बेसिक शिक्षा निदेशक के पत्र के निहितार्थ।। अवशेष और असमायोजित 26000 शिक्षामित्रों के धरना हुआ। निदेशक ने वार्ता के बाद लिखित आश्वासन दिया। इस लिखित आश्वासन से निम्न बिंदु स्पष्ट होते हैं। 12000 शिक्षामित्रों का भविष्य राजनीति की भेंट चढ़ चुका है।
जैसा कि हमने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा:-
"अवशेष शिक्षामित्रों की भूल बनाम भरोसे का खून।।"
✍🏼हमें ये लिखते हुए अफ़सोस होता है कि अवशेष का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन संघ और सक्रिय टीम (संघ)
🔻यहाँ ये तथ्य उल्लेखनीय है और विचारणीय भी कि 12000 शिक्षामित्र 19 मार्च 2015 को ही पूरी व्यवस्था से बाहर हो चुके थे।
जबकि इस के ठीक एक वर्ष बाद यानी अप्रैल 2016 में जब सक्रिय टीम इन की नेता ज्योति वर्मा को अनुदान प्रेषित कर वाह वाही लूट रही थी और शासन के अधिकारियो को विधिक ज्ञान दे रही थी जबकि इनके भविष्य पर सरकार प्रश्नचिन्ह लगा चुकी थी। पूरे मामले में राज्य सरकार ने तो राजनीती की ही टीम और संघ ने भी कमी न की।
🔻वर्तमान वैधानिक स्थिति।।
12000 असमयोजितों के पास समायोजित होने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। फिलहाल ये लोग मात्र राज्य के रहमो करम पर हैं।
●●दूसरा बिंदु ये कि 14841 अवशेष शिक्षमित्रों का समायोजन सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के बाद किया जायेगा और पदों की कोई समस्या नहीं आएगी।
जैसाकि हमने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा :-
🔻समायोजन के लिए तीन चरण होते हैं, पहला पदों का सृजन, दूसरा विधिक समस्या और तीसरा वित्तीय संसाधन।।
🔻14841 अवशेष के मामले में पहली बात पद सृजन की कोई समस्या नहीं है क्योकि एसएसए कैडर के तहत इनके पद सुरक्षित रखे गए हैं और राज्य सरकार इनपर किसी अन्य की भर्ती करने का अधिकार नहीं रखती है। जबकि हमारे अल्पज्ञ शिक्षामित्र नेता हाई कोर्ट में पद बचाने की लड़ाई लड़ते रहे कितना हास्यास्पद है।
🔻अब दूसरी बात अवशेष शिक्षामित्रों के मामले विधिक समस्या का हवाला दिया जाता है ये राज्य की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। जब राज्य सरकार ने समायोजन किया है तो अवशेष के समायोजन का क्या विपरीत प्रभाव पड़ेगा ये समझ से परे है। बल्कि हमारी नज़र में इनका समायोजन केस को मज़बूती प्रदान करेगा।
🔻अब तीसरा और अंतिम चरण वित्तीय संसाधन। यहाँ केंद्र सरकार द्वारा अवशेष 14841 के नियमित वेतन को पिछले दो वर्षो से लगातार मंजूरी दी जाती रही है। चूँकि शिक्षामित्रों का बजट एसएसए के तहत सैंक्शन है इसलिए वित्तीय समस्या गौण है।
दूसरी बात "राज्य में आरटीई का पालन ही तब तक होगा जब तक केंद्र सरकार बजट उपलब्ध करवाती रहेगी" (आरटीई नियमावली)
✍🏼इस पत्र से ये बात पूरी तरह साफ़ है कि राज्य के अधिकारियों की शिक्षामित्र समायोजन को लेकर इच्छा शक्ति खत्म हो चुकी है। और शिक्षामित्र नेताओं को 14000 लोगों और 135000 के बीच फैसला करना मुश्किल हो गया है।
अब अवशेष और असमायोजितों के समक्ष एक मात्र विकल्प कोर्ट ही बचा है। इंतज़ार है शिक्षामित्र नेताओं की प्रतिक्रिया का।।
