25/7/17 को सुप्रीमकोर्ट का फैसला: न्याय या कुछ और विचारणीय, मानननीय न्यायधीशों का यह फैसला अभी भी कानून के जानकार लोगो के गले नहीं उतर रहा
25/7/17 को सुप्रिम कोर्ट का फैसला
न्याय या कुछ और विचारणीय
शिक्षामित्रो पर भले ही सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व फैसला आ गया हो किन्तु अभी तक कानून के जानकार लोगो के गले नहीं उतर पा रहा हैं। माननीयो न्यायधीशों का दिया गया फैसला अभी तक लोगो की बीच विवादऔर चर्चाओं में है। लोगों के साथ ही मै भी इस फैसले मे कानूनी संतुलन।नहीं तलाश पा रहा हूँ। क्योकि फैसला ही कुछ ऐसा है।जिनका ढूंढे से भी जबाब नहीं मिल पा रहा है।जो बार बार मेरे मन को कौंध रहे है और मुझको आत्मचिन्तन और मंथन करने को मजबूर कर रहे है ।
माननीय न्यायालय ने याची लाभ के तहत जिन 839 लोगों को नौकरी दिया है उनके चयन का आधार न तो टेट मेरिट है और न ही एकैडमिक और न ही विभागीय आरक्षण का पालन हुआ ।
सुप्रिम कोर्ट ने 72825 की भर्ती मे टेट मेरिट को गलत मानते हुयेभी नियुक्ति पा चुके 66655 अध्यापकों को स्वीकार करता है वहीं दूसरी तरफ इस भर्ती के बचे हुये 6220 पदों को एकैडमिक मेरिट के आधार पर भर्तीका निर्देश जारी करता है।
विगत17 वर्षों से अध्यापकों के समान शिक्षण कार्य के साथ ही अन्य दिये गये दायित्वों का निर्वहन करने के बाद भी इनका समायोजन निरस्त कर दिया जाता है।जब कि इनको टेट परिक्षा पास करने का अवसर भी नही दिया गया।
विचार करें
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भले ही हम बड़ी धूमधाम से रक्षाबंधन का त्योहार मना रहे हो किन्तु 1.72 हजार शिक्षामित्रो के परिवार की आँखों मे बेबसी,मायूसी,लाचारी और अपने चले जाने का सन्नाटा पसरा पड़ा है और इस इंतज़ार में बहन मुँह बाये खड़ी है कि"कि आज मैं अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधूँगी"और इस आस मे खड़ी है कि भैया को सरकार द्वारा दी गयी नौकरी मे से मुझको कुछ न कुछ उपहार मिलेगा।कहते है कि वक़्त बड़ा बेईमान होता है...धैर्य की परीक्षा लेता है... एक बार नहीं दो बार लेता है।आज शिक्षामित्रो के यहाँ पर" न भाई, न राखी का त्योहार। लगा हैं रंजोगमो का बाजार। इसी विरह वेदना से युक्त मेरी लेखनी मुझको लिखने को मजबूर कर रही हैं। नहीं चाहिए ऐसी हत्यारिन नोकरी जो किसी के चमन को उजाड़ दे? अपने इस बिरह वेदना से आप को जोड़ने का प्रयास करते हुए कुछ बातों पर मैं प्रकाश डाल रहा हूँ। मुझ आकिंचन यथातथ्य को लेकर पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे.....
1.गत 17 बर्षो से गाँव गाँव शिक्षामित्रो ने अल्प मानदेय पर पर शिक्षण कार्य को करते हुए शिक्षा की बदहाली को बचाने का काम करते हुए"घर घर विद्या दीप जलाओ।आपने बच्चे सभी पढ़ाओ।। के नारों से अपनी आवाज बुलंद कर स्कूल के लटके तालो को खोलनेे और नामांकन का काम इन्ही शिक्षामित्रो ने किया। तब इन्हें इसी काम का 2200 मिलता था अब 38000 हजार।2200 के मानदेय पर योग्य और 38000 पर अयोग्य।आज के समय मे मजदूर की मजदूरी भी नहीं बनती है फिर इनके साथ दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा है?
