उत्तराखंड के शिक्षामित्रों के सम्बन्ध में यूपी के शिक्षामित्रों को बहुत सी गलतफहमियां हैं। ख़ास तौर पर टेट समर्थकों को। आइये फैसले के सन्दर्भ में आप को सच्चाई के रूबरू करवाते हैं उत्तराखंड राज्य गठन के बाद जनवरी 2001 में पहली बार राज्य में 1000 शिक्षा मित्र नियुक्त किए गए।
2005 में जहाँ सरकार ने शिक्षामित्रों को वेटेज देकर बीटीसी कराने का फैसला किया वहीं 1300 शिक्षामित्रों को बीटीसी कराने के बाद यह फैसला पलट दिया। अति दुर्गम एकल स्कूल शिक्षामित्रों के भरोसे ही चल रहे हैं। इनके बीटीसी के लिए जाने पर स्कूलों के बंद होने की आशंका के चलते सरकार ने पैतरा बदलते हुए 2011 में इग्नू से एमओयू साइन कर शिक्षामित्रों को डीएलईडी कराने का निर्णय किया। अर्थात दूरस्थ बीटीसी करवाई गई जो 2014 में पूर्ण हुई।
और राज्य सरकार ने ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जब इन्हें नियमित करने का आदेश किया तो बेरोज़गार लोग कोर्ट पहुँच गए और उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ ने शिक्षा मित्र रहते हुए बीटीसी करने वालों को टीईटी से छूट प्रदान करने संबंधी 4 मार्च 2014 के शासनादेश को निरस्त कर दिया।
लेकिन इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बेंच में विशेष अपील की और 15 दिसम्बर 2014 को कोर्ट ने अंतरिम अादेश दिया और कहा की 15 जनवरी 2015 तक प्रदेश के सभी शिक्षा मित्रो को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करे लेकिन ये नियुक्तिया हाई कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी !
मामला पेंडिंग चलता रहा। शिक्षामित्रों के खिलाफ कोर्ट में तीन केस थे जो सभी 2014 में डाले गए जिन पर अभी कोई निर्णय नहीं आया है। निर्णय आया भी तो 2016 के 2 अगस्त को डाले गए केस पर।
अब बात आज के फैसले की
कोर्ट के समक्ष आए तथ्य और आदेश के मुख्य अंश
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत शिक्षा मित्रों को शिक्षक नहीं माना जा सकता। सरकार ने 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई की ओर से क्लॉज चार ए व चार सी के तहत टीईटी की छूट नहीं दी जा सकती। सरकार ने चार मार्च 2014 को सेवा नियमावली में जो शिक्षा मित्रों को नियमित करने के लिए छूट प्रदान की, वह पूरी तरह से अवैधानिक थी। आरटीई के अनुच्छेद-21 के तहत छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के साथ ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए योग्य शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। शिक्षक बनने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की छूट देने का अधिकार, राज्य तो क्या केंद्र सरकार को भी नहीं है। सिर्फ संसद ही इसमें छूट प्रदान कर सकती है। अध्यापक पात्रता परीक्षा की छूट एनसीटीई के 17 फरवरी 2014 के पत्र के अनुसार दी गई है, जो गलत है। एनसीटीई को केवल शैक्षिक अर्हता लागू करने का अधिकार है।
*निष्कर्ष:- मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार और साथी अपनी पोस्ट्स में ये तथ्य बार बार उजागर करते रहे हैं कि शिक्षामित्रों को टेट परीक्षा से कोई छूट नहीं दी जा सकती है। नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में एक बार फिर इस तथ्य को स्पष्ट किया है।
चूंकि लड़ाई टेट से छूट की नहीं बल्कि टेट के लागू न होने की है।
उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड के शिक्षामित्र भी अब ये तथ्य अपने दिमाग में बैठा लें कि टेट से छूट न मांगे। और टेट लागू ही नहीं है ये कहें।मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह इस मुद्दे पर देश की सब से बड़ी अदालत में ये तथ्य साबित करने के लड़ रहा है। और शिक्षामित्रों के टेट समर्थकों को हिदायत देता है कि वे इस मामले में अपनी टांग न अड़ाए।
देश के सर्वोच्च न्यायालय से हम अपना हक ले कर रहेंगे।
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ख़बरें अब तक - 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती - Today's Headlines
- 20 फीसदी शिक्षकों के पद खाली : जावडेकर
- सपा सरकार थी ७२८२५ की दुश्मन , फिर भी कुछ प्रश्न महत्वपूर्ण ???? : पूर्णेश शुक्ल(महाकाल)
- uppsms का मात्र एक लक्ष्य , सभी शिक्षामित्रो का समायोजन : गाजी इमाम आला
- शिक्षामित्रों का संविदा अनुबंध : कोर्ट ने शिक्षामित्र पद परिभाषित नहीं किया
- शिक्षामित्रों को मिली टीईटी (TET) से छूट: अतीत के ख़बरों से, इस खबर में कितनी है सच्चाई ????
