मोहम्मद अरशद
शिक्षा मित्र अवैध समायोजन मामले पर आदेश आने के बाद अध्यादेश लाने की बात चल रही है । समान्यतः अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा तब लाया जाता है जब संसद के दोनों सदन न चल रहे हो और कोई विशेष कानून त्वरित निर्णय लेते हुए पारित करना हो ।
राष्ट्रपति को यह अधिकार भारतीय संविधान के आर्टिकल 123 से मिला हुआ है ।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 213 के तहत राज्यों के राज्यपाल को भी ऐसी ही शक्तियाँ मिली हुई है राज्यपाल भी सदन न चलने तथा तथा राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित कानून से सहमत होने की स्थिति मे किसी मामले पर अध्यादेश ला सकते हैं ।
समायोजन से पूर्व तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने अवैध समायोजन को वैध साबित करने के लिए राज्य सरकार ने दो जगह महत्वपूर्ण संशोधन किए -
1- Uttar Pradesh Right of Children to Free
and Compulsory Education (First Amendment) Rules 2014 मे 30 मई 2014 को संशोधन करते हुए नियम 16 -क जोड़ा गया और इसे विधान सभा और विधान परिषद मे पास कराया गया जिसपर अंतिम मुहर राज्यपाल महोदय की लगी । इस नियम से शिक्षा मित्रों को टी ई टी से छूट दी गयी ।
2- Uttar Pradesh Basic Education (Teachers) Service
(Nineteenth Amendment) Rules 2014 लाये गए और इसमे Rule 5(2) the appointment of Shiksha Mitras, Rule 8(2)(c) तथा Rule 14(6) के तहत सहायक अध्यापक पद पर समायोजन का नियम बनाया गया । यह 19 वां संशोधन था । इसे भी दोनों सदनों और राज्यपाल महोदय की मुहर लगी ।
ये एक प्रकार के अध्यादेश ही थे या यूं कहिए की अध्यादेश से भी मजबूत कानून थे तो सरकार और राज्यपाल द्वारा पारित किए गए थे लेकिन ये दोनों अमेंडमेंट केन्द्रीय कानूनों और भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 , 16 , 309 के उल्लंघन के चलते हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से रद्द कर दिये गए ।
राज्य से कानून / अध्यादेश के प्रयास किए और कोर्ट ने आईना दिखाया अगर केंद्र सरकार द्वारा बीटीसी बेरोजगारों के पेट पर लाट मारते हुए ऐसे प्रयास पुनः किए जाएंगे तो वो भी ख़ारिज होंगे क्यूकी भारत का संविधान अवैध और अनैतिक समायोजन की इजाजत नही देना । सरकार यह बात भली भांति समझती है इसलिए वो ऐसा कोई प्रयास नही करेगी ।
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शिक्षा मित्र अवैध समायोजन मामले पर आदेश आने के बाद अध्यादेश लाने की बात चल रही है । समान्यतः अध्यादेश राष्ट्रपति द्वारा तब लाया जाता है जब संसद के दोनों सदन न चल रहे हो और कोई विशेष कानून त्वरित निर्णय लेते हुए पारित करना हो ।
राष्ट्रपति को यह अधिकार भारतीय संविधान के आर्टिकल 123 से मिला हुआ है ।
भारतीय संविधान के आर्टिकल 213 के तहत राज्यों के राज्यपाल को भी ऐसी ही शक्तियाँ मिली हुई है राज्यपाल भी सदन न चलने तथा तथा राज्य सरकार द्वारा प्रस्तावित कानून से सहमत होने की स्थिति मे किसी मामले पर अध्यादेश ला सकते हैं ।
समायोजन से पूर्व तत्कालीन समाजवादी पार्टी की सरकार ने अवैध समायोजन को वैध साबित करने के लिए राज्य सरकार ने दो जगह महत्वपूर्ण संशोधन किए -
1- Uttar Pradesh Right of Children to Free
and Compulsory Education (First Amendment) Rules 2014 मे 30 मई 2014 को संशोधन करते हुए नियम 16 -क जोड़ा गया और इसे विधान सभा और विधान परिषद मे पास कराया गया जिसपर अंतिम मुहर राज्यपाल महोदय की लगी । इस नियम से शिक्षा मित्रों को टी ई टी से छूट दी गयी ।
2- Uttar Pradesh Basic Education (Teachers) Service
(Nineteenth Amendment) Rules 2014 लाये गए और इसमे Rule 5(2) the appointment of Shiksha Mitras, Rule 8(2)(c) तथा Rule 14(6) के तहत सहायक अध्यापक पद पर समायोजन का नियम बनाया गया । यह 19 वां संशोधन था । इसे भी दोनों सदनों और राज्यपाल महोदय की मुहर लगी ।
ये एक प्रकार के अध्यादेश ही थे या यूं कहिए की अध्यादेश से भी मजबूत कानून थे तो सरकार और राज्यपाल द्वारा पारित किए गए थे लेकिन ये दोनों अमेंडमेंट केन्द्रीय कानूनों और भारतीय संविधान के आर्टिकल 14 , 16 , 309 के उल्लंघन के चलते हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से रद्द कर दिये गए ।
राज्य से कानून / अध्यादेश के प्रयास किए और कोर्ट ने आईना दिखाया अगर केंद्र सरकार द्वारा बीटीसी बेरोजगारों के पेट पर लाट मारते हुए ऐसे प्रयास पुनः किए जाएंगे तो वो भी ख़ारिज होंगे क्यूकी भारत का संविधान अवैध और अनैतिक समायोजन की इजाजत नही देना । सरकार यह बात भली भांति समझती है इसलिए वो ऐसा कोई प्रयास नही करेगी ।
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