2.क्यों हमारी सरकारें,राजनेता और अधिकारी इन अयोग्य शिक्षा शत्रुओ से 17 बर्षो तक शिक्षण कार्य करबाती रही? न जाने इनके शिक्षण से कितनी नस्ले बर्बाद हो चुकी है? भारत के इन नौनिहालों का भविष्य कौन वापस करेगा? इस सन्दर्भ मे किसकी जिमेदारी,जबाबदेही तय हो?
3. पूर्व मे कार्यरत अध्यापको को टेट से छूट और शिक्षमित्र पर लागू यह कैसी शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता? फिर दोहरा मापदंड? क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 - 16 के समानता के अधिकार का उलंघन नही है?
4. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को 14 बर्ष वनवास के बाद रामराज्य,राजतिलक मिला।17 वर्षो की सेवा के बदले इन
शिक्षामित्रो को गम,सितम, लाचारी,बेचारी,भुखमरी और मौत। ऐसा क्यों?
5. अगर शिक्षमित्र दोषी है तो उनके साथ साथ सरकारे, राजनेता,अधिकारी भी दोषी है इनकी जबाबदेही और गुनाह कौन तय करेगा?
6. इस तथ्य को कदापि नहीं भूलना चाहिये देश के सर्वोच्च पद पर आसीन महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उसी प्राo विo से पढ़कर निकले हैं। क्या उस समय टेट पास शिक्षक थे?क्या वर्तमान में कार्यरत सभी शिक्षक टेट पास हैं?फिर शिक्षमित्र के साथ ऐसा क्यों?
7. शिक्षक समाज का दर्पण होता है ।बच्चो मे नए बीज अंकुरित करता है क्या ये शिक्षमित्र अपने आचार,विचार,व्यव्हार और संस्कृति से इतने गिर गए है जिन्हें न्यायालय,लोग के द्वारा शिक्षामूत्र,शिक्षाशत्रु के नाम से विभूषित करते है?क्या एक शिक्षक का अपमान सही है?
8. अगर TET 2011 परीक्षा पारदर्शी थी तो फिर संजय मोहन को किस अपराध की सजा?
9. ये शिक्षमित्र उम्र के उस पड़ाव पर है जहाँ एक तरफ बच्चो का भरण पोषण,बच्चो की पढाई,माता पिता की दवाई,शादी का भार बोझ कंधो पर लदा खड़ा है ठीक दूसरी तरफ tet परीक्षा।क्या श्री रामचंद्र जी और एकलव्य ने 50 बर्षो की अबस्था मे शिक्षा दीक्षा सीखीं?फिर ऐसा इनके साथ क्यों?अगर समय परिवर्तन शील है तो आदमी का मष्तिक भी?
10.सुना है राजा प्रजा का मालिक होता है सुख दुख का साथी होता है।लगता है इस राज्य का राजा धृतराष्ट और गूंगे,बहरे सभासद बैठे है जो समय रहते इस अप्रिय घटना को रोकने में नाकाम साबित हुए।इन 24 लोगो की मौत का जिम्मेदार व् गुनहगार कौन?