2005 में जहाँ सरकार ने शिक्षामित्रों को वेटेज देकर बीटीसी कराने का फैसला किया वहीं 1300 शिक्षामित्रों को बीटीसी कराने के बाद यह फैसला पलट दिया। अति दुर्गम एकल स्कूल शिक्षामित्रों के भरोसे ही चल रहे हैं। इनके बीटीसी के लिए जाने पर स्कूलों के बंद होने की आशंका के चलते सरकार ने पैतरा बदलते हुए 2011 में इग्नू से एमओयू साइन कर शिक्षामित्रों को डीएलईडी कराने का निर्णय किया। अर्थात दूरस्थ बीटीसी करवाई गई जो 2014 में पूर्ण हुई।
और राज्य सरकार ने ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जब इन्हें नियमित करने का आदेश किया तो बेरोज़गार लोग कोर्ट पहुँच गए और उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ ने शिक्षा मित्र रहते हुए बीटीसी करने वालों को टीईटी से छूट प्रदान करने संबंधी 4 मार्च 2014 के शासनादेश को निरस्त कर दिया।
लेकिन इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बेंच में विशेष अपील की और 15 दिसम्बर 2014 को कोर्ट ने अंतरिम अादेश दिया और कहा की 15 जनवरी 2015 तक प्रदेश के सभी शिक्षा मित्रो को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करे लेकिन ये नियुक्तिया हाई कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी !
मामला पेंडिंग चलता रहा। शिक्षामित्रों के खिलाफ कोर्ट में तीन केस थे जो सभी 2014 में डाले गए जिन पर अभी कोई निर्णय नहीं आया है। निर्णय आया भी तो 2016 के 2 अगस्त को डाले गए केस पर।
अब बात आज के फैसले की
- टेट मेरिट से लगभग सभी समस्याओ का हो सकता है समाधान
- टेट ही वो बला है जो शिक्षामित्रो को सुप्रीम कोर्ट में बचाएगी
- फर्जी प्रमाण पत्रों के आधार पर नौकरी पाने वाले शिक्षक व शिक्षामित्रों की कमी नहीं
- 72825 में TET मेरिट से चयनितों के लिए मत्त्वपूर्ण पोस्ट,कुछ महत्वपूर्ण मुद्दे जिन पर चर्चा आवश्यक है, पूर्णेश शुक्ल(महाकाल) की कलम से
- 72825 में TET मेरिट से चयनितों के लिए मत्त्वपूर्ण पोस्ट
कोर्ट के समक्ष आए तथ्य और आदेश के मुख्य अंश
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत शिक्षा मित्रों को शिक्षक नहीं माना जा सकता। सरकार ने 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई की ओर से क्लॉज चार ए व चार सी के तहत टीईटी की छूट नहीं दी जा सकती। सरकार ने चार मार्च 2014 को सेवा नियमावली में जो शिक्षा मित्रों को नियमित करने के लिए छूट प्रदान की, वह पूरी तरह से अवैधानिक थी। आरटीई के अनुच्छेद-21 के तहत छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के साथ ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए योग्य शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। शिक्षक बनने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की छूट देने का अधिकार, राज्य तो क्या केंद्र सरकार को भी नहीं है। सिर्फ संसद ही इसमें छूट प्रदान कर सकती है। अध्यापक पात्रता परीक्षा की छूट एनसीटीई के 17 फरवरी 2014 के पत्र के अनुसार दी गई है, जो गलत है। एनसीटीई को केवल शैक्षिक अर्हता लागू करने का अधिकार है।
*निष्कर्ष:- मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार और साथी अपनी पोस्ट्स में ये तथ्य बार बार उजागर करते रहे हैं कि शिक्षामित्रों को टेट परीक्षा से कोई छूट नहीं दी जा सकती है। नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में एक बार फिर इस तथ्य को स्पष्ट किया है।
चूंकि लड़ाई टेट से छूट की नहीं बल्कि टेट के लागू न होने की है।
उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड के शिक्षामित्र भी अब ये तथ्य अपने दिमाग में बैठा लें कि टेट से छूट न मांगे। और टेट लागू ही नहीं है ये कहें।मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह इस मुद्दे पर देश की सब से बड़ी अदालत में ये तथ्य साबित करने के लड़ रहा है। और शिक्षामित्रों के टेट समर्थकों को हिदायत देता है कि वे इस मामले में अपनी टांग न अड़ाए।
देश के सर्वोच्च न्यायालय से हम अपना हक ले कर रहेंगे।
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