विभीषणों, जयचंदों और मीरजाफरों से सावधान - Shyam Dev Mishra RTE Activist : 72825 प्रशिक्षु शिक्षकों की भर्ती Latest News

विभीषणों, जयचंदों और मीरजाफरों से सावधान।
शिक्षामित्रों के मामले की इलाहाबाद उच्च न्यायालय की पूर्णपीठ में सुनवाई के दौरान क्या किसी ने शिक्षामित्रों के समायोजन के सबसे बड़े आधार, उनके दो वर्षीय दूरस्थ विधि से प्रशिक्षण को सबसे मजबूत तरीके से चुनौती देती याचिका "WRIT - A No. - 28004 of 2011 (Santosh Kumar Mishra And Others Vs State Of U.P. And Others) की पैरवी की बात कही थी?
क्या किसी ने इसकी पैरवी का भरोसा दिलाया था? क्या किसी ने इसकी पैरवी के नाम पर पैसा भी वसूला था। क्या किसी ने इसकी पैरवी में कोई बाधा डाली थी?
जरा सोचिये, पता लगाइये। क्योंकि जब आप सुप्रीम कोर्ट में लड़ने जाओ तो पता रहे कि
1. अधिकृत तौर पर पूर्णपीठ ने बंच याचिकाओं की सुनवाई के बाद अपने निर्णय में शिक्षामित्रों के समायोजन के सबसे बड़े आधार, उनके दो वर्षीय दूरस्थ विधि से प्रशिक्षण को अवैध नहीं करार दिया है।
2. पूर्णपीठ ने याचिका संख्या 28004/2011 में प्रशिक्षण को अवैध ठहराने की मांग को किसी क़ानूनी आधार पर नहीं ठुकराया, बल्कि यह कहते हुए अंतिम रूप से ख़ारिज किया कि याचियों के अधिवक्ताओं की तरफ से कुछ कहा ही नहीं गया और साथ ही, इसलिए कि NCTE द्वारा प्रशिक्षण की अनुमति के उपरांत सरकार द्वारा प्रशिक्षणार्थियों की बनाई गई सूची में शामिल सभी शिक्षामित्रों को प्रशिक्षण भी दिया जा चुका है और याचियों ने सूची को रद्द करने की मांग नहीं की है।
जब प्रशिक्षण पर सवाल उठाती याचिका ही रद्द हो गई तो तकनीकी रूप से शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण पर कोई प्रश्नचिह्न विद्यमान नहीं है। सरकार इस स्थिति का लाभ शिक्षामित्रों को देने का हर सम्भव जतन करेगी।
एक बात और, 12.09.2015 निर्णय के अनुसार यह याचिका उन शिक्षामित्रों द्वारा दायर है जिन्होंने NCTE द्वारा दूरस्थ विधि से शिक्षामित्रों को दो वर्षीय प्रशिक्षण दिए जाने की अनुमति को रद्द करने की मांग की है। सुनने में अजीब है क्योंकि 18.05.2011 के प्रशिक्षण पर स्थगनादेश वाले आदेश में याचियों को बीएड अभ्यर्थी बताया गया। जाहिर है, या तो देवमण्डली में राहु-केतु के छिप कर बैठ जाने का मामला है या याचिका हाइजैक होने का। बहरहाल, इस स्थिति में आने में बीएड+टीईटी अभ्यर्थियों के विधिक सलाहकारों का योगदान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।
जब सरकार का मामला हो तो एक मोर्चा भी असुरक्षित छोड़ देना कितना आत्मघाती होता है, यह इसकी बानगी थी। शिक्षामित्रों के प्रशिक्षण पर दाखिल याचिका का सालों तक फैसला न करके राज्य सरकार को समायोजन प्रारम्भ करने के स्तर तक आने देने वाले न्यायाधीश दिलीप गुप्ता के पूर्णपीठ में सम्मिलित होने से मुझे शुरू से ही आनेवाले निर्णय को लेकर एक नकारात्मक अनुभूति होती रही जो मेरी तत्कालीन पोस्टों में प्रकट भी हुई। पीठ के पास समायोजन को संवैधानिक न ठहराने का न कोई आधार था, न कोई बहाना, सो वह रद्द हुआ, पर जिस प्रकार से प्रशिक्षण को इरादतन बख्श दिया गया या बख़्शवा दिया गया, उसने बीएड+टीईटी, विशेषकर अचयनियों के लिए, विजय को अधूरा तो कर ही दिया है, आगे चलकर कहीं बेमानी न कर दे।
सो, उत्तिष्ठत, जाग्रत, प्राप्यः वरान्निबोधत।
तकनीकी दृष्टि में मेरा मत कहीं त्रुटिपूर्ण लगे तो सुधी मित्रों से ध्यानाकर्षण / त्रुटिसुधार का विनम्र अनुरोध है।
आदेश का पाठ्य निम्न है।
HIGH COURT OF JUDICATURE AT ALLAHABAD
Chief Justice's Court
Case :- WRIT - A No. - 28004 of 2011
Petitioner :- Santosh Kumar Mishra And Others
Respondent :- State Of U.P. And Others
Counsel for Petitioner :- Siddharth Khare,Ashok Khare
Counsel for Respondent :- C.S.C.,K.S.Kushwaha,Mohd. Ali Ausaf,R.A.Akhtar
Hon'ble Dr. Dhananjaya Yeshwant Chandrachud,Chief Justice
Hon'ble Dilip Gupta,J.
Hon'ble Yashwant Varma,J.
The petitioners had been engaged as Shiksha Mitras pursuant to a Government Order dated 26 May 1999 on payment of honorarium for a period of eleven months subject to renewal on satisfactory performance. The Government Order dated 1 July 2001 clarified that the scheme was not a scheme for employment in regular service since its object was to provide to educated rural youth an opportunity to render community service at the level of primary education.
On 3 January 2011, a proposal was submitted by the State Government to the National Council for Teacher Education for training of Shiksha Mitras. The proposal was for conducting a two year diploma in elementary education for Shiksha Mitras through the open and distance learning mode. The department prepared a list of Shiksha Mitras who would be imparted two years training.
The writ petition has been filed by Shiksha Mitras for quashing the order dated 14 January 2011 passed by the National Council for Teacher Education approving the proposal of the State Government for conducting the diploma through the open and distance learning mode and to direct the respondents to only permit the candidates possessing B.Ed. degrees for appointment in the Institutions run by the Board.
This petition has been listed with a batch of writ petitions relating to Shiksha Mitras but submissions have not been advanced by learned counsel for the petitioners. Even otherwise, we find that the two years training has already been imparted to the Shiksha Mitras whose names were included in the list and that the petitioners have not sought the quashing of the list.
This petition, therefore, deserves to be dismissed and is, accordingly, dismissed.
Order Date :- 12.9.2015
GS
(Dr D Y Chandrachud,CJ)
(Dilip Gupta, J)
(Yashwant Varma, J)

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