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यूपी के शिक्षामित्रों को बहुत सी गलतफहमियां , उत्तराखंड शिक्षामित्र केस के फैसले के सन्दर्भ में सच्चाई जानिए

उत्तराखंड के शिक्षामित्रों के सम्बन्ध में यूपी के शिक्षामित्रों को बहुत सी गलतफहमियां हैं। ख़ास तौर पर टेट समर्थकों को। आइये फैसले के सन्दर्भ में आप को सच्चाई के रूबरू करवाते हैं उत्तराखंड राज्य गठन के बाद जनवरी 2001 में पहली बार राज्य में 1000 शिक्षा मित्र नियुक्त किए गए।
इसके बाद 2003, 05, 06 और 2007 में भी शिक्षामित्रों की नियुक्ति की गई। राज्य में शिक्षामित्रों के कुल 5413 पद सृजित हैं जबकि 5130 शिक्षामित्र फिलहाल कार्यरत हैं। सरकार ने शिक्षामित्रों की सीधी भर्ती तो 2007 के बाद नहीं की लेकिन 2011 में 1113 ग्रेजुएट शिक्षा आचार्यों को शिक्षामित्र बनाया गया। राज्य में शिक्षामित्रों की सीधी नियुक्ति 2007 के बाद नहीं हुई।

2005 में जहाँ सरकार ने शिक्षामित्रों को वेटेज देकर बीटीसी कराने का फैसला किया वहीं 1300 शिक्षामित्रों को बीटीसी कराने के बाद यह फैसला पलट दिया। अति दुर्गम एकल स्कूल शिक्षामित्रों के भरोसे ही चल रहे हैं। इनके बीटीसी के लिए जाने पर स्कूलों के बंद होने की आशंका के चलते सरकार ने पैतरा बदलते हुए 2011 में इग्नू से एमओयू साइन कर शिक्षामित्रों को डीएलईडी कराने का निर्णय किया। अर्थात दूरस्थ बीटीसी करवाई गई जो 2014 में पूर्ण हुई।

और राज्य सरकार ने ट्रेनिंग पूरी होने के बाद जब इन्हें नियमित करने का आदेश किया तो बेरोज़गार लोग कोर्ट पहुँच गए और उत्तराखंड हाईकोर्ट की एकल पीठ ने शिक्षा मित्र रहते हुए बीटीसी करने वालों को टीईटी से छूट प्रदान करने संबंधी 4 मार्च 2014 के शासनादेश को निरस्त कर दिया।

लेकिन इस आदेश के खिलाफ राज्य सरकार ने डबल बेंच में विशेष अपील की और 15 दिसम्बर 2014 को कोर्ट ने अंतरिम अादेश दिया और कहा की 15 जनवरी 2015 तक प्रदेश के सभी शिक्षा मित्रो को सहायक अध्यापक पद पर समायोजित करे लेकिन ये नियुक्तिया हाई कोर्ट के अंतिम निर्णय के अधीन होंगी !
मामला पेंडिंग चलता रहा। शिक्षामित्रों के खिलाफ कोर्ट में तीन केस थे जो सभी 2014 में डाले गए जिन पर अभी कोई निर्णय नहीं आया है। निर्णय आया भी तो 2016 के 2 अगस्त को डाले गए केस पर।

अब बात आज के फैसले की
हाई कोर्ट ने पिछले साल जनवरी में सहायक अध्यापक पद पर नियमित किए गए शिक्षा मित्रों में से बिना टीईटी पास शिक्षा मित्रों को हटाने तथा उनके स्थान पर टीईटी पास योग्यताधारी को नियुक्ति देने के आदेश पारित किए हैं। कोर्ट के इस फैसले के बाद तीन हजार से अधिक शिक्षा मित्रों की नौकरी खतरे में पड़ गई है। चुनावी मोड पर उतरी सरकार के लिए इस फैसले को बड़ा झटका माना जा रहा है। पिछले साल जनवरी में राज्य सरकार द्वारा 3652 शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक पद पर नियमित नियुक्ति दे दी।
कोर्ट के समक्ष आए तथ्य और आदेश के मुख्य अंश
शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत शिक्षा मित्रों को शिक्षक नहीं माना जा सकता। सरकार ने 23 अगस्त 2010 को एनसीटीई की ओर से क्लॉज चार ए व चार सी के तहत टीईटी की छूट नहीं दी जा सकती। सरकार ने चार मार्च 2014 को सेवा नियमावली में जो शिक्षा मित्रों को नियमित करने के लिए छूट प्रदान की, वह पूरी तरह से अवैधानिक थी। आरटीई के अनुच्छेद-21 के तहत छह से 14 साल के बच्चों को शिक्षा का अधिकार प्रदान करने के साथ ही उन्हें शिक्षित बनाने के लिए योग्य शिक्षक की नियुक्ति का प्रावधान है। शिक्षक बनने के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा की छूट देने का अधिकार, राज्य तो क्या केंद्र सरकार को भी नहीं है। सिर्फ संसद ही इसमें छूट प्रदान कर सकती है। अध्यापक पात्रता परीक्षा की छूट एनसीटीई के 17 फरवरी 2014 के पत्र के अनुसार दी गई है, जो गलत है। एनसीटीई को केवल शैक्षिक अर्हता लागू करने का अधिकार है।

*निष्कर्ष:- मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह के रबी बहार, केसी सोनकर और माधव गंगवार और साथी अपनी पोस्ट्स में ये तथ्य बार बार उजागर करते रहे हैं कि शिक्षामित्रों को टेट परीक्षा से कोई छूट नहीं दी जा सकती है। नैनीताल हाई कोर्ट ने अपने फैसले में एक बार फिर इस तथ्य को स्पष्ट किया है।

चूंकि लड़ाई टेट से छूट की नहीं बल्कि टेट के लागू न होने की है।

उत्तर प्रदेश की तरह उत्तराखंड के शिक्षामित्र भी अब ये तथ्य अपने दिमाग में बैठा लें कि टेट से छूट न मांगे। और टेट लागू ही नहीं है ये कहें।मिशन सुप्रीम कोर्ट समूह इस मुद्दे पर देश की सब से बड़ी अदालत में ये तथ्य साबित करने के लड़ रहा है। और शिक्षामित्रों के टेट समर्थकों को हिदायत देता है कि वे इस मामले में अपनी टांग न अड़ाए।
देश के सर्वोच्च न्यायालय से हम अपना हक ले कर रहेंगे।

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