बेसिक शिक्षा विभाग में बड़े फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ है। सपा सरकार में
शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने के दौरान जिले में 165 ऐसे लोगों को
तैनाती दे दी गई जो शिक्षामित्र थे ही नहीं।
अफसरों और बाबुओं की मिलीभगत से ऐसे लोगों को जिले के अलग-अलग स्कूलों में सहायक अध्यापक के रूप में तैनात कर दिया गया। शिक्षामित्रों का अध्यापक के रूप में समायोजन सुप्रीमकोर्ट से निरस्त होने के बाद योगी सरकार ने शिक्षामित्रों के मूल विद्यालयों में तैनाती का आदेश दिया तब जाकर इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। पता चला कि इनके मूल विद्यालय से संबंधित कोई भी रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं है। अब विभाग चिह्नित किए गए लोगों की जांच कराने की तैयारी मे हैं। आशंका जताई जा रही है कि फर्जीवाड़ा कर तैनाती पाने वालों की संख्या में अभी और इजाफा हो सकता है।
बेसिक शिक्षा विभाग के प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर फर्जी ढंग से तैनाती पाने वाले 21 शिक्षकों को बाहर करने के बाद फर्जीवाड़ा का एक और बड़ा मामला प्रकाश में आया है। सपा राज में प्राइमरी स्कूलों में तैनात शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाकर स्कूलों तैनाती दे दी गई। इसमें अधिकांश महिला शिक्षामित्रों को उनकी इच्छा के अनुरूप स्कूलों में तैनाती दी गई तो पुरुष शिक्षामित्रों को दूसरे ब्लाक के स्कूलों में तैनाती दी गई।
यही नहीं सहायक अध्यापक बनने के बाद विभाग से वेतन भी जारी होने लगा। एक अगस्त 2014 और एक मई 2015 को जिले के 2426 शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के रूप में तैनात करने में विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने जमकर खेल किया। अफसरों ने ऐसे लोगों को भी सहायक अध्यापक बनाकर स्कूलों में तैनाती दे दी, जो किसी भी स्कूल में शिक्षामित्र नहीं थे। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब सूबे की योगी सरकार ने शिक्षामित्रों को मूल स्कूलों में वापस आने का आदेश जारी कर दिया। यह आदेश आते ही उनकी मुसीबत यह बढ़ गई कि वह किस स्कूल में जाएं। दरअसल इनके मूल विद्यालय से संबंधित कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला। फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों ने बीएसए पर दबाव बनाया कि जो जहां पर तैनात है, उसी स्थान पर मानदेय का भुगतान कर दिया जाए। जिले के नेताओं के दबाव में बीएसए ने ऐसा आदेश भी जारी कर दिया, मगर इसके बाद जब उन्हें फर्जीवाड़े की जानकारी हुई तो वह परेशान हो गए। उन्होंने संदिग्ध लोगों के मानदेय भुगतान पर रोक लगाते हुए मामले की जांच शुरू करा दी है।
नियुक्ति पत्र में नहीं था पुराने स्कूल का नाम
शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने का जो नियुक्ति पत्र दिया गया, उसमें वह किस स्कूल में शिक्षामित्र थे, इसका जिक्र ही नहीं किया गया। अगर स्कूल का नाम लिखा गया होता तो फर्जीवाड़े का खुलासा तुरंत हो जाता।
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अफसरों और बाबुओं की मिलीभगत से ऐसे लोगों को जिले के अलग-अलग स्कूलों में सहायक अध्यापक के रूप में तैनात कर दिया गया। शिक्षामित्रों का अध्यापक के रूप में समायोजन सुप्रीमकोर्ट से निरस्त होने के बाद योगी सरकार ने शिक्षामित्रों के मूल विद्यालयों में तैनाती का आदेश दिया तब जाकर इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। पता चला कि इनके मूल विद्यालय से संबंधित कोई भी रिकॉर्ड विभाग के पास नहीं है। अब विभाग चिह्नित किए गए लोगों की जांच कराने की तैयारी मे हैं। आशंका जताई जा रही है कि फर्जीवाड़ा कर तैनाती पाने वालों की संख्या में अभी और इजाफा हो सकता है।
बेसिक शिक्षा विभाग के प्राइमरी स्कूलों में सहायक अध्यापक पद पर फर्जी ढंग से तैनाती पाने वाले 21 शिक्षकों को बाहर करने के बाद फर्जीवाड़ा का एक और बड़ा मामला प्रकाश में आया है। सपा राज में प्राइमरी स्कूलों में तैनात शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाकर स्कूलों तैनाती दे दी गई। इसमें अधिकांश महिला शिक्षामित्रों को उनकी इच्छा के अनुरूप स्कूलों में तैनाती दी गई तो पुरुष शिक्षामित्रों को दूसरे ब्लाक के स्कूलों में तैनाती दी गई।
यही नहीं सहायक अध्यापक बनने के बाद विभाग से वेतन भी जारी होने लगा। एक अगस्त 2014 और एक मई 2015 को जिले के 2426 शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक के रूप में तैनात करने में विभागीय अधिकारियों और कर्मचारियों ने जमकर खेल किया। अफसरों ने ऐसे लोगों को भी सहायक अध्यापक बनाकर स्कूलों में तैनाती दे दी, जो किसी भी स्कूल में शिक्षामित्र नहीं थे। इस बात का खुलासा तब हुआ, जब सूबे की योगी सरकार ने शिक्षामित्रों को मूल स्कूलों में वापस आने का आदेश जारी कर दिया। यह आदेश आते ही उनकी मुसीबत यह बढ़ गई कि वह किस स्कूल में जाएं। दरअसल इनके मूल विद्यालय से संबंधित कोई रिकॉर्ड ही नहीं मिला। फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों ने बीएसए पर दबाव बनाया कि जो जहां पर तैनात है, उसी स्थान पर मानदेय का भुगतान कर दिया जाए। जिले के नेताओं के दबाव में बीएसए ने ऐसा आदेश भी जारी कर दिया, मगर इसके बाद जब उन्हें फर्जीवाड़े की जानकारी हुई तो वह परेशान हो गए। उन्होंने संदिग्ध लोगों के मानदेय भुगतान पर रोक लगाते हुए मामले की जांच शुरू करा दी है।
नियुक्ति पत्र में नहीं था पुराने स्कूल का नाम
शिक्षामित्रों को सहायक अध्यापक बनाने का जो नियुक्ति पत्र दिया गया, उसमें वह किस स्कूल में शिक्षामित्र थे, इसका जिक्र ही नहीं किया गया। अगर स्कूल का नाम लिखा गया होता तो फर्जीवाड़े का खुलासा तुरंत हो जाता।
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