न्यायमूर्ति श्री दीपक मिश्रा ने ओपन कोर्ट में कहा कि मैंने अपने जीवन में ऐसा मुकदमा नहीं देखा ।
उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? यह सचमुच एक कठिन केस है । शिक्षामित्रों का चयन बिना सर्विस रूल के दिनांक 26 मई 1999 के शासनादेश पर हुआ था ।
चयन ग्रामीण स्तर पर हुआ था और रिजर्वेशन पालिसी फॉलो नहीं हुयी थी इसलिए जब शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन होने लगा तो हाई कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने आर्टिकल 14,15,16 और 309 के उलंघन में समायोजन निरस्त कर दिया ।
यदि शिक्षामित्रों का चयन शासनादेश के साथ सर्विस रूल में टीचर बनने का जो मानक है उसके अनुरूप हुआ होता तो समायोजन करते वक़्त कोई दिक्कत न आती ।
इसी प्रकार प्रशिक्षु शिक्षकों का चयन बिना सर्विस रूल के दिनांक 27 सितम्बर 2011 के शासनादेश पर हुआ ।
चयन में सर्विस रूल में निर्धारित शिक्षक बनने का मानक भी फॉलो नहीं किया गया ।
यदि सर्विस रूल का मानक फॉलो हुआ होता तो प्रशिक्षण के बाद होने वाला समायोजन रद्द न होता ।
मैंने इसलिए प्रशिक्षुओं के समायोजन को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है और सुप्रीम कोर्ट में भी अब डब्ल्यूपी(सी) के जरिये चुनौती देने जा रहा हूँ ।
कपिल देव यादव ने पुराना विज्ञापन रद्द करने की मांग की है इसलिए पुराना विज्ञापन बचाने के लिए कोर्ट कपिल देव को राहत देना चाहेगी लेकिन बिना शिक्षामित्र हटे कपिल देव को राहत नहीं मिल पायेगी
और यदि प्रशिक्षु न हटे तो शिक्षामित्र भी नहीं हटेंगे क्योंकि दोनों की स्थिति समान है इसलिए न्यायमूर्ति ने शिक्षामित्र मामला सिविल अपील से टैग कर दिया ।
बीटीसी को शिक्षामित्र हटाने के लिए प्रशिक्षु शिक्षकों पर भी हमला करना पड़ेगा अन्यथा जितना मजबूत प्रशिक्षु शिक्षक होते जायेंगे उतना ही मजबूत शिक्षामित्र भी होते जायेंगे ।
अंत में न्यायमूर्ति यूपी बेसिक सेवा नियमावली 1981 के आधार पर फैसला करने को मजबूर होंगे ।
मैंने भी सर्विस रूल में वर्गीकरण न होने के कारण पुराने विज्ञापन की अलग-अलग चयन सूची का विरोध किया है ।
हिमांशु राणा ने डब्ल्यूपी(सी) के जरिये आर्टिकल 21A के उलंघन में सभी पद भरने की मांग की है , इसके लिए रिट 631/04 के आदेश का हवाला दिया है ।
न्यायमूर्ति बीएड को 72825 से अधिक एक भी पद देने को तैयार नहीं हैं इसलिए फाइनल बहस में 72825 पद बीएड को देने के बाद बीटीसी से अवशेष पद को शिक्षामित्रों को देने को बाध्य हो सकते हैं क्योंकि RTE एक्ट का सेक्शन 26 यदि योग्य बेरोजगार नहीं हैं तो बगैर टीईटी को भी नियुक्ति का आदेश देता है ।
उत्तर प्रदेश सरकार बंगाल की तर्ज पर बीएड के लिए चाहे तो राहत मांग सकती है लेकिन आप प्रदेश सरकार की भावना समझ सकते हैं ।
इस प्रकार हिमांशु राणा ने इस याचिका के जरिये बीएड को नुकसान पहुँचाया है अन्यथा मेरी योजना से स्वतः बीएड के लिए दुगुने से अधिक रिक्ति मिल जाती ।
अब भी मेरा प्रयास जारी है ।
इसलिए न्यायमूर्ति द्वारा इस मुकदमे को क्लिष्ट कहना उचित है ।
अंत में उन्हें हरहाल में न्याय करना होगा ।
