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विवादों से घिरी रही सपा सरकार की हर भर्ती: जांच के दायरे में आएंगी 600 से अधिक भर्तियां, लगभग दो लाख पदों की नियुक्ति में हुई मनमानी का उजागर होगा सच

भाजपा सरकार ने पिछले पांच साल तक भर्तियों में हुए भ्रष्टाचार की जांच का आदेश देकर उन प्रतियोगी छात्रों की मुरादें पूरी कर दी हैं, जिनकी आवाज नक्कारखाने में तूती की तरह दब जा रही थी।
प्रतियोगी छात्र अलग-अलग स्तर पर कई सालों से भर्तियों की जांच के लिए आंदोलन चला रहे हैं और उन्होंने अदालत में भी लंबी लड़ाई लड़ी। अब उन्हें उम्मीद है कि भर्तियों का सच सामने आएगा।1समाजवादी पार्टी की सरकार में लगभग हर भर्ती को लेकर विवाद खड़े हुए हैं। प्रशासनिक अधिकारियों का चयन करने वाले उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग तक की भर्तियां भी इससे अछूती नहीं रहीं। तत्कालीन सपा सरकार में अध्यक्ष और सदस्यों को मनमानी का पूरा संरक्षण हासिल था। यही वजह थी कि डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में मनमाने फैसले लिए गए और हजारों छात्रों को सड़क पर उतरना पड़ा।

अंतत: हाईकोर्ट ने उनकी नियुक्ति को अवैध करार दिया। जिन भर्तियों को लेकर आरोप लगे हैं, उनमें अधिकांश अनिल यादव के कार्यकाल की ही हैं। पीसीएस 2011 से लेकर पीसीएस 2015 तक की भर्ती पूर्व अध्यक्ष डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में हुई तो इस दौरान लोअर सबआर्डिनेट की चार भर्ती परीक्षाएं संपन्न हुईं। इनमें प्रशासनिक पद की सूबे की सबसे बड़ी पीसीएस की पांच परीक्षाएं भी शामिल हैं।1पीसीएस जे, समीक्षा अधिकारी-सहायक समीक्षा अधिकारी और सहायक अभियोजन अधिकारी की तीन-तीन भर्तियों के परिणाम इस दौरान घोषित किए गए। उनके कार्यकाल में 236 सीधी भर्तियां भी हुईं। 1अब सीबीआइ की जांच में इन भर्तियों का सच उजागर होगा। गौरतलब है कि अनिल यादव के कार्यकाल में ही एसडीएम पद पर एक ही जाति के अभ्यर्थियों का चयन किए जाने के आरोप लगे थे। 1कृषि तकनीकी सहायक सबसे बड़ी भर्ती : सपा शासनकाल में आयोग द्वारा सबसे बड़ी भर्ती कृषि तकनीकी सहायकों की हुई है। इसमें 6628 पद भरे गए। इस भर्ती में ओबीसी के लिए आरक्षित पदों में बड़े पैमाने पर हेरफेर की शिकायत मिली थी। मामला अभी न्यायालय में है। राजस्व निरीक्षक के 617, खाद्य सुरक्षा के 430 पद भी सपा शासनकाल में भरे गए।
पीसीएस का पेपर भी हुआ आउट
भर्तियों में गड़बड़ियों का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि आयोग में पहली बार पीसीएस का पेपर आउट हुआ। डॉ.अनिल यादव के कार्यकाल में हुई पीसीएस 2015 प्री परीक्षा का पेपर लखनऊ के एक सेंटर से आउट हुआ था। इसे लेकर भी जमकर विवाद हुआ था।1असिस्टेंट प्रोफेसर की 1652 भर्ती1इसी कड़ी में उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग भी रहा, जहां अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां को लेकर उठा विवाद हाईकोर्ट तक पहुंचा। 11652 पदों के लिे हुई पहली बार भर्ती परीक्षा विवादों में रही। कापियां सादी छोड़ देने के आरोप भी लगे। आयोग के सचिव को अभी भाजपा शासनकाल में बर्खास्त किया गया है।सपा शासनकाल में पीसीएस 2011 से लेकर 2015 तक लगभग ढाई हजार पदों पर नियुक्तियां हुई हैं। 2011 में एसडीएम और डिप्टी एसपी समेत विभिन्न श्रेणी के 389 पदों पर भर्ती की गई तो 2012 में 345, 2013 में 650, 2014 में 579 और पीसीएस 2015 में 521 पद भरे गए। इसी तरह बीते पांच साल में लोअर सबार्डिनेट के 4138 पदों पर भर्तियां हुई हैं। प्रतियोगी छात्र समिति की ओर से यह मुद्दा उठाने वाले अशोक पांडेय कहते हैं कि जांच में कई अध्यक्ष व सदस्यों पर शिकंजा कस सकता है।
टीजीटी-पीजीटी में भी खेल
लोक सेवा आयोग की ही तरह माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड में प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक परीक्षा (टीजीटी) और प्रवक्ता परीक्षा (पीजीटी) के आठ हजार पदों पर हुई भर्तियां भी जांच के दायरे में आएंगी। यह परीक्षाएं 45 विषयों के लिए हुई थीं और 39 विषयों के परिणाम घोषित होकर नियुक्तियां की जा चुकी हैं। बोर्ड में भी अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्तियां विवादित रहीं।
हम सरकार के आभारी हैं कि हमारी आवाज सुनी गई। पिछले पांच सालों से समिति भर्तियों के भ्रष्टाचार का मुद्दा उठा रही थी। सपा सरकार ने प्रतियोगी छात्रों की आवाज नहीं सुनी थी। सीबीआइ जांच से सच सामने आएगा और छात्रों के साथ न्याय होगा।1- अवनीश पांडेय, मीडिया प्रभारी, प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति।भर्तियों में धांधली के आरोप में शहर में कुछ इस तरह हुए थे प्रदर्शन ’फाइल फोटोपावर कारपोरेशन में सहायक और अवर अभियंताओं की भर्ती में अभ्यर्थियों ने मनमानी का आरोप लगाया। अवर अभियंता भर्ती परीक्षा में तो पूरा एक पेपर ही रिपीट किया गया। इसकी वजह से एक विषय की परीक्षा दोबारा हुई। विद्युत सेवा आयोग की इस भर्ती में भी गड़बड़ियों की जांच सीबीआइ करेगी।
35 हजार सिपाही व चार हजार दारोगा भर्ती भी जांच का हिस्सा1सपा सरकार में पुलिस भर्ती बोर्ड की ओर से हुई ये भर्तियां शुरू से ही विवादों में रहीं। भर्ती शुरू होने के बाद नियमों में बदलाव किए गए। आरक्षण नियमों की अनदेखी ने नियुक्तियों को कोर्ट का विषय बना दिया। आरोपों से घिरी ये नियुक्तियां जांच का हिस्सा होंगी।

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