लखनऊ. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उप्र के हर
विकासखंड में एक लोक कल्याण मित्र नियुक्त करने की घोषणा की है। सरकार की
इस घोषणा का बसपा सुप्रीमो मायावती और सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव विरोध कर
रहे हैं। विपक्ष का कहना है कि योगी सरकार अपनी योजनाओं एवं कार्यक्रमों के
प्रचार-प्रसार के लिए लोक कल्याण मित्र नियुक्त कर रही है। इससे सरकारी धन
का दुरुपयोग होगा।
दरअसल, विपक्ष भले ही लोक कल्याण मित्रों की नियुक्ति
को राजनीति से प्रेरित कहे लेकिन हर राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए नौकरी
की सियासत करता रहा है। शिक्षा मित्रों की नियुक्ति का मामला हो या फिर
पंचायत सफाईकर्मियों की नियुक्ति इन सबके पीछे अपने-अपने वोट बैंक को
लुभाना हर दल की पहली प्राथमिकता रही है। चुनाव जीतने के बाद सरकारें इन
नियुक्तियों को भूलती रहीं, आज यह सभी के सभी अपनी सेवा शर्तों और नौकरी की
अनिश्चतता को लेकर संघर्ष कर रहे हैं।
पूर्व सीएम मायावती का कहना है कि प्रदेश के 824 विकास खंड में एक लोक
कल्याण मित्र को 25 हजार रुपए तथा 5000 हजार रुपए प्रतिमाह यात्रा भत्ता के
आधार पर नियुक्ति वास्तव में चहेतों को वक्ती तौर पर तुष्टिकरण करने का
उपाय मात्र है। कुछ हद तक मायावती के इस कथन में सत्यता है कि इस तरह की
नौकरियां अपने चहेतों और अपने वोट बैंक को सहेजने के लिए की जाती हैं। पहले
संविदा और कुछ वर्षों के लिए नियुक्ति होने वाले बाद में पक्की नौकरी और
बढ़े वेतन की मांग करने लग जाते हैं।
मायावती ने नियुक्त किया पंचायत सफाईकर्मी
सरकारी
नौकरी की सियासत मायावती सरकार में भी खूब की गयी। अपनी सरकार के कार्यकाल
के अंतिम वर्षो में मायावती ने करीब 4 लाख सरकारी नौकरियां बांटी थीं। यहां
तक नौकरियों में भी सोशल इंजीनियरिंग की बात कर युवाओं को खुश करने का
प्रयास किया गया था। तब करीब एक लाख सफाई कर्मचारियों की भर्ती का एलान
किया गया था। इसके जरिए पारंपरिक दलित वोट बैंक को साधने का प्रयास किया
किया। पंचायत राज विभाग के अधीन 1,08,848 पद सफाई कर्मी के पद सृजित किए गए
थे। इनका काम था ग्राम पंचायतों में साफ-सफाई करना। तब इन्हें संविदा पर
रखा गया था। बाद में इन्हें नियत तनख्वाह मिलने लगी। अब इनकी मांग है कि
इन्हें पंचायत सेवक कहा जाए।
शिक्षा मित्रों की नियुक्ति का अपना इतिहास
उत्तर
प्रदेश सरकार के 26 मई 1999 के शासनादेश के जरिए उप्र में शिक्षामित्रों की
नियुक्ति हुई थी। तब यह कहा गया था कि इससे शिक्षा की गुणवत्ता सुधरेगी और
प्राइमरी स्कूलों में शिक्षकों की कमी दूर होगी। कल्याण सिंह के
मुख्यमंत्रित्व काल में शुरू हुई इस योजना में इंटर पास लोगों को 11 माह की
संविदा पर शिक्षा मित्र बनाया गया था। तब स्पष्ट रूप से कहा गया था कि
शिक्षामित्रों को स्थायी नहीं किया जाएगा और इन्हें नियत वेतनमान मिलेगा।
बाद में शिक्षामित्रों की लंबी सेवा और इनकी अधिक संख्या को देखते हुए इनका
शिक्षक के रूप में समायोजन किया गया। तब इसके पीछे एक राजनीतिक चाल थी और
वोट लेने की सियासत थी।
मुलायम की भूमि सेना आज तक कार्यरत
मुलायम सिंह के
मुख्यमंत्रित्व कार्यकाल में उप्र में बड़ी संख्या में भूमि सैनिकों को
नियुक्त किया गया। खेतिहर मजदूरों और भूमिहीन किसानों के बीच भूमि वितरण के
लिए इस सेना का गठन किया गया था। प्रारंभिक तौर प्रदेश के 16 जिलों में यह
योजना लागू की गयी थी। इस योजना के तहत ऊसर, बंजर और बीहड़ भूमि का विकास
किया जाना था। इसके लिए हजारों हेक्टेयर जमीन भूमि सैनिकों को आवंटित की
गयी। यह योजना आज भी कृषि विभाग संचालित कर रहा है। भूमि सैनिकों को
फोटोयुक्त परिचय पत्र जारी किया जाता है। इन्हें मनरेगा के तहत मजदूरी
मिलती है। लेकिन यह भी अब संगठित हो रहे हैं और नियमित कर्मचारी बनाए जाने
की मांग कर रहे हैं।
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