ताज़ा खबरें - प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती गन्दे काम -->> Breaking News: सरकारी नौकरी - Army /Bank /CPSU /Defence /Faculty /Non-teaching /Police /PSC /Special recruitment drive /SSC /Stenographer /Teaching Jobs /Trainee / UPSC
उन्होंने ऐसा क्यों कहा ? यह सचमुच एक कठिन केस है । शिक्षामित्रों का चयन बिना सर्विस रूल के दिनांक 26 मई 1999 के शासनादेश पर हुआ था ।
चयन ग्रामीण स्तर पर हुआ था और रिजर्वेशन पालिसी फॉलो नहीं हुयी थी इसलिए जब शिक्षामित्रों का सहायक अध्यापक पद पर समायोजन होने लगा तो हाई कोर्ट की तीन जजों की पीठ ने आर्टिकल 14,15,16 और 309 के उलंघन में समायोजन निरस्त कर दिया ।
यदि शिक्षामित्रों का चयन शासनादेश के साथ सर्विस रूल में टीचर बनने का जो मानक है उसके अनुरूप हुआ होता तो समायोजन करते वक़्त कोई दिक्कत न आती ।
इसी प्रकार प्रशिक्षु शिक्षकों का चयन बिना सर्विस रूल के दिनांक 27 सितम्बर 2011 के शासनादेश पर हुआ ।
चयन में सर्विस रूल में निर्धारित शिक्षक बनने का मानक भी फॉलो नहीं किया गया ।
यदि सर्विस रूल का मानक फॉलो हुआ होता तो प्रशिक्षण के बाद होने वाला समायोजन रद्द न होता ।
मैंने इसलिए प्रशिक्षुओं के समायोजन को हाई कोर्ट में चुनौती दे दी है और सुप्रीम कोर्ट में भी अब डब्ल्यूपी(सी) के जरिये चुनौती देने जा रहा हूँ ।
कपिल देव यादव ने पुराना विज्ञापन रद्द करने की मांग की है इसलिए पुराना विज्ञापन बचाने के लिए कोर्ट कपिल देव को राहत देना चाहेगी लेकिन बिना शिक्षामित्र हटे कपिल देव को राहत नहीं मिल पायेगी
और यदि प्रशिक्षु न हटे तो शिक्षामित्र भी नहीं हटेंगे क्योंकि दोनों की स्थिति समान है इसलिए न्यायमूर्ति ने शिक्षामित्र मामला सिविल अपील से टैग कर दिया ।
बीटीसी को शिक्षामित्र हटाने के लिए प्रशिक्षु शिक्षकों पर भी हमला करना पड़ेगा अन्यथा जितना मजबूत प्रशिक्षु शिक्षक होते जायेंगे उतना ही मजबूत शिक्षामित्र भी होते जायेंगे ।
अंत में न्यायमूर्ति यूपी बेसिक सेवा नियमावली 1981 के आधार पर फैसला करने को मजबूर होंगे ।
मैंने भी सर्विस रूल में वर्गीकरण न होने के कारण पुराने विज्ञापन की अलग-अलग चयन सूची का विरोध किया है ।
हिमांशु राणा ने डब्ल्यूपी(सी) के जरिये आर्टिकल 21A के उलंघन में सभी पद भरने की मांग की है , इसके लिए रिट 631/04 के आदेश का हवाला दिया है ।
न्यायमूर्ति बीएड को 72825 से अधिक एक भी पद देने को तैयार नहीं हैं इसलिए फाइनल बहस में 72825 पद बीएड को देने के बाद बीटीसी से अवशेष पद को शिक्षामित्रों को देने को बाध्य हो सकते हैं क्योंकि RTE एक्ट का सेक्शन 26 यदि योग्य बेरोजगार नहीं हैं तो बगैर टीईटी को भी नियुक्ति का आदेश देता है ।
उत्तर प्रदेश सरकार बंगाल की तर्ज पर बीएड के लिए चाहे तो राहत मांग सकती है लेकिन आप प्रदेश सरकार की भावना समझ सकते हैं ।
इस प्रकार हिमांशु राणा ने इस याचिका के जरिये बीएड को नुकसान पहुँचाया है अन्यथा मेरी योजना से स्वतः बीएड के लिए दुगुने से अधिक रिक्ति मिल जाती ।
अब भी मेरा प्रयास जारी है ।
इसलिए न्यायमूर्ति द्वारा इस मुकदमे को क्लिष्ट कहना उचित है ।
अंत में उन्हें हरहाल में न्याय करना होगा ।
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