सुल्तानपुर। अब इसे सिस्टम की खूबी कहें या खामी कि किसी को बिना काम किये बतौर वेतन 22 लाख रुपये मिल जाएं। दूसरी ओर उस शख्स को इस बात का एहसास सता रहा हो कि मैंने बिना कुछ किये ही सरकार के पैसे ले लिये।
बात हो रही है एक शिक्षक की। ये सस्पेंड होने के कारण पिछले 22 सालों से स्कूल गये नहीं। दूसरी ओर वेतन के रुप में इनको 22 सालों में लगभग 22 लाख रुपये मिले। अब शिक्षक की अंतर्आत्मा इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं कि वह बिना कुछ किये ही पैसे रखे।
सुल्तानपुर के एक टीचर को सरकार ने तकरीबन 22 लाख रुपये तनख्वाह दी है। खास बात यह कि अपनी ड्यूटी करने के लिए यह शिक्षक लगातार सिस्टम और प्रबंधन-तंत्र से लड़ता रहा। इसकी किसी ने भी नहीं सुनी। 22 वर्षों के इस लम्बे संघर्ष को शिक्षक ने आखिरकार एक पुस्तक का रूप दे दिया। सिस्टम की आंखें खोलने और समाज में ऐसे शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए पीड़ित शिक्षक द्वारा लिखी गई उनकी पुस्तक का शुक्रवार को बाकायदा विमोचन किया गया।
जानकारी के अनुसार नगर के प्रतिष्ठित कॉलेज कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक संस्थान में साल 1973 में डॉ सत्यप्रकाश सिंह बतौर एसोसिएट प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए थे, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। सत्यप्रकाश पढ़ाना चाह रहे थे, लेकिन प्रबंध तंत्र उन्हें इससे रोक रहा था। लिहाजा यह लड़ाई चलती रही और २२ सालों बाद सत्यप्रकाश रिटायर्ड हो गए। मगर इसके बावजूद भी उन्हें 22 साल का वेतन मिला।
बिना पढ़ाए वेतन लेने से आत्मग्लानि से भरे सत्य प्रकाश ने सिस्टम की गलत नीतियों को उजागर करने के लिए पुस्तक लिख डाली। जिसके विमोचन पर पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य, सूबे के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह व पूर्व न्यायधीश चन्द्र भूषण पांडे जैसे लोग मौजूद थे।
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बात हो रही है एक शिक्षक की। ये सस्पेंड होने के कारण पिछले 22 सालों से स्कूल गये नहीं। दूसरी ओर वेतन के रुप में इनको 22 सालों में लगभग 22 लाख रुपये मिले। अब शिक्षक की अंतर्आत्मा इस बात को स्वीकार करने को तैयार नहीं कि वह बिना कुछ किये ही पैसे रखे।
सुल्तानपुर के एक टीचर को सरकार ने तकरीबन 22 लाख रुपये तनख्वाह दी है। खास बात यह कि अपनी ड्यूटी करने के लिए यह शिक्षक लगातार सिस्टम और प्रबंधन-तंत्र से लड़ता रहा। इसकी किसी ने भी नहीं सुनी। 22 वर्षों के इस लम्बे संघर्ष को शिक्षक ने आखिरकार एक पुस्तक का रूप दे दिया। सिस्टम की आंखें खोलने और समाज में ऐसे शिक्षकों को प्रोत्साहित करने के लिए पीड़ित शिक्षक द्वारा लिखी गई उनकी पुस्तक का शुक्रवार को बाकायदा विमोचन किया गया।
जानकारी के अनुसार नगर के प्रतिष्ठित कॉलेज कमला नेहरू भौतिक एवं सामाजिक संस्थान में साल 1973 में डॉ सत्यप्रकाश सिंह बतौर एसोसिएट प्रोफ़ेसर नियुक्त हुए थे, लेकिन कुछ समय बाद उन्हें सस्पेंड कर दिया गया। सत्यप्रकाश पढ़ाना चाह रहे थे, लेकिन प्रबंध तंत्र उन्हें इससे रोक रहा था। लिहाजा यह लड़ाई चलती रही और २२ सालों बाद सत्यप्रकाश रिटायर्ड हो गए। मगर इसके बावजूद भी उन्हें 22 साल का वेतन मिला।
बिना पढ़ाए वेतन लेने से आत्मग्लानि से भरे सत्य प्रकाश ने सिस्टम की गलत नीतियों को उजागर करने के लिए पुस्तक लिख डाली। जिसके विमोचन पर पूर्व राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ पत्रकार राजनाथ सिंह सूर्य, सूबे के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह व पूर्व न्यायधीश चन्द्र भूषण पांडे जैसे लोग मौजूद थे।
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