11.अगर शिक्षमित्र अयोग्य है तो इनके द्वारा दिया गया 72825 का प्रशिक्षण बच्चो की TC व् अन्य कार्य भी अमान्य होने चाहिये?परन्तु ऐसा अभी तक नही हुआ।
यह केस कानूनन तौर पर कमजोर न होते हुए भी मानवीय दृष्टिकोण से बेहद मजूबत है। अतः भारत सरकार के मुखिया माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध करता हूँ कि शिक्षामित्रो की विषम परीस्थितियो को देखते हुए तत्काल अपना निजी हस्तक्षेप करते हुए शिक्षामित्रो को राहत प्रदान करे।साथ ही साथ प्रधानमंत्री जी इस तथ्य को भी न भूले
"रघुकुल रीति सदा चल आयी।
प्रान जाइ पर वचन न जायी।।
अगर किसी के ह्रदय को क्षति पहुँची है तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
अपने विचार अवश्य दें।
विजय मिश्रा
9453152793
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25/7/17 को सुप्रिम कोर्ट का फैसला
न्याय या कुछ और विचारणीय
शिक्षामित्रो पर भले ही सुप्रीम कोर्ट का अभूतपूर्व फैसला आ गया हो किन्तु अभी तक कानून के जानकार लोगो के गले नहीं उतर पा रहा हैं। माननीयो न्यायधीशों का दिया गया फैसला अभी तक लोगो की बीच विवादऔर चर्चाओं में है। लोगों के साथ ही मै भी इस फैसले मे कानूनी संतुलन।नहीं तलाश पा रहा हूँ। क्योकि फैसला ही कुछ ऐसा है।जिनका ढूंढे से भी जबाब नहीं मिल पा रहा है।जो बार बार मेरे मन को कौंध रहे है और मुझको आत्मचिन्तन और मंथन करने को मजबूर कर रहे है ।
माननीय न्यायालय ने याची लाभ के तहत जिन 839 लोगों को नौकरी दिया है उनके चयन का आधार न तो टेट मेरिट है और न ही एकैडमिक और न ही विभागीय आरक्षण का पालन हुआ ।
सुप्रिम कोर्ट ने 72825 की भर्ती मे टेट मेरिट को गलत मानते हुयेभी नियुक्ति पा चुके 66655 अध्यापकों को स्वीकार करता है वहीं दूसरी तरफ इस भर्ती के बचे हुये 6220 पदों को एकैडमिक मेरिट के आधार पर भर्तीका निर्देश जारी करता है।
विगत17 वर्षों से अध्यापकों के समान शिक्षण कार्य के साथ ही अन्य दिये गये दायित्वों का निर्वहन करने के बाद भी इनका समायोजन निरस्त कर दिया जाता है।जब कि इनको टेट परिक्षा पास करने का अवसर भी नही दिया गया।
विचार करें
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भले ही हम बड़ी धूमधाम से रक्षाबंधन का त्योहार मना रहे हो किन्तु 1.72 हजार शिक्षामित्रो के परिवार की आँखों मे बेबसी,मायूसी,लाचारी और अपने चले जाने का सन्नाटा पसरा पड़ा है और इस इंतज़ार में बहन मुँह बाये खड़ी है कि"कि आज मैं अपने भाई की कलाई पर रक्षासूत्र बाँधूँगी"और इस आस मे खड़ी है कि भैया को सरकार द्वारा दी गयी नौकरी मे से मुझको कुछ न कुछ उपहार मिलेगा।कहते है कि वक़्त बड़ा बेईमान होता है...धैर्य की परीक्षा लेता है... एक बार नहीं दो बार लेता है।आज शिक्षामित्रो के यहाँ पर" न भाई, न राखी का त्योहार। लगा हैं रंजोगमो का बाजार। इसी विरह वेदना से युक्त मेरी लेखनी मुझको लिखने को मजबूर कर रही हैं। नहीं चाहिए ऐसी हत्यारिन नोकरी जो किसी के चमन को उजाड़ दे? अपने इस बिरह वेदना से आप को जोड़ने का प्रयास करते हुए कुछ बातों पर मैं प्रकाश डाल रहा हूँ। मुझ आकिंचन यथातथ्य को लेकर पाठकगण अपनी प्रतिक्रिया जरूर दे.....
1.गत 17 बर्षो से गाँव गाँव शिक्षामित्रो ने अल्प मानदेय पर पर शिक्षण कार्य को करते हुए शिक्षा की बदहाली को बचाने का काम करते हुए"घर घर विद्या दीप जलाओ।आपने बच्चे सभी पढ़ाओ।। के नारों से अपनी आवाज बुलंद कर स्कूल के लटके तालो को खोलनेे और नामांकन का काम इन्ही शिक्षामित्रो ने किया। तब इन्हें इसी काम का 2200 मिलता था अब 38000 हजार।2200 के मानदेय पर योग्य और 38000 पर अयोग्य।आज के समय मे मजदूर की मजदूरी भी नहीं बनती है फिर इनके साथ दोहरा मापदंड क्यों अपनाया जा रहा है?
