इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) ने एक महत्वपूर्ण फैसले में
कहा है कि प्रदेश में जूनियर हाईस्कूल से उच्चीकृत हुए राजकीय वित्तीय
सहायता प्राप्त सभी कॉलेजों में अध्यापक भर्ती का अधिकार माध्यमिक शिक्षा
सेवा चयन बोर्ड को होगा। अभी तक प्रबंध समिति अध्यापकों की नियुक्ति करती
थी। कोर्ट ने इस व्यवस्था को बदल दिया है।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि धारा 7ए(ए) के तहत उच्चीकृत हुए मान्यता प्राप्त एडेड सभी जूनियर हाईस्कूलों का ब्योरा जिला विद्यालय निरीक्षक को दें। अध्यापकों के कितने पद स्वीकृत हैं, कितने सरकार से वेतन प्राप्त कर रहे हैं और अध्यापकों के कितने पद खाली हैं, यह जानकारी 15 फरवरी तक दे दी जाए। कोर्ट ने कहा है कि जानकारी मिलते ही सभी जिला विद्यालय निरीक्षक तीन सप्ताह के भीतर अध्यापकों के रिक्त पदों को भरने की संस्तुति माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेजे। और बोर्ड सभी रिक्त पदों को 15 जून 2019 तक भरे ताकि एक जुलाई 2019 से सभी कॉलेजों को अध्यापक मिल सकें। अंतरिम व्यवस्था करते हुए कोर्ट ने कहा है कि जब तक नियमित भर्ती नहीं हो जाती, तब तक कॉलेजों में जिला विद्यालय निरीक्षक 26 अक्टूबर 2017 के शासनादेश के तहत सेवानिवृत्त अध्यापकों को नियुक्ति करें ताकि छात्र-छात्राओं की पढ़ाई का नुकसान न होने पाए।
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि प्रबंधन द्वारा रखे गए अंशकालिक अध्यापकों को अनिश्चितकाल तक सेवा में बने रहने का अधिकार नहीं होगा। तीन दशकों से कम वेतन पर अंशकालिक अध्यापक पढ़ा रहे हैं। ऐसे अध्यापकों को राहत देते हुए कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ऐसे अध्यापकों का मूल्यांकन करे और देखे कि क्या वे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के काबिल है या नहीं। फिर योग्य अध्यापकों को नियमानुसार नियुक्ति दी जाए। कोर्ट ने कहा कि अभी तक एक शिक्षण संस्थान में दो तरह के अध्यापकों को दो तरह के वेतन देने का नियम लागू है, सरकार सभी को समान वेतन देने के नियम पर विचार करे।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने राणा विजेन्द्र प्रताप सिंह की याचिका को खारिज एवं मुकेश कुमार व कई अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। राणा अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा है कि उच्चीकृत विद्यालयों के अध्यापकों को वेतन भुगतान अधिनियम के अधीन लाया जाए और अधिनियम के तहत वेतन भुगतान किया जाए। कोर्ट ने कहा कि उच्चीकृत होने के बाद शिक्षण संस्थान पर इंटरमीडिएट एक्ट ही लागू होगा और उसे माध्यमिक शिक्षा विभाग ही नियंत्रित करेगा। वेतन भुगतान करने के लिए बीएसए की जिम्मेदारी कुछ समय के लिए ही होगी। जब तक बेसिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग अलग नहीं कर दिए जाते, यह व्यवस्था जारी रहेगी। सरकार इस सम्बन्ध में कदम उठाए।
कोर्ट ने कहा है कि बेसिक व माध्यमिक दोनों को राज्य सरकार ही वेतन देती है। उस पर अलग से कोई वित्तीय भार नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश व अपर मुख्य सचिव माध्यमिक व बेसिक शिक्षा विभाग को अनुपालन के लिए भेजे जाने का भी आदेश दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, प्रभाकर अवस्थी व अमित सक्सेना ने बहस की। कोर्ट ने कहा है कि उच्चीकृत विद्यालयों में कार्यरत सीटी ग्रेड अध्यापक उसी कैडर में रहते हुए दस साल की सेवा के बाद एलटी ग्रेड के लाभ प्राप्त कर सकेंगे। सेवानिवृत्त होने के बाद यह पद एलटी ग्रेड का हो जाएगा।
