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जब सारे मैटर इंटर कनेक्टेड थे तो आदेश इतना घटिया और विरोधाभासी क्यों..........

जब सारे मैटर इंटर कनेक्टेड थे , औऱ सुनबाई भी इसी भावना से हुई तो आदेश इतना घटिया और विरोधाभासी क्यों , हां याद आया , 7 दिसंबर 2015 को स्टे मिलने का मूल कारण बेसिक की पढ़ाई व्यवस्था मे व्यवधान
उत्पन्न होना था , तो ये कैसा आदेश एक तरफ शिक्षा मित्रों को बाहर किया जो होना ही था , दूसरी तरफ , कोई ऐसा आदेश नहीं जो उस व्यवथा को अतिशीघ्र कायम कर सके ताकि पढ़ाई की व्यवथा को सुचारू रूप से चलाया जा सके , और जब न्याय आपको नहीं करना था , तो एक लाइन मे सीधा कह देते जाओ हमारे पास कोई छमता नहीं , जाओ सरकार की liberty पर उसी से सर पटको , मैं न्याय करने मे अक्षम हूं , क्या यही आदेश है जो 4347 पर दिया , जिसे आज तक कोई स्पष्ट नहीं बता पा रहा , कि आखिर है तो है क्या , 66000 माफ , नियम विरुद्ध होकर भी , बाकी याची कुछ नहीं , स्पेशल 1100 को छोडकर , क्या भारतीय न्यायलय इतने अक्षम हैं जो अंतिम सुनबाई तक कुछ कहें , और इतना कहने के लिए की राज्य स्वतंत्र है , कि सरकार वेटेज दे न दे , आगर वाकई गुणांक मेरिट सही थी तो इसका मतलब वो हाई कोर्ट की सुनबाई , और वो जज मूर्ख थे , या फिर सुनबाई ठीक ढंग से नहीं कर पाने में अक्षम , पर उनका क्या , जिहोंने न्याय के लिए जो समय गंवाया उसके बदले ये मिला न याचियों की योग्यता पर कोई टिपड़ीं , न उनके लिए आयु सीमा में छूट ,न कोई टेट के प्रमाण पत्र की वैलिडिटी एक्सटेंड की बात , मुझे तो लगता है न्याय करने की जगह , दोनो जज ने 4347 पर अपनी जान छुड़ाना ही उचित समझा , इसीलिए सिविल अपील 26, 27 अप्रैल को बिना ढंग से सुने बुलट ट्रैन की स्पीड से भी तेज गति से निपटाई गई , न उसपर पड़े , wp , cp किसी को सुना ही नहीं गया , बस अपनी इज़्ज़त बचाने के लिए पिछले कुछ अंतरिम आदेशों की चर्चा न करना भी उचित समझा , क्योंकि ऐसा करने पर , न्यायपालिका मे सुनबाई की पोल खुल जाती , बेंच बदलना , अपने दिए हुए आदेशों का कंप्लाइन्स न करा पाना , न्यायपालिका पर प्रश्नचिन्ह लगाता है , अच्छा अगर उनको कंप्लाइन्स कराने की छमता नहीं थी तो ऎसे अतार्किक आदेष दिए ही क्यों थे , एक तरफ sm को बाहर करना , उसके बावजूद भी उनके लिए स्पष्ट दो भर्तियों का आदेश देना , और हमारे लिए कुछ न कहना , उल्टा ऐसा आदेश जिसको अभी तक समझने के लिए टेट याची मत्था मार रहे हैं , यंहां तक कि कोई वकील भी ऑर्डर समझ पाने मे अक्षम है , बताओ कितनी महान भारतीय न्यायपालिका है , जो स्पष्ट आदेश लिखने मे भी अक्षम है ।
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