केंद्रीय बजट में यूपी के लिए 8 नए मेडिकल कॉलेजों का ऐलान हुआ है। वर्तमान में चल रहे प्रदेश के मेडिकल कॉलेजों में पहले से ही शिक्षकों के 70 फीसदी पद खाली हैं। ऐसे में सवाल है कि नए खुलने वाले मेडिकल
कॉलेजों में पढ़ाएगा कौन? प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा का हाल यह है कि कई मेडिकल कॉलेजों में प्रफेसरों के 20 से 24 नियमित पदों पर केवल एक या दो की ही नियुक्ति हो सकी है। कुछ जगहों पर तो एक भी असिस्टेंट प्रफेसर नहीं हैं।
इस बीच पिछले साल ही कई मेडिकल कॉलेजों के प्रिंसिपलों समेत कई प्रफेसरों के इस्तीफों ने नया संकट खड़ा कर दिया था, जिसे किसी तरह संभाला गया। इस कामचलाऊ व्यवस्था के बीच यूपी को आठ नए मेडिकल कॉलेजों का तोहफा मेडिकल एजुकेशन या छात्रों के लिए बहुत ज्यादा राहत देने वाला साबित नहीं हो सकेगा।
शिक्षक भर्ती को लेकर आलाधिकारी गंभीर नहीं
शासन और चिकित्सा शिक्षा विभाग के अधिकारी करोड़ों रुपये लगाकर मेडिकल कॉलेजों की इमारत और उपकरणों की खरीद में जितनी दिलचस्पी दिखाते हैं, उतनी दिलचस्पी शिक्षकों की भर्ती में नहीं दिखाते। आरोप है कि खरीद में कमिशनखोरी एक बड़ी वजह है। यही वजह है कि हर मेडिकल कॉलेज में डॉक्टरों की नियुक्ति ना होने के बावजूद करोड़ों के उपकरण खरीद लिए जाते हैं।
कहीं 1 तो कहीं 2 प्रफेसरों के भरोसे पढ़ाई
शासन को पिछले साल भेजी गई रिपोर्ट के मुताबिक कई मेडिकल कॉलेजों में प्रफेसर, असिस्टेंट प्रफेसर और लेक्चरर के ज्यादातर पद खाली हैं। संविदा के भरोसे कक्षाएं चलाई गईं, लेकिन इसके बावजूद 30 फीसदी तक शिक्षकों की कमी बनी रही। कई मेडिकल कॉलेज ऐसे हैं जो महज एक या दो प्रोफेसरों के भरोसे चल रहे हैं।
आंबेडकरनगर, जालौन, आजमगढ़, बांदा और बदायूं मेडिकल कॉलेजों में प्रफेसर के 20 से 24 पद हैं, लेकिन कहीं भी दो से ज्यादा प्रफेसरों के पद नहीं भरे जा सके हैं। सहारनपुर मेडिकल कॉलेज में तो केवल एक प्रफेसर हैं और यहां असिस्टेंट प्रफेसर की एक भी भर्ती नहीं हो सकी है, जबकि इसके 27 पद हैं। कन्नौज मेडिकल कॉलेज को लेकर पिछली सरकार काफी गंभीर थी, इसके बावजूद यहां प्रफेसर के 24 पदों में से केवल चार पर नियमित भर्ती हो सकी।
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