सुप्रीम फैसला मदरसों में शिक्षकों की मनमानी भर्ती नहीं कर सकेंगे, पहले भी निरस्त हो चुका फैसला
बेहतर उम्मीदवारों का चयन प्राथमिकता
● यदि अल्पसंख्यक संस्थान के पास नियामक व्यवस्था के तहत दिए गए उम्मीदवार की तुलना में बेहतर उम्मीदवार हैं तो संस्थान प्राधिकरण के उम्मीदवार को अस्वीकार कर सकता है।
● यदि शिक्षा प्रदान करने के लिए आयोग द्वारा नामित व्यक्ति अन्यथा ज्यादा योग्य और उपयुक्त है तो अल्पसंख्यक संस्थान उसे अस्वीकार करके संस्था को उत्कृष्टता प्राप्त करने में बाधक बनेगा।
● इस प्रकार ऐसी कोई भी अस्वीकृति संविधान के अनुच्छेद 30 (1) के तहत संरक्षित अधिकारों के दायरे में नहीं होगी।
मदरसों ने बताया था अधिकारों का उल्लंघन
मदरसों का कहना था कि आयोग बनाकर सरकार ने अनुच्छेद 30(1) में मिले संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन किया है। आयोग सरकार का अंग है। वह शिक्षकों की सूची उन्हें भेजता है जिन्हें मदरसों में पढ़ाने के लिए नियुक्त करना आवश्यक है।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सहायता प्राप्त अल्पसंख्यक शिक्षण संस्थान/स्कूल/कॉलेज अपनी मर्जी से शिक्षकों की नियुक्ति नहीं कर सकते। सरकार उन्हें योग्य और उपयुक्त शिक्षक देती है तो उन्हें उनकी नियुक्ति करनी होगी। यह फैसला सुनाते हुए शीर्ष अदालत ने पश्चिम बंगाल मदरसा सेवा आयोग कानून, 2008 को वैध घोषित कर दिया।
कई धाराओं को रद्द कर दिया था कलकत्ता हाईकोर्ट ने मदरसा सेवा आयोग कानून की धारा 8, 10, 11, 12 को असंवैधानिक ठहराते हुए निरस्त कर दिया था। कहा था कि ये प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 30 (1) का उल्लंघन है, जिसमें अल्पसंख्यकों को शिक्षण संस्थानों की स्थापना और उनके प्रशासन का अधिकार है।
आदेश को चुनौती हाईकोर्ट के आदेश को पश्चिम बंगाल सरकार और कुछ उम्मीदवारों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी जिन्हें सेवा आयोग ने मदरसों के लिए नामित किया था। इसके बाद मजना हाई मदरसा आदि ने फिर से सुप्रीम कोर्ट में रिट याचिका दायर की जिसे जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने खारिज कर दिया। पीठ ने कहा कि रिट याचिका पूरी तरह से गलत है।
पाई फाउंडेशन केस का हवाला जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने अपने फैसले में कहा कि टीएमए पाई फाउंडेशन केस (1993) में 11 जजों की पीठ ने पाया था कि संविधान के अनुच्छेद 30(1) के तहत अल्पसंख्यक संस्थानों को पूर्ण अधिकार नहीं है। कोर्ट ने कहा कि यदि वे सरकार से आर्थिक सहायता ले रहे हैं तो उन्हें सरकार के योग्यता और उत्कृष्टता के मानदंडों का पालन करना होगा, क्योंकि शिक्षक क्या पढ़ा रहे हैं ये देखना सरकार का काम है।
अदालत ने कहा कि योग्यता एवं उत्कृष्टता की अवधारणा से कोई भी विचलन अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थानों को तय किए गए लक्ष्य प्राप्त करने नहीं देगा। इसके अलावा यदि योग्यता एकमात्र और प्रशासी मानदंड नहीं है तो अल्पसंख्यक संस्थान गैर अल्पसंख्यक संस्थानों के साथ कदम से कदम मिलाने के बजाय उनसे पीछे रह सकते हैं।
इससे पूर्व सुप्रीम कोर्ट ने जनवरी 2020 में हाईकोर्ट के फैसले को निरस्त कर दिया था। बंगाल मदरसा सेवा आयोग अधिनियम, 2008 को सही ठहराया था। इसके जरिये सरकार सहायता प्राप्त मदरसों में योग्य शिक्षक नियुक्त कर रही थी।
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