नई दिल्ली : पिछड़ेपन का आंकड़ा जुटाए बगैर एससी/एसटी कर्मचारियों को
प्रोन्नति में आरक्षण देने की दलीलों का विरोध करते हुए बुधवार को आरक्षण
विरोधियों ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि यह मामला पूरे एससी/एसटी समाज से
नहीं, बल्कि सिर्फ एससी/एसटी कर्मचारियों से जुड़ा मुद्दा है।
इसे
एससी/एसटी समाज के सशक्तीकरण से जोड़कर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि
कर्मचारियों की निगाह से देखा जाना चाहिए। प्रोन्नति में आरक्षण देने से
पहले उनके पिछड़ेपन और पर्याप्त प्रतिनिधित्व न होने के आंकड़े जुटाना
जरूरी है। 1एम. नागराज फैसले को पुनर्विचार के लिए भेजे जाने का विरोध करते
हुए वरिष्ठ वकील राकेश द्विवेदी ने यह दलील दी। कहा कि केंद्र की ओर से
पेश अटार्नी जनरल द्वारा समाज में एससी/एसटी लोगों पर हो रहे अत्याचार या
एससी/एसटी दूल्हे की बरात में र्दुव्यवहार का उदाहरण दिया जाना ठीक नहीं
है। उन्होंने कहा कि नौकरी में शुरुआती प्रवेश के दौरान पूरे एससी/एसटी
वर्ग को पिछड़ा मानकर आरक्षण दिया जाना ठीक है। ऐसा नहीं है कि कोई चतुर्थ
श्रेणी या तृतीय श्रेणी कर्मचारी भर्ती हुआ है और एससी/एसटी होने के कारण
नहीं बढ़ पा रहा। प्रोन्नति में आरक्षण देते समय पिछड़ापन और पर्याप्त
प्रतिनिधित्व के आंकड़े जुटाने जरूरी हैं। इस लिहाज से एम. नागराज फैसला
बिल्कुल सही है। इससे पहले राजीव धवन ने कहा कि सरकार जो काम संसद के जरिये
कानून संशोधन कर नहीं कर पाई वह वह सुप्रीम कोर्ट से आदेश के जरिये कराना
चाहती है। उन्होंने कहा कि 2012 में उत्तर प्रदेश के प्रोन्नति में आरक्षण
के कानून को रद करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तत्कालीन सरकार
कानून में संशोधन विधेयक लेकर आई थी। जिसमें कोर्ट के एम. नागराज सहित कई
फैसलों का जिक्र था। उस विधेयक में व्यवस्था थी कि एससी/एसटी अपने आप में
पिछड़ा माने जाएंगे। उनके पिछड़ेपन के आंकड़े जुटाने की जरूरत नहीं है।
लेकिन यह विधेयक संसद से पास नहीं हो पाया। सरकार अब इसी बारे में कोर्ट से
आदेश लेना चाह रही है। धवन ने दलीलें पूरी कर ली हैं जबकि राकेश द्विवेदी
गुरुवार को भी बहस करेंगे।
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