2.क्यों हमारी सरकारें,राजनेता और अधिकारी इन अयोग्य शिक्षा शत्रुओ से 17 बर्षो तक शिक्षण कार्य करबाती रही? न जाने इनके शिक्षण से कितनी नस्ले बर्बाद हो चुकी है? भारत के इन नौनिहालों का भविष्य कौन वापस करेगा? इस सन्दर्भ मे किसकी जिमेदारी,जबाबदेही तय हो?
3. पूर्व मे कार्यरत अध्यापको को टेट से छूट और शिक्षमित्र पर लागू यह कैसी शिक्षा की गुणवत्ता से समझौता? फिर दोहरा मापदंड? क्या यह संविधान के अनुच्छेद 14 - 16 के समानता के अधिकार का उलंघन नही है?
4. मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम को 14 बर्ष वनवास के बाद रामराज्य,राजतिलक मिला।17 वर्षो की सेवा के बदले इन
शिक्षामित्रो को गम,सितम, लाचारी,बेचारी,भुखमरी और मौत। ऐसा क्यों?
5. अगर शिक्षमित्र दोषी है तो उनके साथ साथ सरकारे, राजनेता,अधिकारी भी दोषी है इनकी जबाबदेही और गुनाह कौन तय करेगा?
6. इस तथ्य को कदापि नहीं भूलना चाहिये देश के सर्वोच्च पद पर आसीन महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद भी उसी प्राo विo से पढ़कर निकले हैं। क्या उस समय टेट पास शिक्षक थे?क्या वर्तमान में कार्यरत सभी शिक्षक टेट पास हैं?फिर शिक्षमित्र के साथ ऐसा क्यों?
7. शिक्षक समाज का दर्पण होता है ।बच्चो मे नए बीज अंकुरित करता है क्या ये शिक्षमित्र अपने आचार,विचार,व्यव्हार और संस्कृति से इतने गिर गए है जिन्हें न्यायालय,लोग के द्वारा शिक्षामूत्र,शिक्षाशत्रु के नाम से विभूषित करते है?क्या एक शिक्षक का अपमान सही है?
8. अगर TET 2011 परीक्षा पारदर्शी थी तो फिर संजय मोहन को किस अपराध की सजा?
9. ये शिक्षमित्र उम्र के उस पड़ाव पर है जहाँ एक तरफ बच्चो का भरण पोषण,बच्चो की पढाई,माता पिता की दवाई,शादी का भार बोझ कंधो पर लदा खड़ा है ठीक दूसरी तरफ tet परीक्षा।क्या श्री रामचंद्र जी और एकलव्य ने 50 बर्षो की अबस्था मे शिक्षा दीक्षा सीखीं?फिर ऐसा इनके साथ क्यों?अगर समय परिवर्तन शील है तो आदमी का मष्तिक भी?
10.सुना है राजा प्रजा का मालिक होता है सुख दुख का साथी होता है।लगता है इस राज्य का राजा धृतराष्ट और गूंगे,बहरे सभासद बैठे है जो समय रहते इस अप्रिय घटना को रोकने में नाकाम साबित हुए।इन 24 लोगो की मौत का जिम्मेदार व् गुनहगार कौन?
11.अगर शिक्षमित्र अयोग्य है तो इनके द्वारा दिया गया 72825 का प्रशिक्षण बच्चो की TC व् अन्य कार्य भी अमान्य होने चाहिये?परन्तु ऐसा अभी तक नही हुआ।
यह केस कानूनन तौर पर कमजोर न होते हुए भी मानवीय दृष्टिकोण से बेहद मजूबत है। अतः भारत सरकार के मुखिया माननीय श्री नरेंद्र मोदी जी से अनुरोध करता हूँ कि शिक्षामित्रो की विषम परीस्थितियो को देखते हुए तत्काल अपना निजी हस्तक्षेप करते हुए शिक्षामित्रो को राहत प्रदान करे।साथ ही साथ प्रधानमंत्री जी इस तथ्य को भी न भूले
"रघुकुल रीति सदा चल आयी।
प्रान जाइ पर वचन न जायी।।
अगर किसी के ह्रदय को क्षति पहुँची है तो क्षमा प्रार्थी हूँ।
अपने विचार अवश्य दें।
विजय मिश्रा
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