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क्या दया के आधार पर किसी को अध्यापक बनाया जा सकता है? - ‎अवश्य पढ़ें‬ : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

शिक्षा मित्र केस में बीटीसी की ओर से अधिक से अधिक लोग याची बनें व केस को अपना खुद का व्यक्तिगत केस समझ कर सहयोग करें। जब तक अपना केस मान कर आप सभी लोग आगे नहीं आएँगे, हम लोग ऐसे ही विजय के पीछे भागते रहेंगे जबकि विजय निश्चित है फिर भी आप सभी के ढुलमुल रवैये की वजह से हम अभी तक लक्ष्य तक नहीं पहुँच पाए हैं।


क्या आपको नहीं पता कि शिक्षा मित्र समायोजन पूर्णतया अवैध है? क्या आपको नहीं पता कि यह लोग पूरी तरह से अयोग्य हैं? क्या आपको नहीं पता है कि शिक्षा मित्र हमारी सीटें दीमक की तरह चाट रहे हैं? क्या आपको नहीं पता है कि यदि शिक्षा मित्र नहीं हटे तो किसी भी बीटीसी अभ्यर्थी को नौकरी नहीं मिलेगी? आप सब कुछ जान के भी शांत कैसे बैठ सकते हैं? क्या आप लोग अभी भी यह समझते हैं कि आपको घर बैठे नौकरी मिलेगी? यदि ऐसी सोंच रखते हैं तो मैं केवल आपकी स्थिति पर हस सकता हूँ। समझ नहीं आता, कौन मूर्ख है? आप या आप से सहयोग की उम्मीद रखने वाले।
जिस दिन अंतिम फैसला आएगा, कोर्ट के पास बीटीसी को नौकरी देने के अलावा कोई और रास्ता नहीं होगा। बीटीसी का हक कोई नहीं मार सकता। इस बात को समझिये और बीटीसी के हक की इस लड़ाई में सहयोग कीजिए। एक तरफ हम हैं जो सारी योग्यता रखने के बाद बेरोजगार हैं और दूसरी ओर अंगूठा छाप शिक्षा मित्र हैं जो काला अक्षर भैंस बराबर होकर भी नौकरी का आनन्द लूट रहे हैं। क्या न्याय की परिभाषा में ऐसा होना सम्भव है? अपने हृदय पर हाथ रखिये और पूछिये स्वयं से यह प्रश्न कि 'सर्वथा योग्य व्यक्ति को बेरोजगार बिठा कर अयोग्य व अनपढ़ व्यक्ति को अध्यापक बनाया जा सकता है?', मुझे पूर्ण विश्वास है कि उत्तर आएगा 'कदापि नहीं।'
यह वह ही भारत देश है जहाँ उचित गुरु की तलाश में लोग एक कोने से दूसरे कोने जाया करते थे। देवताओं के गुरु थे बृहस्पति और असुरों के गुरु थे शुक्राचार्य। भारतीय इतिहास में एक से बढ़कर एक महान गुरु/शिक्षक रहे हैं। ऐसे गुरु हुए हैं जिनके आशीर्वाद और शिक्षा के कारण इस देश को महान युग नायक मिले। गुरु वशिष्ठ, कण्व, भारद्वाज, वेदव्यास, अत्रि, गुरु द्रोण व आचार्य चाणक्य से लेकर गुरुनानक और गुरु गोविंद सिंह जी तक लाखों गुरुओं की लिस्ट है। हमें मालूम है कि वल्लभाचार्य, गोविंदाचार्य, कबीर, सांईं बाबा, गजानन महाराज, तुकाराम, ज्ञानेश्वर आदि सभी अपने काल के महान गुरु थे और ओशो भी।
क्या ऐसे महान देश जहाँ युग परिवर्तक गुरुओं ने शिक्षण कार्य किया, वहां शिक्षा मित्रों जैसे अयोग्य व नाकारा लोगों जो सारा दिन कक्षा 1 व 2 में केवल कुर्सी तोड़ते हैं, को गुरु का दर्जा दिया जा सकता है वह भी तब जब योग्य व्यक्ति मौजूद हो और बेरोजगार हो? दया के आधार पर पल्लेदार या बोरियां ढोने वाला तो बनाया जा सकता है लेकिन दया के आधार पर किसी भी अयोग्य को शिक्षक जैसा अति महत्वपूर्ण पद नहीं दिया जा सकता है।
यदि जज साहब दया के आधार पर कोई छूट देने की कोशिश करते भी हैं तो हमारे वकील साहब केवल एक प्रश्न जज साहब से पूछेंगे जिसका उत्तर शायद वह कभी भी हाँ में नहीं दे पाएंगे। प्रश्न होगा, 'मान लीजिए कल को कोई महा अयोग्य व्यक्ति जिसको कक्षा 5 तक की पुस्तकों का भी ज्ञान नहीं है, जज साहब से दया के आधार पर कोई काम धंधा मांगता है तो क्या वह उस व्यक्ति को दया के आधार पर अपने स्वयं के बच्चों को पढ़ाने हेतु अध्यापक नियुक्त कर देंगे?' निश्चित रूप से इसका उत्तर 'नहीं' में आएगा। जब जज साहब अपने स्वयं के बच्चों हेतु दया के आधार पर किसी अयोग्य को अध्यापक नहीं बना सकते तो अपने देश के बच्चों के लिए कैसे किसी अयोग्य को केवल दया के आधार पर अध्यापक बना सकते हैं?
शिक्षा मित्रों का लूट खसूट, चाटुकारिता तथा मुफ़्त की नौकरी पाने का ख़्वाब धूमिल होने जा रहा है। आगे आकर इस धर्मयुद्ध में सहयोग करें। केस में याची बनें तथा प्रत्यक्ष रूप से इस लड़ाई में बीटीसी की ओर से सहभागिता करें।
- जुझारू प्रत्याशी

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