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जैसा कि हमने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा:-
"अवशेष शिक्षामित्रों की भूल बनाम भरोसे का खून।।"
✍🏼हमें ये लिखते हुए अफ़सोस होता है कि अवशेष का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन संघ और सक्रिय टीम (संघ)
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- अवशेष शिक्षामित्रों के समायोजन के विधिक आधार
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🔻यहाँ ये तथ्य उल्लेखनीय है और विचारणीय भी कि 12000 शिक्षामित्र 19 मार्च 2015 को ही पूरी व्यवस्था से बाहर हो चुके थे।
जबकि इस के ठीक एक वर्ष बाद यानी अप्रैल 2016 में जब सक्रिय टीम इन की नेता ज्योति वर्मा को अनुदान प्रेषित कर वाह वाही लूट रही थी और शासन के अधिकारियो को विधिक ज्ञान दे रही थी जबकि इनके भविष्य पर सरकार प्रश्नचिन्ह लगा चुकी थी। पूरे मामले में राज्य सरकार ने तो राजनीती की ही टीम और संघ ने भी कमी न की।
🔻वर्तमान वैधानिक स्थिति।।
12000 असमयोजितों के पास समायोजित होने का कोई वैधानिक अधिकार नहीं है। फिलहाल ये लोग मात्र राज्य के रहमो करम पर हैं।
●●दूसरा बिंदु ये कि 14841 अवशेष शिक्षमित्रों का समायोजन सुप्रीम कोर्ट के अंतिम निर्णय के बाद किया जायेगा और पदों की कोई समस्या नहीं आएगी।
जैसाकि हमने अपनी पिछली पोस्ट में लिखा :-
🔻समायोजन के लिए तीन चरण होते हैं, पहला पदों का सृजन, दूसरा विधिक समस्या और तीसरा वित्तीय संसाधन।।
🔻14841 अवशेष के मामले में पहली बात पद सृजन की कोई समस्या नहीं है क्योकि एसएसए कैडर के तहत इनके पद सुरक्षित रखे गए हैं और राज्य सरकार इनपर किसी अन्य की भर्ती करने का अधिकार नहीं रखती है। जबकि हमारे अल्पज्ञ शिक्षामित्र नेता हाई कोर्ट में पद बचाने की लड़ाई लड़ते रहे कितना हास्यास्पद है।
🔻अब दूसरी बात अवशेष शिक्षामित्रों के मामले विधिक समस्या का हवाला दिया जाता है ये राज्य की इच्छा शक्ति पर निर्भर करता है। जब राज्य सरकार ने समायोजन किया है तो अवशेष के समायोजन का क्या विपरीत प्रभाव पड़ेगा ये समझ से परे है। बल्कि हमारी नज़र में इनका समायोजन केस को मज़बूती प्रदान करेगा।
🔻अब तीसरा और अंतिम चरण वित्तीय संसाधन। यहाँ केंद्र सरकार द्वारा अवशेष 14841 के नियमित वेतन को पिछले दो वर्षो से लगातार मंजूरी दी जाती रही है। चूँकि शिक्षामित्रों का बजट एसएसए के तहत सैंक्शन है इसलिए वित्तीय समस्या गौण है।
दूसरी बात "राज्य में आरटीई का पालन ही तब तक होगा जब तक केंद्र सरकार बजट उपलब्ध करवाती रहेगी" (आरटीई नियमावली)
✍🏼इस पत्र से ये बात पूरी तरह साफ़ है कि राज्य के अधिकारियों की शिक्षामित्र समायोजन को लेकर इच्छा शक्ति खत्म हो चुकी है। और शिक्षामित्र नेताओं को 14000 लोगों और 135000 के बीच फैसला करना मुश्किल हो गया है।
अब अवशेष और असमायोजितों के समक्ष एक मात्र विकल्प कोर्ट ही बचा है। इंतज़ार है शिक्षामित्र नेताओं की प्रतिक्रिया का।।
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