हाईकोर्ट ने प्रदेश के सभी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारियों को निर्देश दिया है कि धारा 7ए(ए) के तहत उच्चीकृत हुए मान्यता प्राप्त एडेड सभी जूनियर हाईस्कूलों का ब्योरा जिला विद्यालय निरीक्षक को दें। अध्यापकों के कितने पद स्वीकृत हैं, कितने सरकार से वेतन प्राप्त कर रहे हैं और अध्यापकों के कितने पद खाली हैं, यह जानकारी 15 फरवरी तक दे दी जाए। कोर्ट ने कहा है कि जानकारी मिलते ही सभी जिला विद्यालय निरीक्षक तीन सप्ताह के भीतर अध्यापकों के रिक्त पदों को भरने की संस्तुति माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड को भेजे। और बोर्ड सभी रिक्त पदों को 15 जून 2019 तक भरे ताकि एक जुलाई 2019 से सभी कॉलेजों को अध्यापक मिल सकें। अंतरिम व्यवस्था करते हुए कोर्ट ने कहा है कि जब तक नियमित भर्ती नहीं हो जाती, तब तक कॉलेजों में जिला विद्यालय निरीक्षक 26 अक्टूबर 2017 के शासनादेश के तहत सेवानिवृत्त अध्यापकों को नियुक्ति करें ताकि छात्र-छात्राओं की पढ़ाई का नुकसान न होने पाए।
कोर्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि प्रबंधन द्वारा रखे गए अंशकालिक अध्यापकों को अनिश्चितकाल तक सेवा में बने रहने का अधिकार नहीं होगा। तीन दशकों से कम वेतन पर अंशकालिक अध्यापक पढ़ा रहे हैं। ऐसे अध्यापकों को राहत देते हुए कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ऐसे अध्यापकों का मूल्यांकन करे और देखे कि क्या वे छात्रों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के काबिल है या नहीं। फिर योग्य अध्यापकों को नियमानुसार नियुक्ति दी जाए। कोर्ट ने कहा कि अभी तक एक शिक्षण संस्थान में दो तरह के अध्यापकों को दो तरह के वेतन देने का नियम लागू है, सरकार सभी को समान वेतन देने के नियम पर विचार करे।
यह आदेश न्यायमूर्ति अश्विनी कुमार मिश्र ने राणा विजेन्द्र प्रताप सिंह की याचिका को खारिज एवं मुकेश कुमार व कई अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। राणा अपना अधिकार साबित करने में विफल रहे। कोर्ट ने कहा है कि उच्चीकृत विद्यालयों के अध्यापकों को वेतन भुगतान अधिनियम के अधीन लाया जाए और अधिनियम के तहत वेतन भुगतान किया जाए। कोर्ट ने कहा कि उच्चीकृत होने के बाद शिक्षण संस्थान पर इंटरमीडिएट एक्ट ही लागू होगा और उसे माध्यमिक शिक्षा विभाग ही नियंत्रित करेगा। वेतन भुगतान करने के लिए बीएसए की जिम्मेदारी कुछ समय के लिए ही होगी। जब तक बेसिक व माध्यमिक शिक्षा विभाग अलग नहीं कर दिए जाते, यह व्यवस्था जारी रहेगी। सरकार इस सम्बन्ध में कदम उठाए।
कोर्ट ने कहा है कि बेसिक व माध्यमिक दोनों को राज्य सरकार ही वेतन देती है। उस पर अलग से कोई वित्तीय भार नहीं पड़ेगा। कोर्ट ने आदेश की प्रति मुख्य सचिव उत्तर प्रदेश व अपर मुख्य सचिव माध्यमिक व बेसिक शिक्षा विभाग को अनुपालन के लिए भेजे जाने का भी आदेश दिया है। याचिका पर वरिष्ठ अधिवक्ता आरके ओझा, प्रभाकर अवस्थी व अमित सक्सेना ने बहस की। कोर्ट ने कहा है कि उच्चीकृत विद्यालयों में कार्यरत सीटी ग्रेड अध्यापक उसी कैडर में रहते हुए दस साल की सेवा के बाद एलटी ग्रेड के लाभ प्राप्त कर सकेंगे। सेवानिवृत्त होने के बाद यह पद एलटी ग्रेड का हो जाएगा।