इलाहाबाद : प्रदेश भर के अशासकीय माध्यमिक कालेजों में तैनात तदर्थ शिक्षकों का शुरू हो गया है। प्रतियोगियों ने इन शिक्षकों की तैनाती को पद हड़पने की साजिश करार दिया है। उनकी मांग है कि माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के 2016 के विज्ञापन में इन्हें जोड़ा जाए।
उसके बाद लिखित परीक्षा हों, ऐसा न होने पर आंदोलन का अल्टीमेटम दिया गया है। अशासकीय माध्यमिक कालेजों में 1993 से 2017 तक तदर्थ शिक्षकों को तैनाती दी गई है। करीब 34 हजार शिक्षक इन पदों पर इन दिनों काबिज हैं। प्रतियोगियों का कहना है कि माध्यमिक कालेजों में तदर्थ शिक्षकों को प्रबंधक और जिला विद्यालय निरीक्षकों ने साठगांठ करके रख लिया है, और अब वह समान कार्य के आधार पर समान वेतन भी न्यायालय के आदेश से ले रहे हैं, जबकि न्यायालय के आदेश में स्पष्ट है कि चयन बोर्ड से आने तक ही तदर्थ शिक्षकों को रखा जाएगा। चयन बोर्ड से चयनित अभ्यर्थियों के आने पर तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति स्वत: समाप्त होनी है, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से तदर्थ शिक्षकों के पदों का अधियाचन ही चयन बोर्ड भेजा ही नहीं जा रहा है। प्रबंधक अधिकारियों से मिलकर अधियाचन के पदों पर नियुक्त शिक्षकों को भी ज्वाइनिंग नहीं देते उनके स्थान पर भी तदर्थ शिक्षकों को नियुक्त कर लेते हैं, इसीलिए चयन बोर्ड में जितने पदों पर विज्ञापन निकलता है, उतने पदों पर भर्ती नहीं होती, हर बार सीटें घटा दी जाती हैं। यह परंपरा बन गई है। प्रतियोगियों ने बताया कि 2013 के विज्ञापन में हुई भर्ती में 700 शिक्षकों को कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ रहा है।
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उसके बाद लिखित परीक्षा हों, ऐसा न होने पर आंदोलन का अल्टीमेटम दिया गया है। अशासकीय माध्यमिक कालेजों में 1993 से 2017 तक तदर्थ शिक्षकों को तैनाती दी गई है। करीब 34 हजार शिक्षक इन पदों पर इन दिनों काबिज हैं। प्रतियोगियों का कहना है कि माध्यमिक कालेजों में तदर्थ शिक्षकों को प्रबंधक और जिला विद्यालय निरीक्षकों ने साठगांठ करके रख लिया है, और अब वह समान कार्य के आधार पर समान वेतन भी न्यायालय के आदेश से ले रहे हैं, जबकि न्यायालय के आदेश में स्पष्ट है कि चयन बोर्ड से आने तक ही तदर्थ शिक्षकों को रखा जाएगा। चयन बोर्ड से चयनित अभ्यर्थियों के आने पर तदर्थ शिक्षकों की नियुक्ति स्वत: समाप्त होनी है, लेकिन अधिकारियों की मिलीभगत से तदर्थ शिक्षकों के पदों का अधियाचन ही चयन बोर्ड भेजा ही नहीं जा रहा है। प्रबंधक अधिकारियों से मिलकर अधियाचन के पदों पर नियुक्त शिक्षकों को भी ज्वाइनिंग नहीं देते उनके स्थान पर भी तदर्थ शिक्षकों को नियुक्त कर लेते हैं, इसीलिए चयन बोर्ड में जितने पदों पर विज्ञापन निकलता है, उतने पदों पर भर्ती नहीं होती, हर बार सीटें घटा दी जाती हैं। यह परंपरा बन गई है। प्रतियोगियों ने बताया कि 2013 के विज्ञापन में हुई भर्ती में 700 शिक्षकों को कोर्ट का चक्कर लगाना पड़ रहा है।
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