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सपा सरकार थी ७२८२५ की दुश्मन , फिर भी कुछ प्रश्न महत्वपूर्ण ???? : पूर्णेश शुक्ल(महाकाल)

वर्तमान से आप सभी अवगत हैं।फिर भी कुछ प्रश्न महत्वपूर्ण हैं।
१-क्या टेट अजर -अमर है , अविनाशी है,सत्य है का नारा देने से ही टेट अजर अमर और अविनाशी हो जायेगी?
२-जब हम संघर्ष की शुरुवात किये थे तो हमारी केवल सरकार ही विरोधी थी ,लेकिन आज की क्या स्थिति है?इसका ज़िम्मेदार कौन है??
आज की तारीख में सरकार के साथ साथ बॉर्डर लाइन, अचयनित और शिक्षा मित्र आदि सभी ७२८२५ के दुश्मन बन गए है।
आखिर क्यों?
ज़िम्मेदार कौन है इसका??
३-हमारा मतलब ७२८२५ भर्ती से था ,है और रहेगा ।
लेकिन हमारे ही साथियों की गद्दारी से हम स्वयं अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार रहें हैं और दुश्मनों की संख्या में निरन्तर बृद्धि करते जा रहें हैं क्यों ?
इस भर्ती के दुश्मनों की संख्या में निरन्तर बृद्धि होने का कारण क्या है?
४-टेट के पुरोधा कहे जाने वाले लोग आज टेट की अस्मिता से खिलवाड़ क्यों कर रहे है?
क्या वास्तव में नैतिक रूप से ये लोग पतित हो चुकें हैं ?
क्या ७२८२५ घरों के चूल्हों से अब इन लोगों का कोई मतलब नही रह गया है?
क्या आज इनका उद्देश्य केवल चन्दा चोरी तक ही सीमित रह गया है??
५ - क्या सच में आज हम इस मोड़ पर आ गए है कि अब हमें ७२८२५ के लिए चिंता की कोई आवश्यकता नही है?
६-क्या ७२८२५ में चयनित साथियों से पैसा लेकर अचयनित के पक्ष की बहस कराना या निरन्तर पैसा लेकर लगातार ३ डेट से वकील कोर्ट में न भेजना भी किसी अहम रणनीति का हिस्सा है?
ऐसी कौन सी रणनीति है हमें और हमारे साथियों को भी बताईये?
७-लगातार तीन डेट पर वकील न भेजना या ७२८२५ में चयनित से पैसा लेकर अकैडमिक के पक्ष में बहस करवाकर ११०० याचियों को कंडीशनल जोइनिंग लैटर के लिए आर्डर करवाना किस लिहाज से ७२८२५ के हित में है?
आप स्वयं बुद्धिजीवी वर्ग से हैं स्वयं विचार करके देखें।
८-हम अपने सीमित संसाधनों के बलबूते हर बार अपने वकील की उपस्थिति कोर्ट में सुनिश्चित की फिर भी हम पर आरोप लगाये जा रहे हैं , हम पर सवाल उठाये जातें हैं
क्यों???
क्या ७२८२५ के लिए वास्तव
(सच) में लड़ना गुनाह है?
क्या सिर्फ चन्दा चोरी करना ही ७२८२५ के नेताओं की पहचान एवम् लक्ष्य होना चाहिए?
क्या ७२८२५ के लिए खोदे गए गड्ढे की जानकारी अपने चयनित साथियों को देना कोई अपराध है?
क्या सच एवम् न्याय की लड़ाई लड़ना कोई गुनाह है?
क्या ७२८२५ के संघर्ष पर सिर्फ २ गुटों का ही कॉपीराइट है?
क्या अन्याय का विरोध करना गलत है?
साथियों ,
आप यह सोंचते हैं कि हम तो १००₹ या २०० ₹ देते है और यह नेतागण हमारी लड़ाई लड़ रहे हैं। तो यहाँ कुछ न कुछ ऐसा है जिसको आपको सोचना ही होगा।
"कहीं ऐसा तो नही है कि यह माननीय नेतागण आपसे पैसा लेकर आपके लिए ही गड्ढा तैयार कर रहे हैं?"
ये माननीय नेतागण चयनित के पैसे से ही चयनितों के लिए गड्ढा खोद रहे हैं । क्या ऐसी स्थिति में भी हम लोगों को भी खतरा देखकर शुतुरमुर्ग की भांति अपना सर रेत में गड़ा लेना चाहिए? या जानबूझकर भी अनजान बने रहने से खतरा टल जायेगा।
👉🏿ध्यान रहे कि हम एकल बेंच में अपना केस हार भी चुके है।
क्या फिर भी लापरवाही जायज़ है?
क्या अबकी बार फिर इन्ही गद्दार नेताओं पर हम फिर से भरोसा करने जा रहे हैं जिन्होंने चयनितों से पैसा लेकर या तो कोर्ट में वकील भेजा ही नहीं या जिसने भेजा भी उसने ७२८२५ के खिलाफ बहस की और उसका प्रत्यक्ष उदाहरण ११०० लोगों को कंडीशनल जोइनिंग लैटर है।
क्या हम पुनः ऐसे लोगों की ही मदद करने जा रहे हैं?
जिन्होंने हमारे लिए गड्ढा खोदा क्या हम उन्ही के सामने नतमस्तक होंगे?
क्या हम विवेकशून्य हो गए हैं जो अपने भले या बुरे की पहचान नही कर पा रहें हैं?
आप सभी बुद्धिजीवी वर्ग से हैं । आप सभी स्वयं विचार करें कि किस को मदद करना आपके लिए लाभदायक होगा या किसको मदद करना हानिकारक होगा?
सधन्यवाद
आपका
पूर्णेश शुक्ल(महाकाल)
सहायक अध्यापक(कोर्ट के अंतरिम आदेश के तहत)
सीतापुर
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