद 6127 अभ्यर्थियों की दूसरी चयन सूची जारी हुई।

अधिक गुणांक वालों को दूर भेजा

अफसरों ने चयनित अभ्यर्थियों को जिला आवंटन में मनमानी की सारी हदें पार कीं। पहली सूची में अधिक गुणांक वालों को दूर के जिलों में भेजा गया है, वहीं दूसरी सूची में कम गुणांक वालों को उनका गृह जिला आवंटित हो गया है। यह नौबत इसलिए आई क्योंकि दो चयन सूची बनी।

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