लखनऊ. यूपी के शिक्षामित्रों ने अब अपनी मांगों को
मनवाने के लिए राजधानी में डेरा डाल दिया है। प्रशासन से अनुमति न मिलने के
बाद भी हजारों की संख्या में शिक्षामित्र राजधानी के लक्ष्मण मेला मैदान
पहुंचे और सरकार के खिलाफ जमकर नारे लगाए।
उनका कहना था कि अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट में हमारा पक्ष मजबूती के साथ रखती तो आज हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। शिक्षामित्र रामनरेश, राजन तिवारी, श्रीकांत, राममिलन आदि ने कहा कि अब सरकार को हमारे मन की बात माननी ही होनी, हम अब अपनी मांगों को मनवा कर ही चैन लेंगे।
इस उम्र में हम जाएं जो जाएं कहां
शिक्षामित्र संजीव द्विवेदी, राजकुमार, रजनीश वर्मा आदि का कहना था कि हम 16 सालों से पढ़ा रहे हैं, शिक्षण कार्य कर रहे हैं। चालीस साल से अधिक की उम्र हो गई है। ऐसे में हमारे पर कोई अन्य जरिया नहीं बचा है। सरकार हमारे साथ न्याय करे नहीं तो हमारे सामने भूखों मरने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।
नहीं सोचा था कि रोजगार मिल के छिन जाएगा
अखिलेश सरकार ने रोजगार दिया, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया। सरकार में कोर्ट में अच्छे तरह से हमारा पक्ष नहीं रखा नहीं तो हमारी जीत निश्चित होती। पिछली सरकार ने रोजगार दिया और इस सरकार में छिन गया। अब हम इस संकट की घरी में कहां जाएं। सहायक अध्यापक बनने के बाद एक ओर जहां जिंदगी पटरी पर आई थी वहीं अब नौकरी छिन जाने के बाद जीवन में घोर निराशा आ गई है। अब परिवार का पालन पोषण कैसे होगा इसकी चिंता सताने लगी है।
इससे अच्छा था कि नौकरी देते ही नहीं
शिक्षामित्र आरती, सीमा, कंचन आदि का कहना था कि सहायक अध्यापक बना कर हमें सरकार ने नौकरी दी और अब नौकरी ले ली। इससे तो अच्छा होता की हमें नौकरी देते ही नहीं। अब नौकरी दे दिया तो उसे लेना गलत है। इससे तो अच्छा है कि जान ही ले ले सरकार। आज हमारे सामने रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इस उम्र में हम अपने बच्चों का कैसे पालन करेंगे।
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उनका कहना था कि अगर सरकार सुप्रीम कोर्ट में हमारा पक्ष मजबूती के साथ रखती तो आज हमें यह दिन नहीं देखना पड़ता। शिक्षामित्र रामनरेश, राजन तिवारी, श्रीकांत, राममिलन आदि ने कहा कि अब सरकार को हमारे मन की बात माननी ही होनी, हम अब अपनी मांगों को मनवा कर ही चैन लेंगे।
इस उम्र में हम जाएं जो जाएं कहां
शिक्षामित्र संजीव द्विवेदी, राजकुमार, रजनीश वर्मा आदि का कहना था कि हम 16 सालों से पढ़ा रहे हैं, शिक्षण कार्य कर रहे हैं। चालीस साल से अधिक की उम्र हो गई है। ऐसे में हमारे पर कोई अन्य जरिया नहीं बचा है। सरकार हमारे साथ न्याय करे नहीं तो हमारे सामने भूखों मरने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं बचा है।
नहीं सोचा था कि रोजगार मिल के छिन जाएगा
अखिलेश सरकार ने रोजगार दिया, लेकिन मामला कोर्ट में चला गया। सरकार में कोर्ट में अच्छे तरह से हमारा पक्ष नहीं रखा नहीं तो हमारी जीत निश्चित होती। पिछली सरकार ने रोजगार दिया और इस सरकार में छिन गया। अब हम इस संकट की घरी में कहां जाएं। सहायक अध्यापक बनने के बाद एक ओर जहां जिंदगी पटरी पर आई थी वहीं अब नौकरी छिन जाने के बाद जीवन में घोर निराशा आ गई है। अब परिवार का पालन पोषण कैसे होगा इसकी चिंता सताने लगी है।
इससे अच्छा था कि नौकरी देते ही नहीं
शिक्षामित्र आरती, सीमा, कंचन आदि का कहना था कि सहायक अध्यापक बना कर हमें सरकार ने नौकरी दी और अब नौकरी ले ली। इससे तो अच्छा होता की हमें नौकरी देते ही नहीं। अब नौकरी दे दिया तो उसे लेना गलत है। इससे तो अच्छा है कि जान ही ले ले सरकार। आज हमारे सामने रोटी का बड़ा संकट खड़ा हो गया है। इस उम्र में हम अपने बच्चों का कैसे पालन करेंगे।
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